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Mahatma Gandhi Death Anniversary 2021: बापू के आटोग्राफ के बदले डोनेशन ने बदल दी पंजाब के युवा के जीवन की धारा, पढ़ें राेचक कहानी

Mahatma Gandhi Death Anniversary 2021 राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी के आटोग्राफ के बदले मांगी डाेनेशन ने पंजाब के एक युवक की सोच और जिंदगी बदल दी। पंजाब के अमृतसर में रह रहे 103 साल के डा. बैजनाथ बहल आज भी बापू की यादें को धरोहर की तरह संजोए हुए हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Sat, 30 Jan 2021 09:29 AM (IST)
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राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की फाइल फोटो और डा. बैजनाथ बहल।
अमृतसर, [विपिन कुमार राणा]। Mahatma Gandhi Death Anniversary 2021: एक आटोग्राफ के बदले महात्‍मा गांधी ने ऐसी डोनेशन मांगी की पंजाब के एक नौजवान की सोच और जिंदगी बदल गई। इसके बाद वह बापू की राह पर ऐसे चले की कभी कदम नहीं डिगे। हम बात कर रहे हैं अमृतसर के गांधीवादी डा. बैजनाथ बहल की। वह आज 103 के हो गए हैं, लेकिन गांधीवादी सोच से समाज को बदलने का जज्‍बा ज्‍यों कि त्‍यों कायम है।

28 दिसंबर 1917 में पंजाब के कपूरथला में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी डा. बैजनाथ बहल का जीवन गांधी जी की विचारधारा को समर्पित है। बहल जब नागपुर रेलवे स्टेशन पर गांधी जी के लिए चलने वाली स्पेशल ट्रेन में उनसे मिलने पहुंचे और आटोग्राफ मांगा तो बापू ने उनसे समाज के लिए डोनेशन की शर्त रखी। इसके बाद बैजनाथ बहल की जीवनधारा ही बदल गई और तब से गांध जी की मूवमेंट में जुड़ गए।

राष्ट्रीयवादी सोच की वजह से किंग कमीशन की ट्रेनिंग से कर दिया गया था बाहर

डा. बहल उन दिनों को यादों को आज भी संजाेय हुए हैं। वह बताते हैं, 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में तिरंगा लेकर सड़क पर उतरे तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और एक साल वह मेरठ जेल में रहे। वहां उनकी मुलाकात देश के कांतिक्रारियों से हुई। 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भोपाल में उन्हें ताम्रपत्र प्रदान किया।

पुत्र कर्नल सुधीर बहल व बहू डॉ शालिनी बहल के साथ डा. बैजनाथ बहल। (जागरण)

आर्मी की वर्दी को छोड़कर ताउम्र खादी धारण की और 1972 में ताम्र पत्र मिला

पिता की गांधी जी व देश को आजाद करवाने के आंदोलन के साथ जुड़ी यादों को दैनिक जागरण से साझा करते हुए उनके बेटे रिटायर्ड कर्नल सुधीर बहल ने बताया कि पिता जी चाहे 103 साल के हो गए हैं, लेकिन पूरी जिंदगी गांधीवादी विचारधारा से ही प्रभावित रहे हैं। 1941 में जब डा. बैजनाथ ने आर्मी यानी अंग्रेजों के किंग कमीशन की नौ माह की ट्रेनिंग ज्वाइन की तो आठ माह बाद उन्हें यह कहकर निकाल दिया गया कि उनकी सोच राष्ट्रवादी है।

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वह बताते हैं, बीएससी मैथेमेटिक्स होने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि मैथेमेटिक्स का अभी समाज के लिए कोई फायदा नहीं है तो पहले लाहौर मेडिकल कालेज और 1947 में देश के बंटवारे के बाद मुंबई के केईएम (किंग एडवर्ड मेडिकल) कालेज से मेडिकल की शिक्षा ग्रहण की। भारत छोड़ो आंदोलन व महात्मा गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन की डा. बैजनाथ पर ऐसी छाप है कि सेना में आर्मी मेडिकल कोर रहते हुए आर्मी की यूनिफार्म को छोड़कर उन्होंने खादी के अलावा कोई कपड़ा शरीर पर धारण नहीं किया।

गांधी जी के निधन के दिन से पूरे साल इस दिवस पर रखते आ रहे व्रत

30 जनवरी 1948 में गांधी जी की हत्‍या हुई थी। रिटायर्ड कर्नल सुधीर बताते हैैं कि उनके पिता उनके देहांत से लेकर 2017 तक हर साल व्रत करते आए हैैं। रोचक बात यह भी है कि वह पूरा साल महीने में चार बार व्रत करते हैैं। जैसे 30 जनवरी को इस बार शनिवार आ रहा है, अब अगले काल तक जितने भी शनिवार आएंगे, वह उस दिन अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। वहीं 2017 के बाद पिता की यह परंपरा बेटे सुधीर ने धारण कर ली है।

30 को 11 बजे पूरा परिवार गांधी जी को देता है श्रद्धांजलि

रिटायर्ड कर्नल सुधीर ने बताया कि उनके घर पर गांधी विचारधारा की छाप रही है। बचपन से लेकर आज तक 30 जनवरी को 11 बजे पूरा परिवार दो मिनट के लिए मौन धारण कर गांधी जी को श्रद्धांजलि देता है। 1972 में सेना से बतौर लेफ्टिनेंट कर्नल रिटायर होने के बाद वह भोपाल में 30 साल रहे और उस समय उन्होंने वहां की स्लम आबादियों को फ्री दवाएं व मेडिकल की सेवाएं दी और उन्हीं को समर्पित रहे।

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