Move to Jagran APP

बगावत कोई नई बात नहीं... पहले भी कई उतार-चढ़ाव से गुजर चुका है अकाली दल, पढ़ें क्या है 104 वर्षों का इतिहास?

शिअद के अंदर बागियों के उठते सुर इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि पार्टी की कमान बादल परिवार के बाहर के नेताओं के हाथों में जा सकती है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि क्या पार्टी पहले भी इस तरह की सियासी चुनौतियों का सामना कर चुकी है? आइए पार्टी के इतिहास और इन्हीं राजनीतिक घटनाक्रमों के बारे में जानते हैं।

By Prince Sharma Edited By: Prince Sharma Published: Wed, 26 Jun 2024 06:29 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jun 2024 06:29 PM (IST)
पंजाब में शिअद पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, (फोटो में अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल)

डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। मौजूदा समय में पंजाब की क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल के अंदर कलह चल रहा है। पार्टी के भीतर कुछ राजनेताओं ने अकाली दल चीफ सुखबीर सिंह बादल को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की है।

पंजाब के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के जिम्मेदार वे सुखबीर सिंह बादल को मान रहे हैं। गए मंगलवार को सुखबीर सिंह बादल ने जहां कमियों को दुरुस्त करने के लिए चंडीगढ़ में बैठक की तो वहीं, पार्टी के विरोधी नेताओं ने जालंधर में बैठक की।

इस मीटिंग में उन्होंने सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ नारेबाजी भी की। इससे साफ संकेत मिल गए हैं कि पार्टी का आंतरिक कलह बगावत की शुरुआत है।

104 साल पुराना है अकाली दल

अकाली दल का इतिहास काफी पुराना रहा है। यह सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी भी मानी जाती है। इससे पहले भी पार्टी कई मौकों पर बिखरी है।

शिरोमणि अकाली दल की स्थापना 14, दिसंबर 1920 को हुई थी। उसके बाद पार्टी में कई बार फूट देखी गई। सुखमुख सिंह झब्बाल शिरोमणि अकाली दल (SAD) के पहले और बाबा खड़क सिंह इसके दूसरे अध्यक्ष थे। इसी तरह से मास्टर तारा सिंह (Master Tara Singh) पार्टी के तीसरे अध्यक्ष बने।

इसी क्रम में उन्नीसवें अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान रहे बीसवें अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल और अब सुखबीर सिंह बादल पार्टी के 21वें अध्यक्ष हैं।

अस्सी के दशक में शुरू हुआ बिखराव

सिमरनीज सिंह मान जब अध्यक्ष बने तो उस वक्त ऐसा समय आया जब पार्टी कई भागों में बंट गई। यह अस्सी का दशक चल रहा था। उस समय यह पार्टी अकाली दल (लोंगोवाल) और अकाली दल (यूनाइटेड) में बंट गई। लोंगोवाल ग्रुप की लीडरशिप संत हरचरण सिंह लोंगोंवाल ने की, जबकि यूनाइटेड अकाली दल बाबा का नेतृत्व जोगिंदर सिंह ने संभाला।

साल 1985 की 20 अगस्त को लोंगोंवाल का देहांत हो गया, जिसके बाद इसका नेतृत्व सुरजीत सिंह बरनाला ने संभाला और 8 मई 1986 में शिरोमणि अकाली दल (बरनाला) और शिरोमणि अकाली दल (बादल) में बंट गई। यही नहीं साल 1987 में शिअद तीन समूहों में बंट गई। पहला- बरनाला ग्रुप, दूसरा- बादल ग्रुप और तीसरा जोगिंदर सिंह ग्रुप।

एकजुट हुई ये पार्टियां

साल 1986 की 8 मई को बादल ग्रुप, यूनाइटेड और अकाली ग्रुप, सिमरनजीत सिंह ग्रुप व जोगिंदर ग्रुप एक-दूसरे में जुड़ गए और 15 मार्च, 1989 में अकाली दल लोंगोवाल, अकाली दल (मान) और अकाली दल (जगदेव सिहं तलवंडी) अपनी गतिविधियां अलग-अलग चलाते रहे।

इसके बाद अकाली दल (बादल) के सिमरनजीत सिंह मान ने अकाली दल से अलग पार्टी बना ली जिसे अकाली दल (अमृतसर) कहा गया। यह दल आज भी सक्रिय है।

जबकि अन्य गुटों ने अकाली दल (पंथक) का गठन किया, जो लंबे समय तक काम नहीं कर पाए। मौजूदा समय में राजनीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ये गुट आप पंजाब में प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी के रूप में सक्रिय हैं।

क्या टूट जाएगी अकाली दल

देखें तो जालंधर की बैठक में चंदूमाजरा, सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा, बीबी जगीर कौर, भाई मंजीत सिंह, किरणजोत कौर, सुरिंदर सिंह भूलेवाल, चरणजीत सिंह बराड़, हरिंदरपाल टोहरा, गगनजीत बरनाला, परमिंदर ढींडसा, बलबीर सिंह घोस, रणजीत रखड़ा, ज्ञानी हरप्रीत सिंह, सुच्चा सिंह छोटेपुर, करनैल सिंह पंचोली, सरवन सिंह फिल्लौर नेता मौजूद रहे।

जो बागी नेताओं के रूप में भूमिका अदा कर रहे हैं, उन्हें लेकर हरसिमरत कौर का बयान देखें तो उन्होंने कहा है कि 117 नेताओं मे से पांच नेता पार्टी अध्यक्ष को हटाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में 112 नेता अभी भी पक्ष में है। उनका कहना है कि यह एकजुटता पार्टी को टूटने नहीं देगी।

यह भी पढ़ें- जेल में बंद Amritpal Singh का ये साथी भी लड़ेगा चुनाव, पंजाब की इस सीट से आजमाएगा किस्मत; जानें कौन है भगवंत सिंह?


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.