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विकास तो ठीक, लेकिन सांप्रदायिकता के मोर्चे पर देश की स्थिति चिंताजनक...

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन न उतना शानदार है जितना सरकार दावा करती है और न ही उतना खराब है जितना विपक्ष कहता है। इससे इतर सांप्रदायिकता के मोर्चे पर देश की स्थिति चिंताजनक हुई है। वैमनस्य का विष तेजी से फैल रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 30 May 2022 01:01 PM (IST)
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हमें अपने लोकतंत्र को इस विष से बचाना होगा।
प्रताप भानु मेहता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकप्रियता के शिखर पर हैं। पिछले आठ वर्षों में देश ने कुछ क्षेत्रों में तरक्की भी की है। लेकिन, हमें यह भी देखना होगा कि इन वर्षों में देश में लोकतंत्र की नींव कमजोर हुई है। मोदी सरकार लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर रही है। हिंदुओं के पक्ष में बोलने का दावा करने वाली इस सरकार ने हिंदुत्व को भी सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। ये सरकार राम, कृष्ण और शिव के मंदिर बना रही है, लेकिन उनके आदर्शों को इस पवित्र भूमि से मिटा रही है। इस सरकार ने हमें टकराव के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। इसे तत्काल सही करने की जरूरत है।

इस बात में संदेह नहीं है कि सरकार के कुछ कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को आगामी कुछ वर्षों में प्रतिस्पर्धी बनने की राह पर पहुंचाया है। सबसे प्रभावकारी सफलता है इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण की गति को तेज करना। आज भारत रिकार्ड तेजी के साथ सड़क और बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है। यह निसंदेह पिछली सरकारों से बहुत बेहतर है। भारत ने बिजली उत्पादन क्षमता के मामले में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। हालांकि कीमतें अभी भी ज्यादा बनी हुई हैं।

डिजिटल प्लेटफार्म बनाने और इनका प्रयोग करने के मामले में भी भारत अग्रणी है और सेवाओं की बेहतर डिलीवरी में टेक्नोलाजी का प्रयोग किया जा रहा है। यहां स्टार्टअप्स को आगे बढ़ने के लिए बेहतर माहौल मिला है। कोविड-19 महामारी की भयावह दूसरी लहर से पहले हुई अनावश्यक देरी के बाद सरकार ने बेहद उल्लेखनीय तरीके से टीकाकरण अभियान को आगे बढ़ाया। पीडीसी को विस्तार देने का कदम भी सही फैसला रहा। मोदी को इन चार योजनाओं का भी श्रेय जाता है, जो न केवल सामाजिक कल्याण के लिए जरूरी थीं, बल्कि इन्होंने

महिलाओं को सशक्त भी किया। ये योजनाएं हैं- स्वच्छता, रसोई गैस वितरण, जल जीवन मिशन के तहत स्वच्छ जल की आपूर्ति और बिजली पहुंचाना। आयुष्मान भारत भी उल्लेखनीय है।

इन उपलब्धियों के बाद भी कुछ समस्याएं हैं, जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। देश बेरोजगारी की चुनौती का सामना कर रहा है। कई लोग नौकरी गंवा चुके हैं। इस संकट से बड़े पैमाने पर सरकार को जिस मनरेगा ने बचाया है, प्रधानमंत्री मोदी कभी इसी योजना के विरुद्ध थे। मनरेगा का बजट बढ़ने से ग्रामीण स्तर पर उपभोग को बढ़ावा मिला। लेकिन दूसरी ओर यह देश में रोजगार के संकट को भी दर्शाता है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे अहम प्रश्न यह है कि क्या भारत में रोजगार के बेहतर अवसर बनेंगे? सरकार ने मैक्रो इकोनमी को सही तरीके से संभाला है। अब तक महंगाई को भी काफी हद तक नियंत्रित करने में सरकार सफल रही है। लेकिन, अब महंगाई और ज्यादा सरकारी कर्ज की चुनौती सामने है। इस समय सभी वर्गों को साथ लेकर चलते हुए आठ प्रतिशत की विकास दर की राह पर आना सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ खास नहीं किया है। स्कूल में प्रवेश लेने वालों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन पढ़ाई का स्तर गिरा है। उच्च शिक्षा की बात करें तो सरकार सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को बर्बाद कर रही है।

अब बात करते हैं देश के सामने सबसे बड़े खतरे की। भारत जैसे दु्निया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में सांप्रदायिकता और अधिनायकवाद के लक्षण हमेशा रहे हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इन दोनों ही चुनौतियों को अप्रत्याशित तरीके से बढ़ाने का काम किया है। देश के लगभग सभी स्वायत्त निकाय या तो ध्वस्त हो गए हैं या फिर उनके मायने क्षीण होते जा रहे हैं। आजादी के बाद से आज तक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक पूर्वाग्रह को किसी सरकार से ऐसा समर्थन नहीं मिला है। देश को आगे के बजाय हम 100 साल पीछे ले जा रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि पंथ निरपेक्षता की व्याख्या के भी अलग-अलग पहलू हो सकते हैं। समान नागरिक संहिता जैसे बहुत से मुद्दों पर राजनीतिक चर्चा की जरूरत है। लेकिन सरकार इन चर्चाओं को संस्थागत र्ंहसा एवं घृणा के हथियार के रूप में प्रयोग कर रही है। यदि सांप्रदायिकता की आग हमारे लोकतंत्र को जला देगी, तो कोई उपलब्धि काम नहीं आएगी।

[पूर्व अध्यक्ष, सेंटर फार पालिसी रिसर्च, नई दिल्ली]