Karnataka Politics: संपत्तियों पर छिड़ी बहस के बीच कर्नाटक में मठ-मंदिर का मामला गर्म, राज्यपाल ने उठाए सवाल; विधेयक भी लौटाया
Tax On Karnataka Hindu Temples Bill हिंदू मठ-मंदिरों से जुड़े इस विधेयक के तहत उन सभी मंदिरों को अपनी आय से से सालाना दस फीसद टैक्स देना होगा जिनकी आय एक करोड़ से अधिक है। वहीं जिन मंदिरों की सालाना आय दस लाख और एक करोड़ के बीच है उन्हें साल में कुल आय में से पांच प्रतिशत राशि देनी होगी।
अरविंद पांडेय, बेंगलुरु। कांग्रेस पर बहुसंख्यक समाज का धन और संपत्तियों को छीनकर दूसरों के बीच बांटने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आरोपों पर कांग्रेस पार्टी सहित समूचा विपक्ष भले ही सफाई देने में जुटा है, लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की एक पहल पर विवाद तेज होता जा रहा है।
हिंदू मठ-मंदिरों की आय पर टैक्स
इस पहल से जुड़े विधेयक को राज्यपाल ने भेदभावपूर्ण बताते हुए लागू नहीं होने दिया, अन्यथा राज्य के हिंदू मठ-मंदिरों की आय पर अच्छा-खासा टैक्स लगाने पूरी तैयारी कर ली गई थी। इस विधेयक के तहत मठ-मंदिरों को अपनी आय को निर्माण या दूसरे किसी कार्य पर खर्च करने पर भी अंकुश लगा दिया गया था। इसके लिए उन्हें राज्य सरकार से अनुमति लेना जरूरी कर दिया गया था।
कांग्रेस पर तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप
भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है और मंदिरों के राजस्व पर टैक्स लगाकर अपना खाली खजाना भरना चाहती है, वहीं कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि यह कानून नया नहीं है, बल्कि पुराना है। चुनाव को देखते हुए फिलहाल राज्यपाल के इस कदम पर राज्य सरकार ने चुप्पी ओढ़ ली है, लेकिन पीएम मोदी की टिप्पणी के बाद भाजपा इस मुद्दे को नए सिरे से धार देने में जुट गई है।विरोध के बाद भी अपने रुख पर कायम सरकार
उसका कहना है कि यह सनातन और हिंदू-मंदिरों पर सीधा हमला है। अन्यथा अकेले हिंदू मठ-मंदिरों की आय पर टैक्स लेने को लेकर ऐसा कदम नहीं उठाया जाता। हालांकि कांग्रेस विधेयक के पीछे बड़े हिंदू मठों व मंदिरों की आय की एक हिस्सा लेकर उससे दूसरे मठ-मंदिरों को संवारने का तर्क दे रही है। यह बात अलग है कि कर्नाटक सरकार के इस विधेयक को लेकर शुरू से ही खूब विरोध हुआ, बावजूद इसके सरकार अपने रुख पर कायम रही।
कर्नाटक के 87 मठ और मंदिरों की सालाना आय एक करोड़ से अधिक
सरकार ने इस विधेयक को विधानसभा से एक बार नहीं, बल्कि दो बार पारित किया। पहली बार विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान परिषद में गिर गया था। इसके बाद सरकार इसे फिर से विधानसभा में लेकर आई और पारित किया। रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक में मौजूदा समय में करीब 87 ऐसे मठ और मंदिर है, जिनकी सालाना आय एक करोड़ से अधिक है, वहीं दस लाख से ज्यादा सालाना आय वाले मठ-मंदिरों की संख्या तीन सौ से अधिक है।कांग्रेस और भाजपा में ठनी
इस विधेयक को लेकर भाजपा कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर हिंदू विरोधी नीतियां लागू करने का आरोप लगा चुकी है। जबकि कांग्रेस का कहना है कि इसी तरह के प्रावधान 2003 से लागू हैं। कर्नाटक सरकार के मंत्री रामलिंगा रेड्डी का कहना है कि कांग्रेस ने हमेशा मंदिरों और हिंदू हितों की रक्षा की है। कर्नाटक के लोग भाजपा की चालों को अच्छी तरह से जानते हैं और इस लोकसभा चुनाव में जनता अपना असंतोष व्यक्त कर जवाब देगी।
मंदिरों के पैसों पर कांग्रेस की नजर
वहीं भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस सरकार मंदिर के पैसों से अपना खाली खजाना भरना चाहती है। बता दें कर्नाटक सरकार ने अपने बजट में वक्फ संपत्ति, मंगलुरु में हज भवन और इसाई समुदाय के विकास के लिए 330 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, वहीं उसे कर्नाटक के प्रमुख मंदिरों से हर वर्ष औसतन 450 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है।जिला मंदिर राजस्व - (करोड़ रुपये)
- दक्षिण कन्नड: 80 155
- उडुपी: 43 75.7
- बेंगलुरु शहरी: 37 16.6
- उत्तर कन्नड: 16 9
- तुमकुरु: 16 37.1