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क्या होता है तनखैया, जिसके तहत महाराजा रणजीत सिंह तक पर हुई कार्रवाई; पीठ पर पड़े थे कोड़े

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के चीफ सुखबीर सिंह बादल को तनखैया करार दे दिया गया है। शिअद के 23 नेताओं को तनखैया घोषित किया जा चुका है। यहां तक की महाराजा रणजीत सिंह और पूर्व राष्ट्रपति को भी तनखैया करार दिया गया था। लेकिन सवाल है कि आखिर तनखैया करार (What is Tankhaiyau action) होता क्या है और इसके तहत क्या सजा दी जाती है।

By Kailash Nath Edited By: Prince Sharma Updated: Sat, 31 Aug 2024 08:45 PM (IST)
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Punjab Latest News: तनखैया करार क्या होता है (जागरण फोटो)

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघवीर सिंह के आदेशानुसार शिरोमणि अकाली दल की सरकार में मंत्री रहे 23 लोगों को अकाल तख्त पर पेश होना होगा।

हालांकि इसमें से पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल समेत छह लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि सुच्चा सिंह लंगाह को सिख पंथ से निष्कासित किया जा चुका है। इस अनुसार 16 पूर्व मंत्रियों को अकाल तख्त पर पेश होना होगा।

पेश होंगे ये पूर्व मंत्री

सुखबीर बादल, आदेश प्रताप कैरो, गुलजार सिंह रणीके, परमिंदर सिंह ढींढसा, जनमेजा सिंह सेखों, बिक्रम मजीठिया, सोहन सिंह ठंडल, सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा,

शरणजीत ढिल्लों, डॉ. दलजीत सिंह चीमा, बीबी जगीर कौर, बीबी उपिंदरजीत कौर, सरवन सिंह फिल्लौर, हीरा सिंह गाबड़िया, मनप्रीत बादल,

इन पूर्व मंत्रियों की हो चुकी हैं मौत: प्रकाश सिंह बादल, सेवा सिंह सेंखवा, तोता सिंह, अजीत सिंह कोहाड़, रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, कैप्टन कंवलजीत सिंह।

क्या होता है तनखैया करार

तनखैया का अर्थ सिख धर्म से बाहर कर देने से है। आमतौर से इस शब्द का अर्थ हुक्का-पानी बंद कर देने से समझा जा सकता है। जब किसी व्यक्ति को तनखैया करार दे दिया जाता है तो उसे सजा दी जाती है।

महाराजा रणजीत सिंह से चला तनखैया करार देने का सिलसिला 

महाराजा रणजीत सिंह पर जत्थेदार ने बरसाए थे कोड़े

शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह धार्मिक प्रवृत्ति के थे। एक बार उन्हें मोरा नाम की एक मुसलमान महिला मिली। उसने इच्छा जताई कि महाराजा किसी दिन उसके घर पधारें।

वे उसके घर चले गए, लेकिन इस वजह से उन्हें तनखैया करार दिया गया। उस वक्त श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार अकाली फूला सिंह ने महाराजा की पीठ पर कोड़े मारे। इसके साथ ही हर्जाना भी दिया गया, जिसके बाद महाराजा को माफी दी गई।

राष्ट्रपति की दलील भी काम न आई

वर्ष 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ। इस ऑपरेशन की भनक उस वक्त के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को नहीं थी। श्री हरमिंदर साहिब पर हुए इस सैन्य कार्रवाई से आहत जैल सिंह ने अगले ही दिन वहां का दौरा करने पहुंचे। परिक्रमा करने के बाद दो घंटे वहां के ग्रंथियों से बात की।

वहां मौजूदा लोगों को लगा कि ज्ञानी कांग्रेस सरकार की तरफ से यहां माफी मांगने आए हैं। लोग आहत हो गए। साथ ही वो फुटेज और फोटो भी रिलीज़ की गई, जिसमें ज्ञानी स्वर्ण मंदिर का दौरा कर रहे थे।

इस फुटेज में ज्ञानी जूतों के साथ वहां मौजूद दिखाई दिए और साथ ही एक व्यक्ति उनके लिए छाता लिए हुआ था। 2 सितंबर 1984 को ज्ञानी को तनखैया करार दे दिया गया।

मां की मौत पर नहीं आया कोई ग्रंथी

इंदिरा और खासकर राजीव गांधी के करीबी रहे बूटा सिंह को भी 1984 में तनखैया करार दे दिया गया था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत अकाल तख्त क्षतिग्रस्त हो गया था।

बूटा सिंह इंदिरा गांधी के करीबी थे, वह अपना लंदन का दौरा अधूरा छोड़ कर अकाल तख्त की कार सेवा की तैयारी में जुट गए। जब कोई ग्रंथी कार सेवा के लिए राजी नहीं तो बूटा सिंह पटना से एक ग्रंथी भी ले आए।

सिखों और खासकर अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार को गवारा नहीं था। तनखैया करार दिए जाने के बाद बूटा सिंह ने किसी भी तरह की सजा का पालन करने से इनकार कर दिया। नतीजा ये हुआ कि कुछ ही दिन बाद जब मां की मौत हुई तो कोई भी ग्रंथी पाठ करने के लिए राज़ी ना हुआ।

मुख्यमंत्री रहते हुए बरनाला के गले में लटकाई गई थी तख्ती ‘मैं पापी हूं’

ऑपरेशन ब्लू स्टार के पास सुरजीत सिंह बरनाला पहले मुख्यमंत्री बने। अकाली दल तब तक दो टुकड़ों में बंट चुका था। एक के नेता थे प्रकाश सिंह बादल और दूसरे के हरचरन सिंह लोंगोवाल। बरनाला अकाली दल (लोंगोवाल) से थे।

फरवरी 1987 में अकाल तख्त के जत्थेदार दर्शन सिंह रागी ने अकाली एकता की कोशिश की लेकिन बरनाला नहीं माने। तब बरनाला ने तनखैया घोषित होने का खतरा उठाते हुए भी कहा कि मुख्यग्रंथियों को राजनैतिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। इस पर उन्हें तनखैया करार दे दिया गया।

जत्थेदार के आदेश अनुसार बरनाला को अकाली दल (लोंगोवाल) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। फिर एक हफ्ते के लिए उन्हें गुरुद्वारे में जूते, फर्श और बर्तन साफ करने की सजा मिली। इस सजा के दौरान 18 दिन तक उनके गले में एक तख्ती लटका दी गई, जिस पर लिखा था कि मैं पापी हूं।

वाहे गुरु मुझे माफ करो। रस्सी से बंधे और हाथ जोड़े खड़े इस नेता को पहले कभी इतना बेबस नहीं देखा गया था. इसके अलावा 11 दिनों के 5 अखंड पाठ करवाने और उसमें शामिल होने की सजा भी थी। 4400 रुपए का चढ़ावा भी चढ़ाया गया जिसके बाद उन्हें माफी मिली।

मजीठिया भी तनखैया घोषित हुए थे

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अरुण जेटली के चुनाव प्रचार के दौरान बिक्रम मजीठिया ने गुरबाणी की तुकों से ही छेड़-छाड़ कर गए। मजीठिया ने कहा

देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं, न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अरुण जेटली जीत करौं। जबकि तुक ये थी, देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं, जिस पर डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं।

जिस पर मजीठिया को तनखैया करार दिया गया। सजा थी 5 तख्तों में लंगर सेवा, श्री अकाल तख्त में अखंड पाठ करवाना, लंगर के बर्तन साफ करने और 3 दिन तक गुरबाणी पढ़नी।

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