Move to Jagran APP

Anand Dighe: ठाणे के ठाकरे आनंद दिघे थे एकनाथ शिंदे के राजनीतिक नाथ

एकनाथ शिंदे के राजनीतिक नाथ और ठाणे के ठाकरे आनंद दिघे आजकल चर्चा में बने हुए हैं। वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शपथ लेते हुए शिंदे ने अपने दिवंगत गुरु दिघे का नाम लिया और उनका धन्यवाद ज्ञापन किया।

By Deepak YadavEdited By: Updated: Fri, 01 Jul 2022 03:11 PM (IST)
Hero Image
फाइल फोटो: धर्मवीर आनंद दिघे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे
नई दिल्ली, जेएनएन। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए एकनाथ शिंदे ने जिस व्यक्ति का नाम लिया, वो नाम था उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे का। महाराष्ट्र की उठा पठक भरी सियासत के बीच शिवसेना के बागी नेता ने 30 जून 2022 को भाजपा के सहयोग से सरकार का गठन किया। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भाजपा के बड़े नेताओं के साथ शिवसेना के बागी विधायक मौजूद रहे। ऐसे माहौल में आनंद दिघे का जिक्र महज उस व्यक्ति को याद करने का नहीं बल्कि उसको जीने का भी है। बगावत के दिनों से ही एकनाथ शिंदे अपने गुरु का जिक्र करते रहे हैं।

आनंद दिघे ठाणे शिवसेना के लोकप्रिय नेता थे जो बराबर विवादों में रहे। बताते हैं कि 49 वर्ष की उम्र में एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। सूत्र बताते हैं कि, लोकप्रियता का दायरा इतना बड़ा होता गया कि बालासाहेब ठाकरे भी दिघे की लोकप्रियता से असुरक्षित महसूस करने लगे थे। ऐसे असुरक्षा भाव के चलते आरोप लगता है कि बालासाहेब ही दिघे की मौत के जिम्मेदार थे।

दिघे की मौत को 21 साल गुजर गए हैं मगर वे आज भी एकनाथ शिंदे के दिलो दिमाग पर वैसे ही बने हुए हैं। दस्तावेज बताते हैं कि, पिछली उध्दव सरकार में शपथ लेते हुए भी शिंदे ने राजनीतिक गुरु दिघे को याद किया था। मगर एक भाजपा नेता के यह आरोप लगाने पर कि, दिघे की मौत के जिम्मेदार बालासाहेब ठाकरे थे। इसके बाद से शिवसेना और भाजपा नेता के बीच रार शुरू हो गया था।

दिघे ने ठाणे के जिस सिंघानिया अस्पताल में आखिरी सांस ली थी, शिवसैनिकों ने उसी अस्पताल को आग के हवाले कर दिया था। यह जाहिर है कि दिघे के अनुयायी हजारों में थे मगर बताया जाता है कि यह घटना बालासाहेब के इशारे पर हुई थी। चूकि दिघे की कार दुर्घटना के तार बलासाहेब से जोड़े जा रहे थे, इसलिए भी उन्होंने यह अस्पताल की घटना करवाई होगी, ऐसा सूत्र बताते हैं।

ठाणे के टेंभी नाका में 27 जनवरी 1952 को जन्में दिघे का सफर बहुत उतार चढ़ाव भरा रह। ऐसे में ही उन्होंने 70 के दशक में शिवसेना की सदस्यता ली। एक सामान्य कार्यकर्ता की हैसियत के सफर से वे एक दिन ठाणे के शीर्ष पर पहुंच गए। जिंदगी भर शादी नहीं करने वाले दिघे ने लोगों के बच रहकर काम करना चुना। जब वे ठाणे जिले के शिवसेना जिलाध्यक्ष बने तो उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई। कुछ दिनों बाद ही उन्होंने आनंद आश्रम की स्थापना की जहां वे लोगों से बराबर मिला करते थे।

ठाणे में एक आटो चलाने वाले व्यक्ति का आज महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना इतना आसान न होता, यदि दिघे जैसा गुरु शिंदे को न मिला होता। 90 के दशक में दिघे ने ही शिंदे को राजनीति में लाने का काम किया। दिघे की अंगुली पकड़ शिंदे राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते गए और आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं। शिंदे अपने राजनीतिक करियर में सबसे पहले 33 वर्ष की उम्र में ठाणे नगर निगम के पार्षद चुने गए।

सूत्र बताते हैं कि, दिघे की लोकप्रियता से बालासाहेब बहुत विचलित रहने लगे थे। मगर इस दौरान भी एकनाथ शिंदे को दिघे सहित बालासाहेब का भी बराबर आशीर्वाद मिलता रहा। मगर इस बात से बालासाहेब भी वाकिफ नहीं थे कि, जिसको वे आशीर्वाद दे रहे हैं वो आने वाले समय में शिवसेना से बगावत कर उनके बेटे उध्दव को ही किनारे कर देगा।