जलियांवाला बाग नरसंहार : नहीं लगेगा 'शहीदों की चिताओं' पर मेला, सन्नाटे से शहीदों को श्रद्धांजलि
जालियांवाला बाग नरसंहार के आज 101 साल हो गए लेकिन यह पहला मौका है कि यहां कोई कार्यकम नहीं होगा और शहीदों को सन्नाटा श्रद्धांजलि देगा।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Mon, 13 Apr 2020 11:37 AM (IST)
अमृतसर,जेएनएन। यह पहला मौका है कि 'शहीदों की चिताओं' पर मेला नहीं लगेगा और जालियांवाला बाग में देश पर कुर्बान हुए लाेगों को सन्नाटा श्रद्धांजलि देगा। ब्रिटिश शासकाें की क्रूरता की गवाह जालियांवाला बाग में आज कोई कार्यक्रम नहीं होगा। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में किए गए नरसंहार को 101 साल हो गए हैं। ऐसा पहली बार है जब 13 अप्रैल को यहां किसी भी तरह का कार्यक्रम नहीं हो रहा है। कोरोना वायरस के कारण जलियांवाला बाग को फिलहाल 15 जून तक पूरी तरह से बंद कर दिया गया है।
जालियांवाला बाग के अंदर चल रहे निर्माण कार्य के कारण इसे 15 फरवरी से बंद किया गया था, लेकिन 13 अप्रैल को खोला जाना था। 20 करोड़ रुपये केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय की देख-रेख में खर्च किए जा रहे हैं। 65 प्रतिशत काम पूरा हो चुका हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए यहां एक सभा हो रही थी। अंग्रेज फौज के जनरल डायर ने फोर्स के साथ जालियांवाला बाग को घेर लिया। शांतिपूर्ण सभा कर रहे लोगों पर गोलियां चलवानी शुरू कर दीं। इसमें सैकड़ाें निर्दोष लोग माैके पर ही मारे गए। चारों ओर कोहराम और हाहाकार मच गया। पूरा बाग रक्त से सराबोर हो गया।
आज भी जालियांवाला बाग में अंग्रेजों की दरिंदगी के निशान मौजूद हैं। जालियांवाला बाग की चारदीवारी पर गोलियों के निशान मौजूद हैं। नरसंहार के निशां देखकर आज भी लाेगों की आखें नम हो जाती हैं।इस नरसंहार में कितने लोग शहीद हुए इसका सही आंकड़ा आजतक स्पष्ट नहीं हो पाया है। अलग-अलग अभिलेखाें में लग संख्याएं दर्ज हैं। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते हैं। इनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग और छह सप्ताह का एक बच्चा था।
इतिहासकार इस नरसंहार में एक हजार से ज्यादा लोगों के शहीद होने की बात भी करते हैैं। यह एक ऐसी घटना थी जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था और पूरे आंदोलन ने नया मोड़ ले लिया था। इस नरसंहार ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था।विश्व इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है 13 अप्रैल 1919
13 अप्रैल 1919 विश्व इतिहास की सबसे काली तारीखों में शामिल है। एक शांतिपूर्ण सभा में भाग लग रहे निरपराध हजारों लोगों पर अंग्रेजों द्वारा अंधाधुंध गोलियां बरसाने की इस घटना पर आज ब्रिटिश सरकार भी शर्मिंदा है। ब्रिटेन ने इस नरसंहार के लिए कई बार शर्मिंदगी जताई है,लेकिन माफी आज तक नहीं मांगी है। आज भी हर भारतीय इस नरसंहार के जख्म से आहत है।
अंग्रेज शासकों के रौलेट एक्ट भारत के लाेगों में रोष था। इस एक्ट पर शांतिपूर्ण विरोध के लिए हजारों लोग 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जालियांवाला बाग में जमा हुए थे। लोग शांतिपूर्वक सभा कर रहे थे तभी जनरल डायरी वहां फाेर्स के साथ पहुंच गया और बाग के गेट को बंद कर निहत्थे लोगों पर गोलियां की बारिश शुरू करवा दी। सभा में मौजूद पुरुष, महिलाएं और बच्चे बचने के लिए जालियांवाला बाग में इधर-उधर भागते रहे, लेकिन दरिंदे जनरल डायरी पर लाेगों के चित्कार का कोई असर नहीं हुआ।
यह थी सभा की पृष्ठभूमि
दरअसल तत्कालीन ब्रिटिश शासक के क्रांतिकारियों ने होश उड़ा दिए थे और उनको अपने शासन पर खतरा नजर आया था। इस कारण अंग्रेजों ने विवादित रौलेट एक्ट पास किया था। इसके तहत किसी व्यक्ति को महज शक के आधार गिरफ्तार किया जा सकता था। इस पर पूरे भारत में उबाल आ गया था। इस काले कानून को 21 मार्च 1919 को लागू किया गया था। इस एक्ट के विरोध में देशभर में विरोध सभाएं हो रही थीं।
महात्मा गांधी ने 30 माच्र 1919 को लोगों से देशभर में सभाएं कर और जुलूस निकाल कर इसका कानून का विरोध करने का आइ्वान किया था। बाद में यह तारीख 6 अप्रैल को कर दिया गया। इस दिन पूरे देश में हड़ताल हुई और पंजाब में इसका खासा असर हुआ। अमृतसर के लोग इसमें सबसे अधिक सक्रिय रहे। इस दिन अमृतसर बंद था और लोग जालियांवाला बाग में जमा हो रहे थे। इसी दौरान दो प्रमुख नेताओं डॉ. सतपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू सहित कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इससे लोगों में गुस्सा फूट पड़ा। 10 अप्रैल 1919 में अमृतसर में दंगा भड़क गया और लाेगों ने अंग्रेजों पर हमले भी किए।
इसके बाद हालात सामान्य हो गए और लोग गेहूं की कटाई की तैयारी कर रहे थे। बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को जालियांवाला बाग में शांतिपूर्ण सभा रखी गई थी। इसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। सभा शाम करीब साढ़े चार बजे शुरू हुई। सभा के बारे में सूचना मिलते ही जनरल डायर तिलमिला उठा। वह भारी पुलिस फोर्स के साथ जालियांवाला बाग पहुंच गया। जनरल डायरी वहां जब पहुंचा तो दुर्गादास भाषण दे रहे थे।
निहत्थे लोगों पर हुई करीब 1650 राउंड फायरिंगइसी दौरान पांच बजकर पांच मिनट पर बाग का गेट बंद कराकर जनरल डायर ने सभा में आए लोगों पर फायरिंग का आदेश दे दिया। फाेर्स ने निरपराध लोगों पर गाेलियों की बारिश कर दी। चारो ओर चीख-पुकार मच गई। पूरे जालियांवाला बाग रक्तरंजित हो गया। स्वयं जनरल डायरी ने अपने संस्मरण में लिखा कि छह मिनट में करीब 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं।
गोलियों से बचने को कुएं में कूदे लोग
उस समय जालियांवाला बाग में एक ही गेट था और जनरल डायर ने इसे बंद कर वहां फोर्स तैनात कर रखी थी। फायरिंग हुई तो लोग गेट की ओर भागे, बाग की ऊंची दीवारों को फांद कर बाहर निकलने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे और गाेलियों के शिकार बने। गाेलियों से बचने को लोग बाग में बने कुएं में कूद गए और मौत के शिकार हो गए। बताया जाता है कि बाग से दो दिनों तक शव निकाले जाते रहे। कई इतिहासकारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से बताया कि बाग से 1200 से 1500 शव निकाले गए थे। इसके साथ ही कुएं से करबी 120 लोगोंं के शव मिले। हालांकि सरकारी आंकड़ा शहीदों की संख्या अलग ही बताते हैं।
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