Ram Mandir: 166 साल पहले 'निहंग' सिखों ने लड़ी थी राम मंदिर की लड़ाई, पहली बार बाबरी में लिखा था 'जय श्री राम'
Ram Mandir साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मानो देश में खुशी की लहर दौड़ गई। इस बीच बीते कई दशकों के इतिहास और संघर्ष को याद किया गया। लेकिन इस बीच लड़ाई में सिख गुरुओं का संघर्ष अछूता सा नजर आया। सिख गुरु निहंग ने धर्म की रक्षा के लिए राम जन्मभूमि के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।
जेएनएन, अमृतसर। आने वाली 22 जनवरी का देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है। यह पल देश के लिए ऐतिहासिक है। राम मंदिर की लड़ाई दशकों नहीं बल्कि सैंकड़ों साल पुरानी है। यह उस दौरान की बात है जब देश में इस्लामिक आक्रमणकारी अपने पांव पसार रहे थे। सोमनाथ मंदिर से लेकर मथुरा समेत उत्तर भारत में इन्हीं आततातियों का वर्चस्व था। जिनकी शुरुआत तो गुलाम वंश से हुई मगर अंत मुगलों के साथ हुआ। मुगल समय में ही हमें बाबरी मस्जिद के उद्भव का इतिहास नजर आता है। इतिहासकारों की मानें तो बाबरी मस्जिद का उद्भव मुगल वंश के पहले सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में किया गया था।
'निहंग' समुदाय का योगदान
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मानो देश में खुशी की लहर दौड़ गई। इस बीच बीते कई दशकों के इतिहास और संघर्ष को याद किया गया। लेकिन इस बीच लड़ाई में सिख गुरुओं का संघर्ष अछूता सा नजर आया। सिख गुरु 'निहंग' ने धर्म की रक्षा के लिए राम जन्मभूमि के लिए अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। सन् 1868 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन का एक आदेश आया। यह आदेश दो सम्प्रदायों के बीच धार्मिक मनमुटाव को देखते हुए लाया गया था। तत्कालीन बाबरी मस्जिद पर हो रहे वाद-विवाद को देखते हुए ब्रिटेन सरकार ने आदेश दिया की ढांचे की बाहरी ओर हिंदू पूजा अर्चना करेंगे, जबकि अंदर मुस्लिम समुदाय नमाज अदा करेंगे। इतिहासकार मानते हैं उन्होंने इस संदर्भ में एक दीवार का भी निर्माण किया। इस आदेश की जानकारी जब निहंग सिखों को लगी तो उन्होंने आदेश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और तत्कालीन ढांचे पर कब्जा करने की कोशिश की।
दीवारों पर लिखा 'राम-राम'
निहंग समुदाय के जत्थे ने चारों से विवादित ढांचे को घेर लिया और दिवारों पर राम-राम और अन्य धार्मिक प्रतीक चिन्ह स्थापित कर दिए। इसके साथ ही उन्होंने वहां यज्ञ और पूजन भी किया। तत्कालीन प्रशासन ने निहंग के लगभग 25 सिखों के खिलाफ केस दर्ज किया। प्रशासन ने उन्हें किसी तरह वहां से हटा तो दिया मगर उनका वर्चस्व कायम रहा। उन्होंने विवादित ढांचे के सामने अपना ढेरा दाल दिया। हालांकि, इसके बाद कानूनी लड़ाई जारी रही। मगर निहंग समुदाय के इस फैसले ने वाकई निहंग समुदाय के अदम्य साहस की नजीर पेश की थी। इस घटना ने बता दिया था कि सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टि से हिंदु और सिख समुदाय की जड़ें कितनी मजबूत हैं।
खुशी में निहंग सिख लगाएंगे 'लंगर'
आने वाली 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा है। इस बात की निहंग सिख समुदाय को भी है। इसे लेकर निहंग बाबा फकीर सिंह के आठवें वंशज बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने लंगर लगाने की घोषणा की है। इसे संदर्भ में उन्हें अयोध्या प्रशासन से अनुमति भी मिल गई है।यह भी पढ़ें- उम्मीदें 2024: हिमाचली पहाड़ियां नहीं बनेंगी इलाज में खलल, गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य से जुड़ी हर राह आसान करेंगे 'लाइफ सेविंग बैंक'
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