White Paper: यूपीए सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन पर मोदी सरकार लाई श्वेत पत्र, मोदी सरकार ने गिनाई पिछली सरकार की नाकामयाबी
श्वेत पत्र में बताया गया है कि वाजपेयी सरकार से मजबूत आर्थिक विरासत मिलने के बावजूद संप्रग सरकार ने 2004 के बाद अपनी खोखली आर्थिक नीतियों एवं आर्थिक घोटाले की बदौलत देश की अर्थव्यवस्था को कर्ज व राजकोषीय घाटे से लाद दिया। इससे विदेशी निवेशक निवेश से हिचकने लगे मैन्यूफैक्चरिंग में गिरावट होने लगी महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई और जनता आधारभूत सुविधाओं के लिए तरसने लगी।
राजीव कुमार, नई दिल्ली। संप्रग शासनकाल में दुनिया की पांच कमजोर अर्थव्यवस्था में शामिल रही भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच शीर्ष अर्थव्यवस्था में शामिल करने के सफरनामे का दावा करते हुए गुरुवार को मोदी सरकार ने संसद में श्वेत पत्र जारी किया।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 54 पेज का यह श्वेत पत्र लोकसभा में पटल पर रखा। एक फरवरी को अंतरिम बजट पेश करते वक्त उन्होंने इसकी घोषणा की थी।
श्वेत पत्र में क्या दी गई जानकारी
अब इस पर सदन में चर्चा होगी, पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में। श्वेत पत्र में बताया गया है कि वाजपेयी सरकार से मजबूत आर्थिक विरासत मिलने के बावजूद संप्रग सरकार ने 2004 के बाद अपनी खोखली आर्थिक नीतियों एवं आर्थिक घोटाले की बदौलत देश की अर्थव्यवस्था को कर्ज व राजकोषीय घाटे से लाद दिया।इससे विदेशी निवेशक निवेश से हिचकने लगे, मैन्यूफैक्चरिंग में गिरावट होने लगी, महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई और जनता बिजली, पेयजल, अस्पताल जैसी आधारभूत सुविधाओं के लिए तरसने लगी।
श्वेत पत्र के जरिए क्या बताना चाह रही मोदी सरकार?
सरकार इस श्वेत पत्र के माध्यम से जनता को यह भी बताना चाहेगी कि कैसे संप्रग सरकार के दौरान बजट को गलत तरीके से पेश किया गया, कर्ज की बात को छिपाया गया। साथ ही अब राजग काल में कैसे तस्वीर बदल रही है।
पिछली सरकार की गलत नीतियों का किया गया जिक्र
- श्वेत पत्र में कहा गया कि विभिन्न सब्सिडी के लिए तेल विपणन, खाद व खाद्य निगम को वर्ष 2006 से 2010 के बीच 1.90 लाख करोड़ रुपये के बांड जारी कर दिए गए और राजकोषीय घाटा व राजस्व घाटा बढ़ने के डर से इस कर्ज को छिपाया गया जिसे अब राजग की सरकार चुका रही है। उस दौरान रक्षा तैयारियों तक से समझौता हो रहा था।
- नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2014 आते-आते दुनिया का भारत की आर्थिक क्षमता व गतिशीलता से भरोसा उठने लगा, वित्तीय अनुशासनहीनता बढ़ने लगी और भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया।
- सरकार देश को चमकाने की बजाय अपनी राजनैतिक छवि को चमकाने में अधिक भरोसा करने लगी।
- मार्च 2013 में कुमार मंगलम बिरला ने अपने एक इंटरव्यू में यहां तक कह डाला कि वह इंडोनेशिया व ब्राजील जैसे देशों में निवेश करना पसंद करेंगे क्योंकि भारत में लगातार नीतिगत बदलाव से उनकी निवेश योजना प्रभावित हो रही है।
- बिना जांचे-परखे लोन देने की वजह से संप्रग के काल में बैंकिंग संकट गहरा गया था। बैंकों के एनपीए बढ़ने लगे थे और बैंक अंदर से खोखला हो रहे थे।
- विदेशी मुद्रा का भंडार कम हो रहा था और वर्ष 2013 के अगस्त में यह 256 अरब डालर था जोकि वर्ष 2011 में 294 अरब डालर था।
- राजकोषीय घाटा अधिक होने से वित्त वर्ष 2011-12 में बजटीय प्रविधान की तुलना में 27 प्रतिशत अधिक बाजार से कर्ज लिया गया।
- इंफ्रास्ट्रक्चर विकास चरमराने लगा था। सामाजिक व ग्रामीण मामले से जुड़े मंत्रालय के पैसे खर्च तक नहीं किए जा रहे थे। इन विभागों के लिए 2004-14 के दौरान खर्च के लिए आवंटित 94,060 करोड़ रुपये ऐसे ही रखे रह गए।