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Jharkhand Politics: झारखंड में सीएम चेहरे को लेकर असमंजस में भाजपा, इन नामों पर चर्चा; किस पर लगेगी मुहर?

Jharkhand Politics झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के सामने सीएम चेहरे को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। चेहरों के लेकर चल रही खींचतान के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए कई दावेदार नजर आ रहे हैं लेकिन अब तक किसी एक नाम पर आम सहमति नहीं बन पाई है। जानिए कौन-कौन से नेता हैं इस दौड़ में और किसके नाम पर क्या हैं अड़चनें।

By Arvind Sharma Edited By: Sachin Pandey Updated: Wed, 17 Jul 2024 11:45 PM (IST)
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भाजपा के पास झारखंड में मुख्यमंत्री चेहरों की संख्या बढ़ गई है। (File Image)

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। झारखंड विधानसभा चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं, लेकिन भाजपा के सामने मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर स्पष्टता नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष होने के चलते बाबूलाल मरांडी को स्वाभाविक दावेदार माना जा रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन और आईएनडीआईए के घटक दलों की एकजुटता और उत्साह के आगे भाजपा का असमंजस बढ़ता दिख रहा है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की हार के बाद भाजपा के पास झारखंड में मुख्यमंत्री चेहरों की संख्या बढ़ गई है। भाजपा कार्यकर्ताओं का एक खेमा मरांडी को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है। इसी बीच झारखंड भाजपा के प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने शीर्ष नेतृत्व को स्पष्ट कह दिया है कि प्रदेश के मौजूदा नेतृत्व के रहते वह काम नहीं कर सकते हैं। ऐसे में अन्य विकल्पों पर विचार किया जाने लगा है, किंतु बड़ी परेशानी बाबूलाल मरांडी की पूर्व पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के भाजपा में विलय की शर्तों को लेकर आ रही है।

भाजपा पर भारी शर्तें

बाबूलाल ने भाजपा में झाविमों के विलय के पहले दो शर्तें रखी थीं। उन्होंने झारखंड भाजपा की कमान मांगी थी और दूसरा सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद की अपेक्षा की थी। अब बदली हुई परिस्थितियों में बाबूलाल की दोनों शर्तें भाजपा पर भारी पड़ती दिख रही हैं। शर्तों की पटरी पर चलती रहती है तो विधानसभा चुनाव के संभावित परिणाम डरा रहे हैं और यदि परहेज करती है तो विपक्षी गठबंधन के निशाने पर आने का खतरा है।

असमंजस बड़ा है। ऐसे में अभी तक मध्यम मार्ग को ही श्रेयस्कर मानकर भाजपा आगे बढ़ती दिख रही है। शिवराज सिंह चौहान को झारखंड चुनाव का प्रभारी और हिमंत बिस्वा सरमा को सह प्रभारी बनाया है। केंद्रीय स्तर पर अश्विनी वैष्णव भी नजदीक से नजर रख कर जानकारी जुटा रहे हैं। शिवराज एवं बिस्वा सरमा तो दो सप्ताह के भीतर ही चार-पांच दौरे कर मरांडी के सुरक्षा कवच को मजबूत कर आए हैं, मगर लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए नेतृत्व बदलने की सिफारिश की है।

बड़ी चिंता है आदिवासी वोटरों में पैठ

झारखंड में भाजपा की सबसे बड़ी चिंता आदिवासी वोटरों में पैठ की है। लोकसभा चुनाव में राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों पर भाजपा का सफाया हो गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का ऐसा ही हश्र हुआ था। आदिवासियों के लिए आरक्षित कुल 28 सीटों में 26 पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। समीक्षा में इस हार की सारी जिम्मेवारी तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास पर थोप दी गई थी। उधर आईएनडीआईए ने हेमंत के चेहरे पर ही आगे बढ़ने का निर्णय किया है। ऐसे में भाजपा भी गैर आदिवासी पर दांव नहीं लगाने जा रही है।

हालांकि मरांडी की दावेदारी के बाद भी आदिवासियों के बीच से ही विकल्प तलाशने पर जोर है। तर्क है कि मरांडी एवं हेमंत दोनों ही संताली हैं, किंतु पकड़ सबसे ज्यादा हेमंत की है। ऐसे में भाजपा को आदिवासियों के अन्य समूह हो या उरांव से किसी चेहरे को आगे करना चाहिए। गीता कोड़ा का भाजपा में लाने के एक मकसद यह भी था कि उरांव के बीच से भी नेतृत्व उभारा जाए और आदिवासी मतों में फिर से पकड़ बनाई जाए।

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