संकट में धुंधली पडी डॉलर की चमक तो याद आया वतन, अब गांव की मिट्टी में रमे युवा
पंजाब के युवा डॉलर की चकाचौंध में विदेश चले गए थे और वहां की जिंदगी में खो गए थे। लेकिन कोरोना के रूप में आफत आई ताे उनको वतन की याद आई। यहा आकर वे गांव की मिट्टी में रम गए हैं।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Tue, 02 Jun 2020 11:25 AM (IST)
बरनाला, [हेमंत राजू]। पंजाब के युवाओं की एक चाहत होती है कि वे विदेश जाएं। डॉलर की चकाचौंध उन्हेंं अपनी ओर खींचती है। काफी संख्या में विदेश खासकर अमेरिका गए पंजाबी युवा वहां की चकाचौंध में अपने वतन और गांव को भूल गए। फिर कोरोना वायरस के रूप में ऐसी आफत आई कि वे भाग कर यहां पहुंचे। अब गांव की मिट्टी में ऐसे रम गए हैं कि विदेश जाने से तौबा कर ली है। वे परिवार के साथ मिल खेती कर रहे हैं। वे कहते हैं यहां रहकर मिट्टी से सोना निकालेंगे। माता-पिता भी अपने लाडलों काे मिट्टी और खुद से जु़ड़ाव देखकर बेहद खुश हैं।
विश्वव्यापी कोरोना संकट कहर ताे ढाया है , लेकिन इस आफत ने कई सालों की दूरियों को समाप्त कर दिया। अमेरिका जैसे देशों में ज्यादा प्रकोप होने के कारण पंजाब के युवाओं विशेषकर किसानों के बेटों का बाहर रहकर कमाई करने के प्रति आकर्षण घटने लगा है। इस संकट ने किसानों के बेटों को फिर से उनकी मिट्टी के नजदीक ला दिया है। कोरोना के कारण विदेश, दूसरे राज्यों और शहरों में रहने वाले युवा पैतृक गांव आने लगे हैं। श्रमिकों की कमी के कारण पिता का काम मे हाथ भी बंटाने लगे।
कोरोना वायरस का अमेरिका जैसे विकसित देशों में ज्यादा प्रकोप के कारण युवाओं का वहां से हुआ मोहभंगपिता-पुत्र की ऐसी ही जोडिय़ों को अब खेतों मे काम करते देखा जा सकता है। ये युवा बातचीत में साफ कहते हैं कि अब वे विदेश नही जाना चाहते। यहीं रहकर खेती करेंगे और अपनी जवां सोच से इसे आगे बढ़ाएंगे। यहां रहकर मिट्टी से सोना निकालेंगे। इनके परिजन भी खुश हैं। अब वे जमीन ठेके पर नहीं दे रहे। बेटे व परिवार के अन्य सदस्यों को साथ लेकर खेती करवाने लगे हैं, ताकि उनके बच्चों का अपनी मिट्टी से फिर लगाव व जुड़ाव हो जाए।
कहा-यहां रहकर मिट्टी से सोना निकालेंगे,परिवार भी पुरखों की जमीन पर बेटों को खेती करते देख प्रसन्नगांव हंडियाया के किसान जसवीर सिंह बताते हैं कि उनका बेटा जसविंदर पटियाला में पढ़ाई कर रहा था। कोविड-19 के कारण शिक्षण संस्थान बंद हुआ तो वह घर पर आ गया है। उसका सपना था कि वह पढ़-लिखकर वह विदेश जाएगा। अब कहता है, 'अपना ही देश अच्छा है। मैं यहीं रहकर काम करूंगा। खेत की देखभाल भी करूंगा।'
जसवीर सिंह कहते हैं, हमारे पास 25 एकड़ जमीन है। इसमें बेटा धान की सीधी बिजाई में मदद कर रहा है। मेरा भाई कुलबीर सिह व भांजा अनमोल सिंह भी इसमें मदद कर रहे हैं। बेटा खेत में घर से खाना लाने साथ ही स्प्रे भी करता है। उन्होंने बताया कि 20 वर्ष पहले की तरह किसान का पूरा परिवार इस समय खेतों में काम कर रहा है। इसका मुख्य कारण मजदूरों की कमी है। उन्होंने कहा कि पहले किसान अपने परिवार, भाइयों व रिश्तेदारों के बच्चों के साथ ही खेती किया करते थे। अनमोल ने बताया कि हम बाहर जाकर भी 16-16 घंटे बिजाई करते हैं। सालों तक वापस भी नहीं आ पाते। सही तकनीक से यहां रहकर ही खेती करें तो बाहर से ज्यादा पैसा मिलेगा।
दो माह पहले ही विदेश से लौटे, अब यहीं रहेंगेगांव जंगियाना के पूर्व सरपंच केवल सिंह के पुत्र बलजिंदर सिंह दो माह पहले ही ऑस्ट्रेलिया से लौटे हैं। केवल सिंह ने कहा, 'इस बार सोच रहे हैं कि जमीन को ठेके पर न दें क्योंकि उनका लाल (बेटा) लौट आया हैं। उसको खेतों में ट्रैक्टर चलाते देख दिल को ठंडक मिली है।'
गांव जलालदिया के हरदीप सिंह के परिवार की भी यहीं कहानी हैं। वह अपने बेटे को खेती की नई नई तकनीक सिखा रहे हैं। वह कहते हैं-जल्द ही बेटे के लिए नया ट्रैक्टर लाएंगे, जिससे बेटा खेतों में खुशहाली लाएगा। दोनों परिवारों को इस बात का मलाल नहीं कि बेटे को भेजने में लगे लाखों रुपये व्यर्थ हो गए बल्कि वे खुश हैं कि उनके पुरखों की जमीन पर उनकी विरासत खेती करेगी। उन्हें न तो अपनी जमीन किसी को ठेके पर देनी पड़ेगी और न ही संभाल के लिए किसी को रखना पड़ेगा
अब आर्गेनिक खेती की तरफ बढ़ाए कदमकस्बा धनौला निवासी किसान जसवंत सिंह ने बताया कि कनाडा में वायरस बढ़ता देख उनको बेटा करीब ढाई माह पहले ही वहां से लौट आया। कुछ दिन घर पर रहा लेकिन अब उनके साथ रोज खेत जाता है। बेटे ने इंटरनेट से नई-नई तकनीक भी सीखी। उसी कारण उन्होंने अब आर्गेनिक खेती की तरफ कदम बढ़ाए हैं। वह तो कोरोना के शुक्रगुजार हैं कि उनका बेटा उनके पास लौट आया, नहीं तो परिवार यही राख देखता रहता था कि वे अपने जिगर के टुकड़े को कब देख पाएंगे।
कृषि अधिकारी बाेल- कम होगा आर्थिक बोझ जिला कृषि अधिकारी डॉक्टर बलदेव सिंह ने बताया कि कोरोना ने किसानों के जीवन में बड़े स्तर पर बदलाव ला दिया। किसान परिवारों के साथ खेती करते दिख रहे हैं। इससे उनका आर्थिक बोझ भी कम होगा, और मुनाफा भी अधिक होगा। उन्हें रोजाना जिले के कई किसानों के फोन आते हैं जो उनसे बेटे के लौटने व उनके द्वारा बताई जाने वाली नई नई तकनीक के बताते हैं। पूछते हैं कि क्या यह तकनीक यहां के मौसम के अनुकूल हैं।
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