Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

इंसान बंटे, सामान बंटा, बंट गए धरती-अंबर; बंटवारे के दर्द को ताजा करता अमृतसर का 'पार्टिशन म्यूजियम'

भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दर्द की कहानी सुनकर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। विभाजन की त्रासदी में 20 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। अमृतसर में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित एक ‘पार्टिशन म्यूजियम’ बनाया गया है। यह दो देशों के बीच हुए बंटवारे पर आधारित दुनिया का पहला म्यूजियम है। जिसकी दिवारें आज भी बंटवारे के दर्द को ताजा करती हैं।

By Nitish Kumar Kushwaha Edited By: Nitish Kumar Kushwaha Updated: Wed, 14 Aug 2024 07:13 PM (IST)
Hero Image
पार्टिशन म्यूजियम में भारत-पाकिस्तान के विभाजन की दास्तान को बयां करती हुई दीवार। (जागरण फोटो)

विपिन कुमार राणा, अमृतसर। अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के जिस अवसर पर पूरे भारतवर्ष में खुशियां बंटनी चाहिए थी, वहां दो दिन पहले ही न सिर्फ इंसान और सामान बंट गए, अपितु धरती और आसमान का भी बंटवारा हो गया। भारत माता की जय और वंदेमातरम् के जयघोष के बीच भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान अपनों ने ही अपनों को ऐसी पीड़ा दी, जो कभी भुलाई नहीं जा सकती।

जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया तो दोनों तरफ से बड़ी संख्या में पलायन हुआ। इस दौरान किसी का परिवार पाकिस्तान में छूट गया तो किसी का भारत में। 13, 14 व 15 अगस्त 1947 की इस विभीषिका ने असंख्य महिलाओं के सुहाग उजाड़ दिए, आबरू तार-तार हो गई, माओं की कोख सूनी हो गई तो कइयों के बुढ़ापे का सहारा हमेशा के लिए छिन गया।

बंटवारे की त्रासदी में गई थी 20 लाख लोगों की जान

जिन्होंने वह दौर देखा है, उनकी स्मृति से ट्रेन का वह दृश्य आज भी ओझल नहीं होता, जब पाकिस्तान से खून से सनी लाशों से भरी ट्रेन अटारी पहुंची थी। शवों के ढेर में अपनों को ढूंढ़ते लोगों का क्रंदन आज भी दिलों को चीर देता है। बंटवारे की इस गहरी खाई में तब 20 लाख से अधिक लोगों की जान चली गई थी।

यह भी पढ़ें: विभाजन का दर्द... पाकिस्तान से आकर कानपुर में बसे थे सिंधी शरणार्थी; आज भी नहीं भुला पाते बंटवारे का वह दौर

रूह कंपा देने वाली कड़वी यादों को टाउन हाल स्थित पार्टिशन म्यूजियम ने संजो रखा है। म्यूजियम में प्रविष्ट होते ही उस दौर की कुस्मृतियों की याद दिलाती वस्तुएं देखकर हृदय में टीस होने लगती है। पाकिस्तान सीमा से लगभग 29 किलोमीटर की दूरी पर श्री हरिमंदिर साहिब व जलियांवाला बाग के निकट स्थित इस म्यूजियम की हर दीवार बंटवारे के दर्द को समेटे हुए है।

दरअसल, यह एक संग्रहालय है जिसे आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ट्रस्ट की ओर से टाउन हाल में बनवाया गया है। इसे ही ‘पार्टिशन म्यूजियम’ नाम दिया गया है। दो देशों के बीच हुए बंटवारे पर आधारित यह दुनिया का पहला संग्रहालय है।

खतों में दर्ज दहशत की कहानी

म्यूजियम की दीवारों पर दर्ज दस्तावेजों में ऐसे खत भी लगे हैं, जो बंटवारे के समय के दहशत को बयां करते हैं। लाहौर में रहने वाले मेजर जगत सिंह के परिवार ने 17 अगस्त तक पलायन नहीं किया। उनका मानना था कि लाहौर भारत का होगा। 17 अगस्त के बाद मेजर जगत सिंह ने जैसे-तैसे नदी पार की, लेकिन पीछे मुड़कर देखा तो दंगाई उनके पिता को तलवारों से काट रहे थे।

पाक आर्मी के कैप्टन एनएस खान ने सितंबर के शुरुआती दिनों में एक खत में लिखा कि उनकी जमीन गुरदासपुर में थी, जिसे बचाते हुए उनके भाई की मौत हो गई। उनकी भतीजी लापता है। उन्होंने भारत में आर्मी के एक अधिकारी को खत लिखकर उनकी भतीजी को ढूंढ़ने के लिए मदद मांगी थी।

यह भी पढ़ें: On this day: आज ही के दिन हुआ था देश का बंटवारा, पाकिस्तान को मिली थी आजादी; पढ़िए 14 अगस्त से जुड़ा इतिहास

गुड़िया का संदूक

1947 को सुदर्शना कुमारी आठ साल की थी। पाकिस्तान में रहने वाली सुदर्शना के पास छोटा सा संदूक था। उसमें वह अपनी गुड़िया को सुलाती थी। उसका बालमन गुड़िया को संवारने और संदूक को चमकाने में ही लगता था। देश विभाजन की घोषणा में सुदर्शना के परिवार को पाकिस्तान से पलायन करना पड़ा।

समय बहुत कम था। सबका जीवन खतरे में था। आनन-फानन में परिवार के हाथ जो आया, वह उठाया। सुदर्शना की जिद थी कि वह अपना संदूक जरूर साथ लेकर जाएगी। हड़बड़ी में संदूक तो उठा लिया गया, लेकिन उसकी गुड़िया वहीं छूट गई। नन्हीं सुदर्शना दोनों हाथों में संदूक उठाकर पाकिस्तान से सपरिवार भारत पहुंची। यह संदूक म्यूजियम में मौजूद है।

फुलकारी सूट व ब्रीफकेस

भूरे रंग का चमड़े का ब्रीफकेस और जैकेट देखने में जितने आकर्षक हैं, उससे कहीं ज्यादा दर्दनाक इनकी कहानी है। यह फुलकारी सूट और ब्रीफकेस प्रीतम कौर व भगवान सिंह मैणी के हैं। अविभाजित भारत में भगवान सिंह मैणी मियांवाली के रहने वाले थे, जबकि प्रीतम कौर गुजरांवाला की। विभाजन से पहले इनकी सगाई हुई थी।

दोनों परिवार विवाह की तैयारियां कर रहे थे कि विभाजन की खबर आ गई। घर छोड़ना पड़ा। उपद्रवियों से बचते-बचाते ये लोग एक-दूसरे से बिछड़ गए। प्रीतम की गोद में दो साल का भाई था। एक बैग था, जिसमें उन्होंने अपनी सबसे प्रिय फुलकारी जैकेट रखी थी। यह जैकेट प्रीतम कौर ने खुद ही बुनी थी।

यह भी पढ़ें: '...या तो पाकिस्तान का भारत में विलय होगा या इतिहास से समाप्त होगा', विभाजन विभीषिका दिवस पर बोले सीएम योगी

वह आनन-फानन में अमृतसर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गईं। प्रीतम अमृतसर में शरणार्थी शिविर में पहुंची। यह संयोग ही था कि प्रीतम कौर को इसी शिविर में भगवान सिंह दिखाई दिए। वह एक ब्रीफकेस लाए थे, जिसमें प्रापर्टी के दस्तावेज और स्कूल सर्टिफिकेट थे। 1948 में उनका विवाह हुआ। भगवान सिंह और प्रीतम कौर लुधियाना चले गए।

एसपी रावल की गागर से बुझी थी शरणार्थियों की प्यास

एसपी रावल पाकिस्तान के मिंटगुमरी से संबंधित थे। उनके पिता पाकिस्तान में अमीर जमींदार के रूप में जाने जाते थे। विभाजन के दौरान रावल को परिवार के साथ एक रेहड़े पर घरेलू सामान लादकर भारत आना पड़ा। इसी सामान में एक तांबे की गागर भी थी। गागर इसलिए रखी गई थी, ताकि रास्ते में पानी की कमी न हो। जब वह कुरुक्षेत्र रिफ्यूजी कैंप में पहुंचे तो इसी गागर से सभी को पानी पिलाते थे।

चारपाई लेकर भारत आया था परिवार

यह चारपाई कमल नैन भाटिया की है। विभाजन के दौरान उन्होंने एक मुसलमान खुदाबख्श की सहायता से अपने परिवार को सुरक्षित भारत भेज दिया। परिवार को एक चारपाई दी थी, ताकि रात को कहीं रुक कर आराम कर लें। कमल नैन खुद 1951 में भारत आए। इसके बाद परिवार के साथ मथुरा चले गए। पाकिस्तान से लाई चारपाई म्यूजियम में सुसज्जित है।

यह भी पढ़ें: विभाजन का दर्द: पाकिस्तान से आए भारत, बार-बार देखा संघर्ष का दौर; अब प्रदेशभर में फैलाया टॉफी का कारोबार

शकुंतला के विवाह के दिन की साड़ी म्यूजियम में प्रदर्शित

अमृतसर की शकुंतला खोसला 1935 में विवाह बंधन में बंधकर लाहौर गई थीं। विभाजन के दौरान जब दंगे भड़के तब शकुंतला परिवार सहित अमृतसर लौटना चाहती थीं, पर उनके पति लाहौर में रहकर ही व्यापार करना चाहते थे। कुछ महीनों तक वह रिश्तेदारों के यहां छिपकर रहते रहे।

जब रिश्तेदारों को जान से मारने की धमकियां मिलीं तब शकुंतला और उनके पति को वहां से निकलना पड़ा। शकुंतला अपने साथ वह साड़ी लेकर आईं जो उन्होंने विवाह के दिन पहनी थी। यह साड़ी भी म्यूजियम में प्रदर्शित है।

रेडियो पर सुनते थे खबरें

अमोल साही का परिवार विभाजन से पहले पेशावर में रहता था। उनके पिता का सूखे मेवों का कारोबार था। जब दंगे भड़के, अमोल व उनके परिवार को कुछ मुस्लिम कर्मचारियों ने सूखे मेवों से भरे ट्रक में छुपाकर सुरक्षित स्थान पर भेज दिया।

अमोल के परिवार की महिला सदस्याओं ने बुर्का पहनकर जान बचाई। अमोल अपने साथ रेडियो लेकर आए। इस रेडियो पर दंगों से जुड़ी हर खबर को वह सुनते और दूसरों को बताते। यह रेडियो भी म्यूजियम में शोभायमान है।

यह भी पढ़ें: विभाजन का दर्द: 77 साल बाद भी बंटवारे को याद नम हो जाती हैं जगतार सिंह की आंखे, लाहौर से आए थे ग्वालियर

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर