अब पिता देंगे 'कंगारू फादर केयर', जन्म के बाद सीने से लगाकर कमजोर नवजात की बचाएंगे जिंदगी
समय से पूर्व जन्मे या कमजोर बच्चों कंगारू मदर केयर तकनीक से बचाया जाता है। हालांकि कई बार प्रसव के बाद मां की शारीरिक और मानसिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होती है। ऐसे में पिता को यह जिम्मेदारी संभालनी चाहिए।
By Nitin DhimanEdited By: Pankaj DwivediUpdated: Mon, 10 Oct 2022 09:00 AM (IST)
जासं, अमृतसर। यह प्रमाणिक तथ्य है कि 'कंगारू मदर केयर' से गंभीर अवस्था में पहुंच चुके नवजात को बचाया जा सकता है। यह ऐसा प्राकृतिक तरीका है जिससे बच्चे को मां के सीने से लगाकार रखा जाता है। मां के शरीर की गर्मी बच्चे की त्वचा में स्थानांतरित होती है।
समय पूर्व जन्मे या अत्यधिक कमजोर नवजात को कंगारू मदर केयर तकनीक से बचाया जाता है। चूंकि मां ही नवजात को सीने से लगाकर रखी है, इसलिए इस तकनीक को कंगारू मदर केयर नाम दिया गया है, पर अब शहर के सरकारी मेडिकल कालेज स्थित शिशु रोग विभाग में 'कंगारू फादर केयर' तकनीक शुरू कर दी गई है। अब पुरुष भी नवजात को कंगारू केयर दे सकेंगे।
दरअसल, असहनीय प्रसव पीड़ा से गुजरकर नवजात को जन्म देने वाली महिला इस स्थिति में नहीं होती कि वह उसे बैठकर अपने सीने से लगा सके। यह पीड़ा कई दिनों तक महिला को सहनी पड़ती है, पर नवजात को शरीर की गर्मी की आवश्यकता रहती है। बेबस मां दर्द सहकर भी बच्चे को सीने से लगाए रखती है। वहीं, वार्ड के बाहर बैठा पति चिंता में डूबा रहता है।
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए शिशु रोग विभाग की प्रोफेसर डा. मनमीत सोढी और डा. अश्विनी सरीन ने कंगारू फादर केयर को बेहतर विकल्प माना। उन्होंने कुछ पुरुषों पर शोध भी किया। नवजात को उनके पिता के सीने से लगाकर रखने को कहा। यह ठीक वैसे ही था जैसे एक मां अपने बच्चे को सीने से लगाकर रखती है। बच्चा अपने पिता के साथ भी सहज था और उसकी स्थिति में आशातीत सुधार भी देखने को मिला। अब शिशु विभाग ने यह प्रक्रिया नियमित रूप से शुरू कर दी है। हर नवजात को उसका पिता भी कंगारू फादर केयर दे रहा है।
औसत दस कमजोर नवजात रहते हैं भर्ती
शिशु रोग विभाग के डाक्टरों के अनुसार इस तकनीक से मां पर बोझ घटेगा और उसकी पीड़ा भी कम होगी। पिता के साथ नवजात का मिलन बेहद भावुक करने वाला होता है। इससे नवजात के प्रति पिता का लगाव भी बढ़ता है। जिस प्रकार एक मां अपने नवजात को अपने सीने से लगाकर उसे गर्मी देती है, उसी प्रकार पिता के सीने से लगकर नवजात का तापमान स्थिर रहता है। पीडियाट्रिक वार्ड में औसत ऐसे दस नवजात भर्ती रहते हैं जो कमजोर होते हैं। ऐसे में वहां पिता की जरूरत महसूस होने पर उनकी मदद ली जा सकेगी।
ऐसे होती है कंगारू केयर
कंगारू का बच्चा एक माह में ही जन्म लेता है, पर इंसानों की तरह ही विकसित होने में आठ माह का समय लगता है। एक महीने का बच्चा अंधा, बिना बाल व एक अंगुली के समान होता है। उसके अंग अविकसित होते हैं। ऐसी स्थिति में वह जीवित नहीं रह सकता। यही वजह है कि जन्म के बाद मादा कंगारू उसे अपनी पेट की थैली में रखती है। थैली में बच्चे का तापमान सामान्य रहता है और वह आसानी से स्तनपान करता है। आठ माह बाद वह थैली से बाहर आता है। यह सब त्वचा के संपर्क मात्र से ही होता है।
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