बठिंडा से हरसिमरत कौर बादल ने 376558 वोटों से जीत हासिल की है। पंजाब में शिअद के खाते में केवल एक ही सीट आ पाई है। ऐसे में अब पार्टी की उम्मीदें उनसे और बढ़ गई हैं। यानी की पार्टी प्रदेश में सशक्त बनाने का जिम्मा उनके हाथ में है और उन्हें 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए काफी मेहनत भी करनी होगी।
जागरण संवादाता, बठिंडा। हरसिमरत कौर बादल की बठिंडा संसदीय क्षेत्र से हुई जीत बठिंडा हलके के अलावा मालवा के अन्य विधानसभा हलकों में भी असर डालेगी। अब शिअद के पास एक ही सांसद बचा है और वे हैं हरसिमरत कौर बादल।
डाउन मालवा में बठिंडा ही एकमात्र बड़ा शहर है। जहां से जीत-हार पूरे डाउन मालवा में असर रखती है। ऐसे में हरसिमरत कौर बादल की हुई लगातार चौथी जीत से शिअद हाशिये पर जाते-जाते बच गया है। अब शिअद को सशक्त करने के लिए लोगों की बात रखने के लिए शिअद के पास एक सांसद है।
शिअद की कमान हरसिमरत कौर के हवाले
जैसे कि इतिहास गवाह है, कोई भी लहर बठिंडा-मानसा से ही शुरू होती है। वे सबसे पहले मालवा को भी प्रभावित करती है। ऐसे में अगर शिअद बठिंडा हलके से ही अपने उभार के लिए इसको एक मिशन की तरह लेकर चलती हैं तो वे शिरोमणि अकाली दल को सशक्त बनाने में कारगार साबित हो सकती हैं।ये भी पढ़ें: Bathinda Lok Sabha Election 2024: पंजाब की VIP सीट बठिंडा से अकाली दल ने मारी बाजी, परमपाल कौर नहीं दे पाईं टक्कर
इस बार विकास के अलावा पंथक एजेंडे उनके मुख्य मुद्दे रहे हैं। अगर अकाली दल पंथक मुद्दों को लगातार उठाते रहने में कामयाब हो जाता है तो शिअद का भविष्य उज्जवल हो सकता है। अगर शिअद अभी से ही पंथक मुद्दों को गंभीरता से उठाना शुरु कर देता है तो 2027 के विधानसभा चुनाव में उनको लाभ मिल सकता है।
गौरतलब है कि अकाली दल से हरसिमरत कौर बादल ने इस सीट से 376558 वोट हासिल किए हैं। वहीं आप प्रत्याशी गुरमीत सिंह ने इस सीट पर 326902 वोट हासिल किए। दोनों प्रत्याशियों के बीच जीत का अंतर 326902 वोटों से था।
विकास कार्य हैं हरसिमरत की जीत के कारण
हरसिमरत कौर बादल के जीत के कई कारण हैं। सबसे अहम कारण उनके द्वारा किए गए विकास कार्य हैं। उनके द्वारा अपने कार्यकाल में बठिंडा में एम्स, एयरपोर्ट, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, फोरलेन सड़कें व फ्लाईओवर आदि प्रोजेक्ट लाए गए थे। इससे बठिंडा बिलकुल ही बदल गया।एम्स से जहां मरीजों को राहत मिली है वहीं इसने बठिंडा की आर्थिक स्तर पर बहुत प्रभाव डाला है। इससे लोगों को रोजगार भी मिले हैं। यही वजह है कि बठिंडा हलके के लोगों द्वारा हरसिमरत कौर बादल को अपने वोट दिए हैं।
गुरमीत खुड्डियां की हार के कारण आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी गुरमीत सिंह खुड्डियां को सरकार विरोधी लहर का सामना करना पड़ा। हालांकि लोकसभा हलके के सभी विधानसभा हलकों में आप के ही विधायक थे। लेकिन फिर भी उनको छह हलकों से हार का सामना करना पड़ा।इसकी वजह सरकार विरोधी लहर ही मानी जा रही है। सबसे बुरा हाल भुच्चो हलके से हरा है। असल में विधानसभा हलकों के लोग विधायकों से नाराज हैं। क्योंकि आम घरों के लोग जीत प्राप्त करने के बाद खास बन गए थे और लोगों से उनके द्वारा दूरी बना ली गई थी। जिसका खामियाजा गुरमीत सिंह खुड्डियां को भुगतना पड़ा।
गुटबाजी का शिकार हो गए जीत मोहिंदर सिद्धू
कांग्रेस के प्रत्याशी जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू पार्टी की आपसी कलह का शिकार हो गए। उनके साथ न तो नवजोत सिद्धू का ग्रुप ही चला और न ही उनको प्रदेश कांग्रेस व राष्ट्रीय कांग्रेस का सहयोग मिला। क्योंकि प्रदेश कांग्रेस के प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग उनके नामांकन दाखिल कराने के बाद हलके में नहीं आए।जबकि इसी हलके से चुनाव लड़ने के कारण उनका यहां पर अच्छा असर रसूख था। वे टिकट की घोषणा से पहले यहां पर प्रचार भी करते रहे, लेकिन सिद्धू को टिकट की घोषणा होने के बाद वे हलके से गायब हो गए। नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा उनकी कैंपेन में आए लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व से कोई भी नेता सिद्धू की कैंपेन में नहीं पहुंचा।
किसान आंदोलन बना मलूका की हार का कारण
दिल्ली के बॉर्डर पर चला किसान आंदोलन भाजपा प्रत्याशी परमपाल कौर मलूका की हार का मुख्य कारण रहा। किसानों के विरोध के कारण वह खुल कर चुनाव प्रचार भी नहीं कर पाई। भाजपा का लक्ष्य हिंदू व अनुसूचित जाति के वोटरों पर रहा।हिंदू वोटरों का तो उनको समर्थन मिला, लेकिन अनुसूचित जाति के वोटरों का नहीं। हिंदू वोटरों का समर्थन मिलने के चलते ही वह बठिंडा में लीड कर गई और हरसिमरत कौर बादल से 518 वोट ज्यादा लेकर पहले स्थान पर रही। लेकिन देहाती क्षेत्रों में वह कोई अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई।
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