वन नेशन-वन इलेक्शन पर अब आगे क्या होगा, मोदी सरकार को कौन-कौन सी चुनौतियों से पड़ेगा निपटना?
वन नेशन-वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी को कैबिनेट के मंजूरी मिलने के बाद मोदी सरकार की राह अभी आसान नहीं है। 2029 तक देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए सरकार को काफी मेहनत करनी पड़ेगी। कई मुद्दों पर तो आम सहमति बनाने होगी। वहीं कुछ संशोधन में राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की जरूरत पड़ेगी। आइए जानते हैं सरकार की राह में आने वाले चुनौतियों के बारे में।
डिजिटल डेस्क नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को उच्च स्तरीय पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कमेटी की वन नेशन-वन इलेक्शन सिफारिशों को मंजूरी दी। अब उम्मीद जताई जा रही है कि शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार संसद में संशोधन विधेयक पेश कर सकती है। कमेटी ने 2029 में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। मगर इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की राह इतनी भी आसान नहीं है। उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
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- कोविंद कमेटी ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है। यानी संविधान में संशोधन करने की खातिर केंद्र सरकार को संसद में विधेयक लाना होगा। यहीं केंद्र सरकार की अग्निपरीक्षा है। हालांकि राहत की बात यह है कि अधिकांश संशोधनों में राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
- मौजूदा समय में एनडीए को 543 सदस्यीय लोकसभा में 293 व राज्यसभा में 119 सदस्यों का समर्थन है। मगर संविधान संशोधन के पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।
- प्रस्ताव को लोकसभा में साधारण बहुमत के साथ ही सदन में मौजूद व मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलना जरूरी है।
- अगर संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर मतदान वाले दिन लोकसभा के सभी 543 सदस्य सदन में मौजूद रहते हैं तो केंद्र सरकार को 362 सदस्यों का समर्थन चाहिए। विपक्षी इंडी गठबंधन के लोकसभा में 234 सांसद हैं।
- अगर राज्यसभा की बात करें तो एनडीए के 113 सदस्य हैं और छह नामित सदस्य का भी समर्थन मिलना तय है। वहीं इंडी गठबंधन के उच्च सदन में 85 सदस्य हैं। मतदान वाले दिन यदि सदन में सभी सदस्य मौजूद होते हैं तो दो-तिहाई 164 होगा। यानी इतने सदस्यों का समर्थन मिलना जरूरी है।
- छह राष्ट्रीय पार्टियों में से सिर्फ भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी एक साथ चुनावों के पक्ष में हैं। कांग्रेस, आप, बसपा और माकपा ने समेत 15 दलों ने इसका विरोध किया है।
- जिन पार्टियों ने कोविंद समिति के समक्ष एक साथ चुनाव का समर्थन किया था, लोकसभा में उनकी संख्या 271 है। वहीं विरोध करने वाले 15 दलों की संख्या लोकसभा में 205 है।
- लोकसभा में भाजपा के पास अपने दम पर बहुमत नहीं है। ऐसे में इस मुद्दे पर उसे अपने सहयोगी और विपक्षी दलों को भी साधना पड़ सकता है। वहीं कुछ संवैधानिक संशोधनों को राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की भी जरूरत पडे़गी। ऐसे में सरकार के सामने इस मुद्दे पर आम सहमति बनाना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
- एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र से जुड़े संशोधनों का देश के आधे राज्यों की विधानसभा से अनुमोदन मिलना जरूरी है। केंद्र सरकार को इसमें राज्यों को भी शामिल करना होगा। वहीं स्थानीय निकाय चुनाव से जुड़े संशोधन पर भी आधे से अधिक राज्यों की सहमति जरूरी है।
- मौजूदा समय में भाजपा का एक दर्जन से अधिक राज्यों पर कब्जा है। मगर हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, झारंखड, बिहार और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणामों की भूमिका अहम होगी।
- कोविंद कमेटी ने संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन की सिफारिश की है। अनुच्छेद 83 लोकसभा और अनुच्छेद 172 राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को नियंत्रित करता है। इनमें संशोधन के बाद ही एक साथ चुनाव का रास्ता साफ होगा।
- वन नेशन-वन इलेक्शन पर आम सहमति बनाने का एक रास्ता यह भी है कि सरकार संशोधन विधेयकों को संसदीय समिति में भेज दे। इन समितियों में विपक्षी सदस्य भी होते हैं। समिति में चर्चा के बाद इस मुद्दे पर आम सहमति बनाई जा सकती है।
- सरकार को पूरे देश में चुनाव एक साथ कराने की खातिर काफी मंथन करना होगा, क्योंकि राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग साल में होते हैं। ऐसे में कुछ राज्यों में समय से पहले और कुछ में देरी से चुनाव कराने होंगे।
- कोविंद कमेटी की सिफारिशों को आगे बढ़ाने की खातिर एक कार्यान्वयन समूह का गठन किया जाएगा। वहीं देशभर में विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी। वन नेशन-वन इलेक्शन को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। इसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव होंगे।