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धनोए कलां में 'पुल कंजरी' को पर्यटकों का इंतजार

एतिहासिक धरोहर पुल कंजरी को कुछ साल पहले प्रशासन ने करोड़ों रुपये खर्च करके नवीनीकरण किया था।

By JagranEdited By: Updated: Sat, 20 Aug 2022 08:00 AM (IST)
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धनोए कलां में 'पुल कंजरी' को पर्यटकों का इंतजार

हरीश शर्मा, अमृतसर: एतिहासिक धरोहर पुल कंजरी को कुछ साल पहले प्रशासन ने करोड़ों रुपये खर्च करके नवीनीकरण किया था। किसी समय शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का मनोरंजन करने वाली तवायफ 'मोरा' इसी पुल के ऊपर से होकर आती थी। उस समय तवायफ को कंजरी कहकर संबोधित किया जाता था। इस कारण इसका नाम पहले पुल कंजरी पड़ा और करीब दस साल पहले नाम बदलकर पुल मोरा कर दिया गया। इतिहास के पन्नों में मोरा आज भी जिंदा है। भारत-पाक सीमा से सटे गाव धनोए कलां के पास सिस्त 'पुल कंजरी' में मोरा की याद में बनाई धरोहर अपने भीतर कई यादें समेटे हुए है। इस एतिहासिक यादगार के सामने स्थित सीमा सुरक्षा बल की निगरान चौकी का नाम भी बदल कर 'बीओपी मोरा' कर दिया गया। नाम तो बदला, लेकिन पुल मोरा के दर्शनों के लिए न तो पर्यटक वहा पहुंचते हैं और न ही जिला प्रशासन ने कभी इसकी सुध ली। बारादरी, सरोवर और नहर को नया रूप दिया

गांव पुल कंजरी में बनाई धरोहर में एक बारादरी, एक एतिहासिक सरोवर के साथ मंदिर, एक पुरानी नहर व मस्जिद स्थित है। यह एतिहासिक यादगार महाराजा रणजीत सिंह की धर्म निरपेक्षता की एक मिसाल है। पुरातत्व विभाग ने एतिहासिक बारादरी, सरोवर व नहर को नया रूप दे दिया है। इस स्थल पर एक सरोवर भी स्थित है, जिसका निर्माण शेर-ए-पंजाब के शासनकाल के निर्माण कार्यो पर आधारित है। सरोवर की पौड़ी में जंगलेदार बनी दीवार चारों दिशाओं से बाड़ का काम करती है। हर दिशा के बाहर व भीतर की तरफ चार प्लेटफार्म बनाए हुए हैं। इस तालाब को योजनाबद्ध ढंग से बनाया गया है कि पुरुष, महिला व जानवर अपनी आवश्यकता के अनुसार पानी का प्रयोग कर सकें। पुरुषों के स्नान के लिए खुला स्थान है, जबकि महिलाओं के लिए जालीदार पर्दा बनाया गया है। 19वीं सदी का मंदिर भी यहां बना

सरोवर के पूर्वी दिशा में 19वीं सदी की निर्माण कला का एक नमूना मंदिर भी स्थित है। इसकी विशेषताओं में दोहरा गुंबद, ऊपर लटकता छज्जा व जालीदार ईटें हैं। गुंबद भीतर से बहुत सुंदर है। मंदिर के चारों तरफ चित्रकारी की हुई है, लेकिन उपेक्षा ने सबकुछ 'बंद' सा कर दिया है। एतिहासिक स्थल को जाती सड़क गढ्डों से भरी

यह एतिहासिक स्थल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने, इसके लिए कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। डिफेंस ड्रेन से इस एतिहासिक धरोहर तक की सड़क गढ्डों से भरी पड़ी है। इसके निर्माण में न तो जिला प्रशासन ने कोई प्रयास नहीं किया। 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान इस एतिहासिक स्थल का नुकसान हुआ, लेकिन इसका अस्तित्व आज तक कायम है।

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