गुरुनगरी अमृतसर से निकल भजन सम्राट बने नरेंद्र चंचल, विदेश तक पहुंचाया माता का जगराता
नरेंद्र चंचल गुरुनगरी अमृतसर के भक्तिमस माहाैल से निकल कर भजन सम्राट बने और बरसों तक लोगों के दिलों पर राज किया। उन्होंने जगराते के माध्यम से मां अंबे की भक्ति की अलख जगाई और जगराते की परंपरा को विदेश तक पहुंचाया।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Fri, 22 Jan 2021 09:22 PM (IST)
अमृतसर, [विपिन कुमार राणा]। Bhajan Samrat Narendra Chanchal : करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले नरेंद्र चंचल गुुरुनगरी अमृतसर के भक्तिमय माहौल से निकलकर भजन सम्राट बने। उन्होंने जगरातों से मां अंबे की भक्ति की ज्याेति जलाई। नरेंद्र चंचल ने जगराते की परंपरा को देश के संग विदेश में भी पहुंचाया। अपने इस अनमोल पुत्र के चले जाने से अमृतसर उदास है।
नरेंद्र चंचल का जन्म अमृतसर की नमक मंडी गंडा वाली गली में माता कलाशवती और पिता चेतराम खरबंदा के घर हुआ। शक्ति नगर में पले-बढ़े नरेंद्र चंचल को मां के आंचल से ही भजन की गुढती मिली। बचपन से ही वह मां के साथ क्षेला में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में गाते रहे। गायन के प्रति उनकी ललक ने उन्हें भजन सम्राट बना दिया और वह लोगों के दिलों पर राज करने लगे। शुक्रवार को दिल्ली में हुए उनके देहांत का समाचार पाकर शक्ति नगर ही नहीं शहर के तमाम धार्मिक सामाजिक संगठनों में मातम छा गया।
अमृतसर में एक जगराते के दौरान भजन सम्राट नरेंद्र चंचल। (फाइल फोटो)नरेंद्र चंचल को मां कलाशवती के आंचल से ही मिली भी भजन गायन की प्रेरणा और शिक्षा
'ज्ञानश्रम' स्कूल से प्रभाकर में शिक्षा ग्रहण करने के बाद इसी में कब पांच-छह माह पढाया। संगीत में रुचि होने की वजह से उनका यहां मन नहीं लगा। गाते-गाते शहर में उनकी अच्छी खासी पहचान बन गई। माता अंबे रानी की भेंटों की वजह से मिली पहचान की वजह से ही वह बालीवुड के डायरेक्टर व महान कलाकार राज कपूर की नजरों में आए और वहां से शुरू हुए उनके सफर ने उन्हें देश-दुनिया तक पहुंचा दिया।
यह भी पढ़ें - नरेंद्र चंचल ने जालंधर के श्री देवी तालाब मंदिर में किया था पहला जगराता, यहीं से मिली प्रसिद्धिदिल्ली में शिफ्ट होने के बाद हर साल जागरता करने आते थे अमृतसर के शक्ति नगरनरेंद्र चंचल की भेंटों की बढावा टी सीरीज कंपनी से भी मिला और अमृतसर का यह लाल सबकी आखों का तारा बन गया। बाद में दिल्ली शिफ्ट होने के बावजूद उनका गुरुनगरी के लगाव बना रहा। फिल्मों में गाने के बावजूद उनकी असली पहचान उनके भजन की वजह ही रहे। चंचल हर साल 29 दिसंबर को माता वैष्णाे देवी के दरबार जाते थे। वहां 31 दिसंबर को माता के भजन गाते थे और साल का अंत करते थे। वहीं से वह अमृतसर आते थे और शक्ति नगर में होने वाले देवी जागरण में हिस्सा लेते थे। वह इस दौरार शक्तिनगर के अपने घर में हफ्ता भर रुकते थे। अमृतसर में रुकने के दौरान वह धार्मिक स्थलों के दर्शनों के अलावा बीते दिनों की यादें आसपडोस वालों से सांझा करते थे।
गुरुनगरी में भजन सम्राट नरेंद्र चंचल का स्वागत करते लोग। (फाइल फोटो)शक्तिनगर के घर की देखभाल साले करते हैं
अमृतसर में अब भी उनका घर है, लेकिन यह बंद पड़ा है। मां जब आस पड़ोस के घरों में होने वाले कीर्तन में जाती थीं और भजन वगैरह गाती थीं तो इन्हेंं भी गाने का शौक हुआ। यहां उनका घर अब ज्यादातर बंद ही रहता है। उनके सालेे उसकी देखभाल करतेे हैं। साल में चार पांच दिन के लिए यहां आते रहे हैं।
जगराते में आ नहीं पाए, झेला विरोध
अमृतसर से दिल्ली शिफ्ट होने के बाद भी चंचल हर साल अमृतसर में माता रानी के शक्तिनगर में होने वाले जगराते में जरूर आते थे। जब उन्हें बाबी फिल्म में गाने का मौका मिला तो वह उस साल अमृतसर नहीं आ सके। उसके बाद जब आए तो उन्हें क्षेत्रवासियों के विरोध का सामना करना पडा। जब उन्होंने बालीवुड फिल्म में गाने का मौका मिलने की बात कही तो लोगों को यकीनी नहीं हुआ। जब छह-सात माह बाद फिल्म के गाने रिलीज हुए तो लोगों को विश्वास हुआ कि चंचल अब फिल्मों में गाने लगे हैं। इससे क्षेत्र के लोगाें में नई खुशी छा गई।
जागरण चलता रहे इसका जिम्मा सोसायटी को सौंपाशक्ति नगर में मां भगवती के जागरण का सिलसिला न थमे, इसलिए 2010 में नरेंद्र चंचल ने मां दुर्गा वेलफेयर सोसायटी का गठन किया और इसके प्रधान की जिम्मेदारी विक्की दत्ता को सौंपी। चंचल हर साल जागरण में हाजिरी भरने के लिए आते थे और प्रोफेशनल सिंगर होने के बावजूद वहां फ्री गाते थे। इसके साथ ही जागरण के लिए और भी जिस तरफ के सहयोग की जरूरत होती थी, सोसायटी को देते थे। यहां मां भगवती के जागरण का सिलसिला 2010 से लगातार जारी है।
श्री दुर्याग्णा तीर्थ में देते थे फ्री सेवाएंश्री दुर्याग्या तीर्थ कमेटी के महासचिव अरुण खन्ना ने बताया कि नरेंद्र चंचल के जाने से कभी न पूरी होने वाली क्षति हुई है। तीर्थ कमेटी के हर आग्रह को वह सहर्ष स्वीकार करते थे और तीर्थ में होने वाले किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में गाने का वह कोई पैसा नहीं लेते थे। उल्टा कार्यक्रम के दौरान जो पैसे इकटठे होते थे, वह भी तीर्थ में चढ़ा जाते थे।
श्री दुर्याग्या तीर्थ में की कारसेवा भीनरेंद्र चंचल अंतिम बार श्री दुर्याग्या तीर्थ में 2018 में हुई कारसेवा में अमृतसर आए। कारसेवा के दौरान वहां हुए धार्मिक कार्यक्रमों में उन्होंने शिरकत की और माता रानी की भेंटे गाते हुए लोगों को कारसेवा के लिए प्रेरित किया। कारसेवा में वह खुद से भी एक लाख रुपये भेंट करके गए।पडोसियों को सुनाते थे माता की भेंटें
नरेंद्र चंचल अमृतसर के अपने घर में रहते थे तो आस-पडोस के लोगें को कैलेंडर और अपनी भेंटों की कैसेट आदि देते थे। वे पड़़ोसियों को हें भेंट गाकर भी सुनाते थे। उनके पडोसी शिवकुमार और वीना ने बताया कि चंचल काफी मिलनसार स्वभाव के थे। जब आते थे साल अपना कैलेंडर देकर जाते थे और काफी काफी देर तक बातें करते रहते थे। इस दौरान वह बीच-बीच में भेंटे भी गाकर सुनाते थे।यह भी पढ़ें: तूने मुझे बुलाया शेरावालिये... गाने वाले भजन सम्राट नरेंद्र चंचल जालंधर को मानते थे कर्मभूमि
पडोस में ही बैकरी की दुकान करने वाले लुबवेल पेस्टी शाप के इंद्रजीत ने बताया कि उनकी चंचल से बहुत पुरानी जान पहचान रही है। जब भी आते थे तो वह सामान तो मेरे यहां से लेते ही थे, साथ ही इतने बडे गायक होने के बावजूद वह जमीन से जुडे हुए थे और हर एक का दुख-सुख सुन उनसे जो बन सकता था, वह करते थे।यह भी पढ़ें: नरेंद्र चंचल को प्रिय थे जालंधर के लेखक बलबीर निर्दोष के लिखे भजन, आखिर तक संपर्क में रहे दोनों
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