Ram Mandir: 32 साल पहले कार सेवकों को लगाया था तिलक, अब प्राण-प्रतिष्ठा में लंगर की सेवा करेंगी पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांता चावला
Ram Mandir वर्ष 1990 में श्री राम मंदिर के संघर्ष के लिए मैं अपने जत्थे के 200 श्रीराम भक्तों के साथ अयोध्या जाने को तैयार थी लेकिन श्रीराम जन्मभूमि के आंदोलन में शामिल पदाधिकारियों के आदेश आने पर रुकना पड़ा। 1992 में दोबारा मौका मिला तो अयोध्या तक पहुंची और सौभाग्य से श्रीराम की जन्म भूमि पर आरती करने का भी अवसर मिला।
संवाद सहयोगी, अमृतसर। संवाद सहयोगी कमल कोहली से अमृतसर से पंजाब की पूर्व मंत्री प्रोफेसर लक्ष्मीकांता चावला ने राम मंदिर से जुड़ा एक संस्मरण साझाा किया। लक्ष्मीकांता का यह किस्सा कारसेवकों से जुड़ा है। आने वाली 22 जनवरी को वह प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होंगी। उनका यह संस्मरम शब्दश: प्रस्तुत है...
वर्ष 1990 में श्री राम मंदिर के संघर्ष के लिए मैं अपने जत्थे के 200 श्रीराम भक्तों के साथ अयोध्या जाने को तैयार थी, लेकिन श्रीराम जन्मभूमि के आंदोलन में शामिल पदाधिकारियों के आदेश आने पर रुकना पड़ा। सन् 1992 में दोबारा मौका मिला तो अयोध्या तक पहुंची और सौभाग्य से श्रीराम की जन्म भूमि पर आरती करने का भी अवसर मिला।
श्रीराम भक्तों की सेवा में बढ़ चढ़ कर लिया भाग
सन् 1992 में देश के किसी भी हिस्से से अयोध्या जाना राम भक्तों के लिए काफी मुश्किल हो चुका था। सरकार ने काफी सख्ती की हुई थी। उस समय महिलाओं ने भी श्रीराम भक्तों की सेवा में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। मुझे कार सेवकों को मौली बांधने व तिलक लगाने की महान सेवा मिली थी। इस राम काज के लिए मैं कार सेवकों के साथ अयोध्या के लिए निकल पड़ी।मन में सवार थी राम धुन
जब में कार सेवकों के हाथों में मौली बांध रही थी और तिलक लगा रही थी तो किसी के माथे पर शिकन नहीं थी। न ही जान की परवाह थी। मन में एक धुन थी और वो थी राम धुन। लक्ष्य भी एक ही था कि मंदिर वहीं बनाएंगे। राम भक्ति में किसी को भूख प्यास की चिंता भी नहीं थी। यह देखकर मन भावुक हो रहा था लेकिन राम काज के लिए तिलक लगा कार सेवकों को अयोध्या के लिए रवाना किया और श्रीराम भक्तों के साथ आंदोलन में शामिल होने के लिए निकल पड़ी।
ट्रेन पर हुआ पथराव
जब मेरी ट्रेन लखनऊ के पास से गुजर रही थी तो कुछ अराजक तत्वों ने पथराव भी किया गया था। 6 दिसंबर 1992 के पहले के चार दिन काफी तनावपूर्ण माहौल था। सरकार की यही मंशा थी कि राम भक्त बाबरी मस्जिद तक न पहुंचें, परंतु देश के अलग-अलग कोने से आए श्री राम भक्तों में ऐसा जोश था कि श्री राम मंदिर को आजाद करवाने के लिए वह निडरता के साथ आगे बढ़ रहे थे।
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