Amritsar: 242 साल का इतिहास अपने अंदर संजोए हुए है मिश्री बाजार, आज आचार, चटनी और मुरब्बा भी लोगों की पसंद
दरबार साहिब के नजदीक पड़ता मिश्री बाजार वर्ष 1780 में बना था। उस समय स्थानीय लोगों के अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग भी मिश्री का व्यापार किया करते थे। आज यहां आचार चटनी मुरब्बा सरबत रूह गुलाब गुलकंद आदि भी बेचे जाते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Pankaj DwivediUpdated: Sat, 19 Nov 2022 11:05 AM (IST)
जासं, अमृतसर। गुरु रामदास जी की तरफ से बसाए गए अमृतसर शहर के अंदर अनेक बाजार हैं जो अपने-आप में इतिहास को संजोए हुए है। ये बाजार अपनी विशेषता के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध भी है। इन्हीं में से एक है दरबार साहिब के नजदीक पड़ता मिश्री बाजार।
इसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। यह बाजार करीब 242 साल पुराना है। मौजूदा समय में इस बाजार में खाने-पीने के कई तरह के प्रोडक्ट मिल जाते हैं। मगर जब यह बाजार बना था, उस समय केवल मिश्री का कारोबार हुआ करता था। उस समय लोग चीनी का प्रयोग तो दूर इसके बारे में जानते भी नहीं थे। इसलिए मिश्री ही हर किसी की पहली पसंद होती थी।
वर्ष 1780 के करीब बना था यह बाजार
पुराना शहर 12 गेटों के अंदर बसता था। यह बारह गेट महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाए थे, जिन्हें शाम के समय बंद कर दिया जाता था। ताकि कोई भी बाहरी दुश्मन शहर पर हमला न कर सके। ऐसे में शहर के अंदर हर एक आबादी के साथ कोई न कोई बाजार बसाया गया था। ताकि वहां पर लोग व्यापार कर अपनी रोजी-रोटी कमा सके।मिश्री बाजार की बात करे तो इसको 1780 के करीब बनाया गया था और स्थानीय लोगों की तरफ से यहां पर अपना व्यापार शुरू किया गया था। उस समय स्थानीय लोगों के अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग भी मिश्री का व्यापार किया करते थे। 1947 में बंटवारे के समय मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गए और वहां से आए लोगों ने यहां आकर कारोबार शुरु कर लिया।
आचार, चटनी, मुरब्बा आदि की विदेशों में भी मांगमिश्री कारोबारी सुरिंदर कुमार बताते हैं कि किसी समय यहां पर केवल मिश्री ही बेची जाती थी। मगर करीब 150 साल से यहां पर आचार, चटनी, मुरब्बा, सरबत, रूह गुलाब, गुलकंद आदि भी मिलती है। यह सारे पदार्थ यहीं पर तैयार किए जाते है और इनकी मांग केवल देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में है। क्योंकि दूर-दराज से अमृतसर घूमने आने वाले लोग वापस जाते समय अपने रिश्तेदारों या दोस्तों के लिए उक्त सामान उपहार के तौर पर ले जाते है।
इतना ही नहीं, विदेश से जब कोई पंजाबी या भारतीय अमृतसर आता है तो वह भी विशेष तौर पर यह चीजें बड़ी संख्या में अपने साथ लेकर जाते है। ताकि विदेश में रहकर भी अपने शहर की महक को महसूस कर सके। सुरिंदर कुमार ने बताया कि उनकी दुकान इस बाजार में 1933 से है। वह पांच पीढ़ियों से इस कारोबार में जुड़े हुए हैं।
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