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Emergency: आपातकाल के दौरान क्या कर रहे थे नरेंद्र मोदी? 49 साल बाद खुला राज

नरेंद्र मोदी महज 24 साल के थे जब भारत में इमरजेंसी की घोषणा हुई थी। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के खिलाफ उन्होंने अपनी आवाज भी उठाई। उस दौरान वह ऐसे लोगों से मिलते थे जिनके परिवार का मुखिया या तो जेल में था या फिर पुलिस के डर से छिपता फिर रहा था। वह परिवारों से मिलते थे और उन्हें आश्वासन भी देते थे।

By Agency Edited By: Nidhi Avinash Updated: Wed, 26 Jun 2024 08:13 PM (IST)
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24 साल की उम्र में इंदिरा गांधी के खिलाफ उठाई थी आवाज (Image: ANI)
दिल्ली, आइएएनएस। इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान 1975 में जब आपातकाल लगाया गया तो उस समय नरेन्द्र मोदी महज 24 साल के थे। उन्होंने तब भी सरकार के इस दमनकारी फैसले के खिलाफ आवाज उठाई थी। वह लगातार सरकार विरोधी प्रदर्शन का हिस्सा रहे थे। उन्होंने आपातकाल की समाप्ति के बाद 1978 में अपनी पहली पुस्तक 'संघर्ष मा गुजरात' लिखी, जो गुजरात में आपातकाल के खिलाफ भूमिगत आंदोलन में एक नेता के रूप में उनके अनुभवों का एक संस्मरण है।

पीएम मोदी की इस किताब की हुई तारीफ

इस किताब को खूब सराहा गया और व्यापक रूप से स्वीकार किया गया। गौरतलब है कि आपातकाल के दौरान नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। स्वयंसेवकों के परिवार और अन्य लोगों के परिवार जो उस आंदोलन के दौरान या तो सरकार के द्वारा जेल में डाल दिए गए थे या फिर सरकार से छुपते घूम रहे थे। उन सबको सहारा और ढाढस देने का भी काम किया था।

कुछ लोगों ने उस आपातकाल के दौर को किया याद

वह हर ऐसे परिवार के लोगों से मिल रहे थे, जिनके परिवार का मुखिया या तो जेल में था या फिर पुलिस के डर से छिपता फिर रहा था। वह सभी परिवारों से मिलते उनकी जरूरतें समझते, उनका कुशल क्षेम पूछते और हर संभव मदद करते और आश्वासन भी देते थे। ऐसे ही कुछ लोगों ने उस आपातकाल के दौर को याद किया और बताया कि कैसे नरेन्द्र मोदी उस दौर में भी उनके साथ परिवार के एक सदस्य के रूप में तटस्थ होकर खड़े रहे। राजन दयाभाई भट्ट ने बताया कि आपातकाल के दौरान मेरे पिताजी भूमिगत हो गए थे, मैं छोटा था और मेरी मां अकेली थी।

नरेन्द्र मोदी हमारे घर आया करते थे...

इस दौरान नरेन्द्र मोदी हमारे घर आया करते थे। मां से मिलते और कहते थे कि किसी भी चीज को लेकर चिंता मत करो। अजीत सिंह भाई गढ़वी ने बताया कि इमरजेंसी के समय नरेन्द्र मोदी पूरे भारत में भेष बदलकर इधर-उधर जाया करते थे। नरेन्द्र मोदी पंजाब में सरदार बनकर गए थे।

देवगन भाई लखिया ने कहा कि आपातकाल के दौरान नरेन्द्र मोदी को एक आयोजक बनाया गया, जो सभी लोगों को नया फोन नंबर देते थे। उस समय गुजरात में पांच डिजिट का फोन नंबर होता था। ऐसे नरेन्द्र मोदी ने एक तरीका बताया कि आखिर के दो नंबर उसको उल्टा कर दो। जिसके जरिए सभी वर्कर एक दूसरे के संपर्क में आ गए।

विरोधी पार्टियों को नेता क्यों न हो...

डॉ आर के शाह ने बताया कि 1975 में इमरजेंसी के दौरान देश के सभी नेताओं के साथ चाहे विरोधी पार्टियों को नेता क्यों न हो। नरेन्द्र मोदी का उनके साथ लगातार संपर्क रहता था। जब वह नेता अहमदाबाद आते थे तो उनके लिए सारी व्यवस्था वही करते थे। यह सब वह अंडर ग्राउंड होते हुए करते थे।

नाई की दुकान पर रखवाते थे साहित्य

हसमुख पटेल ने बताया कि आपातकाल के दौरान जो आंदोलन चल रहा था उसमें नरेन्द्र भाई के पास जो साहित्य आता था उसको कहां रखना है किन लोगों को देना है इसके लिए मार्गदर्शन वही करते थे। वह बताते थे कि यह साहित्य नाई की दुकानों पर रखो जहां ज्यादातर सामान्य लोग आते हैं। इसके साथ ही जो प्रवचन करते हैं, लोगों को उपदेश देते हैं उन तक पहुंचाओ क्योंकि उनके पास बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

कांतिभाई व्यास ने बताया कि आपातकाल के समय गुजरात में स्वयंसेवकों का बड़ा योगदान रहा और उसमें से नरेन्द्र भाई का योगदान सबसे अलग और अहम था। किरोड़ीलाल मीणा ने बताया कि भूमिगत होकर भी सभी तरह के साहित्य का प्रकाशन और वितरण नरेंद्र मोदी कराते थे और पूरे देश में इसे भेजना और उसका वितरण करना इसकी जिम्मेदारी भी उनके पास थी।

आपातकाल में मोदी चला रहे थे आंदोलन

नागर भाई चावड़ा ने कहा कि जब आपातकाल लगा तो संघ को बैन कर दिया गया लेकिन आंदोलन पूरे देश में चल रहा था। ऐसे में किसी को पता नहीं चल रहा था कि आंदोलन कौन चला रहा है। लेकिन, तब पूरे देश में जो आंदोलन चल रहा था वह एक ही व्यक्ति चला रहा था और वह थे नरेन्द्र भाई मोदी। यह बाद में पता चला।

प्रकाश मेहता ने कहा कि जब यह आंदोलन चल रहा था तो नरेन्द्र मोदी मेरे घर पर कई बार अलग-अलग वेष में आए। एक बार साधु बनकर आए, एक बार सामान्य नागरिक के भेष में आए, एक बार सरदार बनकर आए। उनका आइडिया था कि गुजरात में जो साहित्य छपता था सरकार के खिलाफ उसे हम ट्रेन के जरिए अलग-अलग जगह भेजते थे। हम उसे ट्रेन में लोगों को दे आते थे और उसी तरह हम देश के कोने-कोने में इसे पहुंचाते थे।

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