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महाराष्ट्र में अजित की 'पावर पॉलिटिक्स', 2019 से 2023 तक NCP और राज्य सरकार में रही थी अहम भूमिका

महाराष्ट्र की सियासत का खेला भले ही रविवार को बदला हो लेकिन कहानी काफी पुरानी है। ऐसे में 2019 से लेकर 2023 तक की अजित पवार से जुड़ी कहानी बताएंगे। 2019 में अजित पवार की बगावत के बाद एमवीए सरकार का गठन फिर शिवसेना में बगावत के बाद एकनाथ शिंदे सरकार का गठन और अब इस सरकार में एनसीपी के दिग्गज नेता अजित पवार का शामिल हो जाना।

By Anurag GuptaEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 02 Jul 2023 07:34 PM (IST)
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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता अजित पवार बने उपमुख्यमंत्री
मुंबई, ऑनलाइन डेस्क। महाराष्ट्र में रविवार को बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिला। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता अजित पवार महज कुछ घंटों के भीतर नेता प्रतिपक्ष से उपमुख्यमंत्री बन गए। दरअसल, अजित पवार ने एकनाथ शिंदे को अपना समर्थन दे दिया। कहा तो यहां तक जा रहा है कि अजित पवार को एनसीपी के 40 विधायकों और 6 एमएलसी का समर्थन प्राप्त है।

अजित पवार के सरकार में शामिल होने से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उत्साहित नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब महाराष्ट्र में ट्रिपल इंजन की सरकार है और अजित पवार के अनुभव से प्रदेश सुदृढ़ होगा। महाराष्ट्र की सियासत का खेला भले ही बदला हो, लेकिन कहानी काफी पुरानी है। ऐसे में 2019 से लेकर 2023 तक की अजित पवार से जुड़ी कहानी बताएंगे।

नई कहानी का पुराना अध्याय (2019)

साल 2019 में विधानसभा चुनाव परिणाम सामने आने के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की लालस में भाजपा से मुंह मोड़ लिया। ऐसे में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने धुर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और शिवसेना को एकजुट कर महाविकास अघाड़ी (MVA) का गठबंधन तैयार किया। हालांकि, अजित पवार 22 नवंबर, 2019 को एमवीए की बैठक से अचानक निकल गए और 23 नवंबर को भाजपा के दिग्गज नेता देवेंद्र फडणवीस को अपना समर्थन दे दिया।

राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 23 नवंबर में राजभवन में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। हालांकि, खबर सामने आने के बाद एमवीए में भूचाल मच गया और शरद पवार ने मोर्चा संभालते हुए विधायकों को एकजुट किया। जिसकी वजह से फडणवीस सरकार महज तीन दिनों में ही गिर गई। इसके बाद 28 नवंबर, 2019 को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एमवीए सरकार का गठन हुआ और बाद में अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।

शिवसेना में बगावत

पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे की अगुआई में शिवसेना के कुल 40 विधायकों ने बगावत की। जिसकी वजह से एमवीए सरकार पर संकट के बादल छा गए और 'रिजॉर्ट पॉलिटिक्स' की शुरुआत हुई। ऐसे में उद्धव ठाकरे ने अंतत: मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसकी वजह से एमवीए सरकार (एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना) गिर गई।

एमवीए सरकार के गिरने के बाद एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया और 30 जून, 2022 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस सरकार में भाजपा के दिग्गज नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया।

पवार की गुगली पॉलिटिक्स

हाल ही में शरद पवार ने गुगली पॉलिटिक्स की बात कही। उन्होंने कहा था कि नवंबर 2019 में मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस का शपथ ग्रहण भाजपा की सत्ता की लालसा को उजागर करने के लिए मेरे द्वारा फेंकी गई एक गुगली थी। इस विषय पर उन्होंने कहा था कि भगवा पार्टी उनकी डिलीवरी को समझने में विफल हुई थी।

देवेंद्र फडणवीस का डिफेंस

देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार की गुगली पर डिफेंस करते हुए एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उस समय शरद पवार की सहमति से ही भाजपा और एनसीपी की सरकार बनने जा रही थी, लेकिन बाद में वह पलट गए। उन्होंने कहा था कि शरद पवार को समझना आसान नहीं है। उनकी 'मिस्ट्री' को समझने के लिए उनकी 'हिस्ट्री' में जाना होगा।

देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि उद्धव ठाकरे द्वारा हमने नाता तोड़ने के बाद हमारी शरद पवार के साथ बैठक हुई। जिसमें तय हुआ कि कैसे सरकार बनाएंगे, लेकिन शपथ ग्रहण से तीन-दिन पहले शरद पवार समझौते से पीछे हट गए। इसके बाद अजित पवार के पास कोई विकल्प नहीं था। हालांकि, देवेंद्र फडणवीस के बयान पर शरद पवार का पलटवार सामने आया था।

क्या कुछ बोले थे शरद पवार?

शरद पवार ने कहा था कि जब हमारी बैठक हो गई थी तो फिर चुपचाप शपथ लेने की क्या जरूरत थी। साथ ही उन्होंने सवाल पूछा था कि यदि उनकी (देवेंद्र फडणवीस) सरकार बनने के बाद भी उन्हें एनसीपी का समर्थन प्राप्त था तो फिर सरकार गिरने की नौबत क्यों आई?

क्या खफा थे अजित पवार?

जून 2023 में के गठन के 24 वर्ष पूरे होने पर मुंबई के षणमुखानंद सभागार में आयोजित समारोह के दौरान अजित पवार ने नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी से हटने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि वह अब नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी से हटकर संगठन में काम करना चाहते हैं।

इस घटनाक्रम के कुछ दिन पहले ही शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले एवं प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। उसी समय से अजित पवार की उपेक्षा किए जाने की अटकलें शुरू हो गई। हालांकि, अजित पवार ने यह कहते हुए अटकलों को विराम दिया कि वह राष्ट्रीय राजनीति में नहीं जाता चाहते हैं।

वहीं, शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो एनसीपी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उन्हें मनाना शुरू किया। हालांकि, अजित पवार का मानना था कि उनके फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए। खैर, शरद पवार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपना इस्तीफा वापस ले लिया था, लेकिन इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से अजित पवार ने दूरियां बनाईं थीं।

कहा तो यहां तक जा रहा था कि शरद पवार ने सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब की जिम्मेदारी सौंप दी है। ऐसे में राज्य चुनाव की जिम्मेदारी अजित पवार को सौंपी जा सकती है, लेकिन सियासी पिच पर 2 जुलाई, 2023 दिन रविवार को 'महा' ड्रामा देखने को मिला।

क्या है शरद पवार का पक्ष?

अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्पष्ट किया कि आगामी विधानसभा चुनाव वह पार्टी के चुनाव चिह्न पर ही लड़ेंगे। इस बीच, शरद पवार की प्रतिक्रिया भी सामने आईं। उन्होंने कहा कि मैंने 6 जुलाई को सभी नेताओं की एक बैठक बुलाई थी जहां कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी थी और पार्टी के भीतर कुछ बदलाव किए जाने थे, लेकिन उससे पहले ही कुछ नेताओं ने अलग रुख अपनाया है।

उन्होंने आगे कहा कि मुझे बहुत से लोगों का फोन आ रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य लोगों ने मुझे फोन किया है। आज जो कुछ भी हुआ मुझे उसकी चिंता नहीं है। कल मैं वाई.बी. चव्हाण का आशीर्वाद लूंगा और एक सार्वजनिक बैठक करूंगा।

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