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किसान बोले, विविधीकरण के लिए सभी फसलों पर एमएसपी तय हो, सहकारी समितियां सशक्त बनें

आने वाली सरकार के समक्ष किसानों की हालत सुधारने को लेकर कई चुनौतिया होंगी।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 07 Mar 2022 11:30 AM (IST)
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किसान बोले, विविधीकरण के लिए सभी फसलों पर एमएसपी तय हो, सहकारी समितियां सशक्त बनें

जासं, अमृतसर: पंजाब की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। प्रदेश के किसान आज लाखों रुपये के कर्ज तले दबे हुए हैं। आमदनी नहीं बढ़ने के कारण वे आत्महत्या तक कर रहे हैं। दस मार्च को ईवीएम के पिटारे से पंजाब की नई सरकार का फैसला होगा। ऐसे में आने वाली सरकार के समक्ष किसानों की हालत सुधारने को लेकर कई चुनौतिया होंगी। कृषि के पुराने ढाचे को बदलने की जरूरत है। यह सेक्टर कैसे विकसित हो, किसानों की आर्थिक हालत कैसे मजबूत हो, इसको लेकर दैनिक जागरण की ओर से 'सुनिए सरकार पंजाब की पुकार' अभियान के तहत किसानों के साथ गाव नबीपुर में राउंड टेबल कान्फ्रेंस के दौरान विचार-चर्चा की गई। उनकी आवाज को नई सरकार तक पहुंचाकर इसे एजेडा में शामिल करवाना ही हमारा उद्देश्य है। चर्चा के दौरान किसानों ने एक सुर में कहा कि राज्य में कृषि के सुधार के लिए विशेष नीतियां बनाने की जरूरत है। धान-गेहूं के फसली चक्र से मुक्ति व विविधीकरण के लिए अन्य फसलों की खरीद की सरकार गारंटी ले। गावों में सहकारी समितियों और छोटे किसानों को और सशक्त बनाया जाए। वहीं मंडीकरण की व्यवस्था में सुधार कर सभी फसलों के लिए बाजार मिले। मिलावटी कृषि उत्पादों पर लगे प्रतिबंध: गुरिंदर सिंह

किसान खेत में जो भी पैदा करता है, उसमें मिलावट नहीं होती। परंतु किसान से व्यापारी और उपभोक्ता के पास पहुंचने तक उत्पादों में मिलावट हो जाती है। ऐसी ही स्थिति दूध और सरसों के तेल की है। लोगों को तेल व सरसों का तेल मिलावटी मिलता है। ऐसे में सरकार मिलावटी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए और किसानों को उत्पाद बेचने के लिए प्लेटफार्म उपलब्ध करवाए। हर कृषि उत्पाद की एमएसपी तय की जाए: सुलखन सिंह

किसानों की जितनी लागत फसल बीजने पर आती है, उसके अनुसार बाजार में फसल का मूल्य नहीं मिलता है। सरकार धान, गेहूं और गन्ने के रेट राज्य में तय करती है। ऐसे में अन्य फसलों के रेट भी सरकार की ओर से तय होने चाहिए। खुली मार्केट में व्यापारी किसान को कम से कम पैसे देकर उत्पाद खरीदने की कोशिश करता है। एमएसपी तय होगी तो किसानों को लाभ होगा। पूरी पेमेंट की गारंटी का कानून लागू किया जाए: जगजीत सिंह

प्राइवेट फैक्ट्रियों के मालिक किसानों से गन्ना या सब्जियां खरीदने पर मौके पर पूरी पेमेंट नहीं देते और पैसे कई-कई महीने तक फंसाकर रखते हैं। ऐसे में किसान दूसरी फसल बीजने के लिए कर्ज लेने के लिए मजबूर होता है। आज भी किसानों के करोड़ों रुपये निजी कंपनियों के पास लंबित पड़े हुए हैं। सरकार को पूरी पेमेंट की गारंटी कानून लागू करना चाहिए। कृषि उपकरणों पर सब्सिडी सीधे किसानों को मिले: हरजीत सिंह

सरकार कृषि औजारों, मशीनरी, पेस्टीसाइड, खादों व बीजों पर सब्सिडी देती है। हालांकि धीरे-धीरे अंदरखाते इसे अब खत्म किया जा रहा है। इसी कारण कृषि उपकरणों का मूल्य बढ़ गया है। ऐसे में उपकरणों पर सब्सिडी जारी रहनी चाहिए और यह किसी अधिकारी के जरिए ना होकर सीधे किसानों को मिलनी चाहिए ताकि उन्हें इसका पूरा लाभ मिले। नकली बीज-खाद बेचने वालों के लिए सख्त सजा हो: अरूड़ सिंह

कृषि के लिए उपयोग होने वाली खाद, पेस्टीसाइड, बीज और इंसेक्टीसाइड आजकल नकली भी मिल रहे हैं। किसान इतने शिक्षित नहीं होते, इस कारण विक्रेता उन्हें झांसे में फंसा लेते हैं। इसे किसानों का काफी नुकसान होता है। ऐसे में नकली उत्पाद बेचने वालों पर कार्रवाई के लिए सख्त सजा तय होनी चाहिए। संबंधित विभाग के अधिकारी की जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए। नहरी जल सप्लाई सिस्टम को फिर से बहाल किया जाए: दर्शन सिंह

सरकारों ने नहरी जल सप्लाई सिस्टम को तहस-नहस कर दिया है। उसकी जगह ट्यूबवेल पर सब्सिडी देकर भूजलस्तर का दोहन किया जा रहा है। इससे भू-जलस्तर लगातार गिर रहा है। ऐसे में सरकार को नहरी सिस्टम को फिर चालू करना चाहिए। इससे भू-जलस्तर नहीं गिरेगा और पर्यावरण में आ रहे परिवर्तन में सुधार होगा। साथ ही धरती से पानी निकालने पर रोक लगनी चाहिए। को-आपरेटिव सिस्टम को लागू कर सुधर सकता है कृषि सेक्टर: रणजीत सिंह

पंजाब की कृषि नीति को-आपरेटिव सिस्टम के अनुसार तैयार की जानी चाहिए। सहकारिता लहर बढि़या है। इसमें सरकारी हस्तक्षेप बंद होना चाहिए। कृषि क्षेत्र का विकास तभी संभव है जब किसान खुद खेती के साथ साथ इसकी मार्केटिंग में हिस्सेदारी दिखाएंगे। जिस भी सेक्टर में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ा, वहा घपले भी अधिक हुए और सिस्टम भी फेल हो गया। कृषि आधारित उद्योग लगाने पर दिया जाए जोर: जसवंत सिंह

पंजाब में आज कृषि आधारित उद्योग स्थापित करने बेहद जरूरी हैं। यह उद्योग प्राइवेट नहीं बल्कि पब्लिक सेक्टर के माध्यम से चलाए जाने चाहिए। प्राइवेट सेक्टर किसानों को लूटता है। खेतों में बहुत से ऐसे उत्पाद पैदा होते हैं जो एग्रो इंडस्ट्री में उपयोग हो सकते हैं। इस तरह की इंडस्ट्री स्थापित करने के लिए सरकरें गंभीर नहीं है। इसके लिए नई सरकार को सोचकर एक विजन पेश करना चाहिए। आर्गेनिक खेती को प्रोत्साहित करना जरूरी: हरमनप्रीत सिंह

राज्य में आर्गेनिक कृषि को प्रोत्साहित करने के बड़े अवसर उपलब्ध हैं। आर्गेनिक फसलों को प्रोत्साहित करेंगे तो जहा पर्यावरण की रक्षा होगी, वहीं लोगों के स्वास्थ्य से हो रहा खिलवाड़ भी बंद हो जाएगा। रसायन खादों, कीटनाशकों और पेस्टीसाइड से जुड़े उद्योगों पर नेताओं की मालिकी है। इसलिए सत्ता में बैठे लोग किसानों को आर्गेनिक खेती की तरफ जाने नहीं देते। इस पर रोक लगनी चाहिए। फसल विविधीकरण के लिए विशेष नीति बने: सतनाम सिंह

राज्य में फसल विविधीकरण बेहद जरूरी है। इससे किसानों की आर्थिक हालत में सुधार होगा और वे कर्ज के बोझ से बाहर निकल सकेंगे। अगर सरकार किसानों की सभी फसलों का एमएसपी तय करके उनकी मार्केट में बिक्री यकीनी बनाए तो इससे किसान धान व गेहूं से बाहर निकल दूसरी फसलों की खेती करेंगे। सरकार इसके लिए विशेष नीति बनाए ताकि किसानों को लाभ हो। कारपोरेट किसानों की लूट बंद करें तो होंगे कृषि सुधार: रविंदर सिंह

सरकारें कृषि सेक्टर को को-आपरेटिव सिस्टम के बजाय कारपोरेट सेक्टर के माध्यम से चलाना चाहती है। ये सेक्टर किसानों को लूटते हैं। किसानों को फसल का उचित मूल्य नहीं देते जिससे वे निराश हो जाते हैं। ऐसे में इस लूट को बंद कर को-आपरेटिव सिस्टम को बढ़ावा देना चाहिए और अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए तभी कृषि सुधारों की नीतियां कामयाब हो सकेंगी। किसानों को कारपोरेट सही दाम देंगे तो मिटेगी दूरी: शमशेर सिंह

सरकारों की नीति है कि किसानों और कारपोरेट्स में नजदीकी बढ़ाई जाए। जब तक कारपोरेट्स किसानों का शोषण बंद नहीं करेंगे और उन्हें उचित दाम नहीं देंगे, तब तक यह दूरी नहीं मिटेगी। कारपोरेट्स किसानों से उत्पाद बहुत कम कीमत पर खरीदता है और फिर उसे आगे रिटेलर तक पहुंचने में कई गुणा मुनाफा कमाता है। इस मुनाफे का हिस्सा किसान को देना चाहिए। कृषि आधारित लघु उद्योगों के प्रति प्रोत्साहित किया जाए: गुरप्रीत सिंह

इस समय सहायक धंधे शुरू करने के लिए जो नीतिया लागू की जा रही हैं, वह फेल हो रही हैं क्योंकि सहायक धंधे शुरू करने के बाद किसानों को उत्पादों की मार्केटिंग करने के लिए सरकार से सहयोग नहीं मिलता। यानी कि किसानों सहायक धंधे से पैदा उत्पादों की मार्केटिंग के लिए सहयोग करना होगा। वहीं सरकार किसानों को लघु उद्योग और सहायक धंधे शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करे।

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