Move to Jagran APP

उत्तर प्रदेश में 1998 में सिर्फ 24 घंटा ही मुख्यमंत्री रह सके थे जगदंबिका पाल

उत्तर प्रदेश में 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी।

By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Tue, 26 Nov 2019 05:17 PM (IST)
उत्तर प्रदेश में 1998 में सिर्फ 24 घंटा ही मुख्यमंत्री रह सके थे जगदंबिका पाल
लखनऊ, जेएनएन। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में शपथ लेने के दूसरे दिन बाद ही इस्तीफा दिया, लेकिन उत्तर प्रदेश में सिर्फ 24 घंटा के सीएम का रिकार्ड बना है।

यूपी में जगदंबिका पाल सिर्फ 24 घंटा ही सीएम रह सके थे। उत्तर प्रदेश में 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। इसके बाद तो अगले ही दिन बाजी पलट गई। उस समय कल्याण सिंह तो रातों-रात सत्ता से बेदखल हो गए थे। वर्ष 1998 में तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारीने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करते हुए लोकतांत्रिक कांग्रेस के जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी थी। जिसके बाद भाजपा इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कम्पोजिट फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। जिसमें कल्याण सिंह को 225 मत हासिल हुए थे और जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले थे।

कल्याण ने किया था बहुमत साबित

इस मामले में तत्कालीन स्पीकर केसरी नाथ त्रिपाठी के 12 सदस्यों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य करार देने पर उनकी भूमिका की भी काफी आलोचना हुई थी। जब 12 सदस्यों ने कल्याण सिंह के समर्थन में वोट किया और उनके वोटों को अंत में घटाया गया तब भी कल्याण सिंह के पास सदन में पूर्ण बहुमत था। इससे पहले कल्याण सिंह के बहुमत परीक्षण के ऑफर को राज्यपाल ने पहले खारिज कर दिया था। इसके बाद वह दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री बने। जगदंबिका पाल उस वक्त कल्याण सिंह सरकार में मंत्री थे। उन्होंने विरोधियों के संग मिलकर तख्ता पलट कर दिया था। उस समय केंद्र में कांग्रेस समर्थित यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी और इंद्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री थे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदखल होने के बाद दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी आमरण अनशन पर बैठे थे।

महाराष्ट्र में जारी सियासी संघर्ष पर विराम लगाने के लिए बहुमत परीक्षाण करवाना एक विकल्प हो सकता है क्योंकि इससे परेशानियों का हल मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना लगातार कह रही है कि उनके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत है और नवनियुक्त सरकार अल्पमत में हैं। शनिवार को सभी को चौंकाते हुए देवेंद्र फडणवीस ने दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। वहीं भाजपा की विरोधी पार्टी एनसीपी के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उत्तर प्रदेश में इसी तरह की स्थिति बनी थी और शीर्ष अदालत ने बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया था।

उस समय राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था और कांग्रेस नेता जगदंबिका पाल को उनकी जगह मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था। 1998 में जगदंबिका पाल वर्सेज भारतीय संघ और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत परीक्षण का आदेश दिया। जिसमें कल्याण सिंह के समर्थन में 225 और जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले। स्पीकर के आचरण की बहुत आलोचना हुई थी क्योंकि उन्होंने 12 सदस्यों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य ठहराए जाने के मामले में दिए अपने फैसले को रद कर दिया था। जब 12 सदस्यों ने कल्याण सिंह के समर्थन में वोट किया और उनके वोटो को अंत में उन्हें घटाया गया तब भी सिंह के पास सदन में पूर्ण बहुमत था। इससे पहले कल्याण सिंह के बहुमत परीक्षण के ऑफर को राज्यपाल ने पहले खारिज कर दिया था। हालांकि वह दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री बने। 

जगदंबिका पाल लंबे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद फिलहाल भारतीय जनता पार्टी में हैं। वह उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर से भाजपा के सांसद हैं। लोकसभा में उनका कार्यकाल बतौर सांसद काफी लंबा रहा है। कांग्रेस के बाद अब वह भाजपा से सांसद हैं। 

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।