मोदी की गारंटी का भरोसा, एमपी-राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने दिल खोलकर दिया समर्थन
मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया है। तीनों राज्यों की जनता ने बीजेपी को दिल खोलकर समर्थन दिया है। अब जबकि लोकसभा चुनाव महज पांच महीने की दूरी पर है तो संदेश बड़ी लड़ाई के लिए भी है और यह सवाल विपक्ष से पूछा जाएगा- कौन है ऐसा विश्वसनीय चेहरा जिसे टक्कर में खड़ा किया जाएगा।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। इन चुनाव नतीजों का यूं तो कई संदेश है, लेकिन एक बात शीशे की तरह स्पष्ट है.. विश्वसनीयता का मुकाबला किसी भी दूसरी चीज से नहीं किया जा सकता है। रेवड़ी के वादे तो हर किसी ने किए, लेकिन जनता के मन में यह ज्यादा बड़ा सवाल था कि थोड़ा कम भी मिले, लेकिन पूरा कौन कर सकता है। सवाल यह भी था कि लंबे समय तक कौन अपने वादे पर टिका रह सकता है।
दिल खोलकर मिला समर्थन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि मोदी की गारंटी यानी पूरा होने की गारंटी और हिंदी पट्टी के तीनो राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने दिल खोलकर समर्थन दे दिया। तेलंगाना में भी भाजपा को वोट फीसद में दोगुना और सीटों में कईगुना बढ़ोत्तरी हो गई। इसके साथ ही भाजपा ने उत्तर भारत के हिंदी पट्टी में अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है और दक्षिण में पैर जमाने शुरू कर दिए हैं। अब जबकि लोकसभा चुनाव महज पांच महीने की दूरी पर है तो संदेश बड़ी लड़ाई के लिए भी है और यह सवाल विपक्ष से पूछा जाएगा- कौन है ऐसा विश्वसनीय चेहरा जिसे टक्कर में खड़ा किया जाएगा। यह सवाल कांग्रेस के लिए भी होगा और विपक्षी गठबंधन के लिए भी। वैसे हल्के फुल्के अंदाज में यह भी याद किया जाएगा कि पनौती कौन?
मोदी के नाम पर मांगे वोट
इन चुनावों में एक खास बात थी, तीनों राज्यों में सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर भाजपा ने वोट मांगे। मध्य प्रदेश जैसा राज्य जहां शिवराज सिंह चौहान के नाम पर पार्टी के अंदर ही घमासान था। वहां, पार्टी के रणनीतिकार अमित शाह ने सभी नेताओं को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया। राजस्थान में महारानी के दबाव को खारिज कर दिया। सोए हुए छत्तीसगढ़ संगठन में उर्जा भर दी और यह गारंटी दी गई कि भाजपा जो कह रही है वह पूरा होगा।
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दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से बड़ी-बड़ी रेवड़ी की भी घोषणा हुई और जाति जनगणना जैसे दांव भी चले गए, लेकिन सब धरा का धरा रह गया। इसका सबसे बड़ा जवाब विश्वसनीयता ही है जहां मोदी के मुकाबले कोई खड़ा नहीं हो सका। आखिर हो भी कैसे जब कर्नाटक में कांग्रेस के नेता ही राहुल गांधी के जाति जनगणना के सबसे बड़े वादे के खिलाफ खड़े हों। कोई राहुल गांधी के वादे पर भरोसा कैसे करे जब कमलनाथ, गहलोत और भूपेश बघेल ही चुनाव में आलाकमान के निर्देशों को नजरअंदाज करे।
कांग्रेस को मंथन की जरूरत
वैसे यह वाकया भी लोगों ने नहीं भूला है, जब खुद राहुल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार के कैबिनेट फैसले को फाड़कर यह जता दिया था कि उन्हें परवाह नहीं। इन चुनाव नतीजो के बाद कांग्रेस को रुककर सोचना पड़ेगा कि जाति जनगणना जैसा समाज तोड़ू फॉर्मूला लोगों को क्यों रास नही आ रहा है। भाजपा ओबीसी के खिलाफ है, राहुल गांधी का यह आरोप सिरे क्यों नहीं चढ़ा। अब जबकि सभी दल लोकसभा चुनाव की रणनीति में जुटेंगे तो विपक्षी गठबंधन को फिर से फार्मूले तय करने होंगे, क्योंकि सबसे पहले जाति जनगणना कराने वाले बिहार में भी यह असमंजस और विवाद में ही घिरा हुआ है।
पिछले कुछ अरसे से भाजपा 2024 में 2019 के मुकाबले भी बड़ी जीत का दावा कर रही है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मोदी के लिए जो विश्वास दिखा है उससे पार्टी का भरोसा और बढ़ेगा। महिलाओं में भाजपा के लिए जो रुझान कुछ अर्से से दिख रहा था वह और मजबूत हुआ है। तेलंगाना में भी भाजपा अपने वोट फीसद को दोगुना करने में कामयाब रही है। परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहे आदिवासी वोटरों ने राजस्थान के बाद इन तीनों राज्यों में भी भाजपा का साथ देकर मोदी से भरोसा जताया है।
ध्यान रहे कि एक तरफ जहां विपक्षी दलों की ओर से जाति राजनीति को तीखा करने की कोशिश हो रही है वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ा दाव चलते हुए कहा था कि उनकी नजर में सिर्फ चार जातियां है- गरीब, महिला, युवा और किसान। उनकी योजनाएं भी इन्हें केंद्रित करते हुए ही बन रही है।
कांग्रेस और क्षेत्रीय को चाहिए एक दूसरे की बैसाखी
यह सच है कि चुनावी दबाव में भाजपा भी रेवड़ी के चक्कर में थोड़ी फंस ही गई। सस्ता गैस सिलेंडर समेत कई वादे किए हैं। संदेश साफ है कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसे वादे जिनका राजस्व पर तो असर होगा, लेकिन गरीबों के जीवन को और आसान बनाएंगे। इन चुनाव नतीजों का संदेश यह भी है कि गठबंधन बैसाखी पर नहीं चल सकता है। सफल गठबंधन के लिए जरूरी है कि मुख्य दल मजबूत हो और दूसरों को साधने की योग्यता रखती हो। जो चुनाव नतीजे आए हैं उसके बाद कांग्रेस के लिए यह संभव नहीं है। आज की स्थिति में कांग्रेस और क्षेत्रीय दल दोनों को एक दूसरे की बैसाखी चाहिए। फिर नेतृत्व कौन करेगा? कौन किसकी सुनेगा और क्यों सुनेगा? दूसरी तरफ फिलहाल सभी मोदी को सुन रहे हैं।
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