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UP Politics: भाजपा के लिए आसान नहीं उत्तर प्रदेश में गुटबाजी का तोड़, समन्वय बनाए रखने पर नेतृत्व का जोर

UP Politics उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों अटकलों को लेकर गर्म है कि यूपी सरकार और संगठन के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के हालिया बयानों ने इन अटकलों को और हवा दे दी। हालांकि इन सबके बीच केंद्रीय नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि फिलहाल समन्वय बनाने पर ही जोर होना चाहिए और किसी भी प्रकार की बयानबाजी से बचना चाहिए।

By Jitendra Sharma Edited By: Sachin Pandey Updated: Wed, 17 Jul 2024 11:45 PM (IST)
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भाजपा केंद्रीय नेतृत्व का जोर फिलहाल समन्वय बनाए रखने पर है। (File Photo)
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बीते दिनों प्रदेश कार्यसमिति में बयान दिया- 'संगठन सरकार से बड़ा था, बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा।' सरकार और संगठन के बीच चल रही खींचतान का संदेश इन शब्दों ने दिया और फिर गत दिवस नई दिल्ली में केशव की पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुलाकात ने उत्तर प्रदेश में बड़े बदलाव की अटकलों को हवा दे दी।

यह सिर्फ इसलिए, क्योंकि न तो उपमुख्यमंत्री के यह शब्द नए हैं और न ही यूपी में गुटबाजी नई है, लेकिन अन्य प्राथमिकताओं को लेकर चल रहे केंद्रीय नेतृत्व का जोर फिलहाल समन्वय पर है। हालांकि, जरूरी हुआ तो गुजरात की तर्ज पर सरकार और संगठन की समान सर्जरी के रूप में सामने आ सकता है। उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव में जब भाजपा की प्रचंड बहुमत के साथ जीत हुई और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाए गए तो कुछ समय तक सरकार चलने के बाद से ही सरकार में गुट आकार लेने लगे।

कई बार सामने आई खींचतान

सरकार में खुद को उपेक्षित महसूस करने वाले मंत्री, विधायक और संगठन पदाधिकारियों के पैरोकार उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य बताए जाने लगे। ऐसे कई घटनाक्रम भी हुए जब बेलगाम नौकरशाही जनप्रतिनिधियों पर भारी पड़ी। उसी का परिणाम था कि दिसंबर, 2019 में लोनी विधायक नंद किशोर गुर्जर का समर्थन करते हुए सरकार के 100 से अधिक विधायक अपनी ही सरकार के विरुद्ध धरने पर बैठ गए थे।

तब इन मामलों को हाईकमान के दखल से दबाया गया और 2019 के लोकसभा चुनाव की जीत ने सब छिपा दिया। फिर बारी 2022 के विधानसभा चुनाव की थी, लेकिन सरकार में चल रही गुटबाजी की चर्चा जोर पकड़ रही थी, तब एक अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आई। सीएम योगी जून, 2021 में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के सरकारी आवास पर पहुंचे। केशव ने उन्हें मिठाई खिलाई।

संघ सरकार्यवाह ने कराई थी मुलाकात

सूत्रों के मुताबिक, चुनाव में एकजुटता का संदेश देने के लिए यह मिलन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कराया था। फिर 2022 में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी और गुटबाजी का घाव फिर दब गया। हाईकमान ने अगड़ा-पिछड़ा का संतुलन साधते हुए सिराथू से विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद केशव को दोबारा डिप्टी सीएम बनाया।

उनके साथ ब्रजेश पाठक को भी उपमुख्यमंत्री बनाया, लेकिन सरकार में गुटों का यह संघर्ष फिर भी चलता ही रहा। अब लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को 29 सीटों का नुकसान हो गया तो यह घाव फिर सामने है। चुनाव परिणाम के बाद लगभग एक दर्जन विधायक सरकार में अपनी उपेक्षा की पीड़ा व्यक्त कर चुके हैं। हारे हुए प्रत्याशी आरोप लगा चुके हैं कि बेलगाम अफसरों को सत्ता का संरक्षण है।

हाईकमान ने बयानबाजी से बचने की दी सलाह

इधर, सरकार बनाम संगठन के बयानों के बाद जेपी नड्डा से केशव और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की मुलाकात को एक धड़ा इस रूप में प्रचारित कर रहा है कि यूपी में बड़ा बदलाव हो सकता है। इशारा, मुख्यमंत्री बदले जाने को लेकर है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि हाईकमान ने नेताओं को निर्देश दिया है कि ऐसी बयानबाजी न करें। उत्तर प्रदेश की राजनीति से जुड़े एक राष्ट्रीय पदाधिकारी का कहना है कि किसी एक धड़े की मुराद पूरी कर देना गुटबाजी का समाधान नहीं है।

वैसे भी नेतृत्व अभी बजट से राज्य और गठबंधन के संतुलन, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव को प्राथमिकता पर लेकर चल रहा है। यूपी में अभी समन्वय का रास्ता तलाशते हुए दस सीटों के उपचुनाव कराए जाएंगे। फिर आवश्यकता करने पर सरकार और संगठन में वैसी ही सर्जरी की जाएगी, जैसी कि 2022 में बड़े बदलावों के साथ गुजरात में किया गया था।