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याकूत की मजार: यहां हर भूले-भटके आशिक को मिलता है उसका महबूब, हर धर्म-मजहब के लोग प्यार पाने के लिए नवाते हैं शीश

याकूत की मजार गुरुओं पीरों की मजार हर जगह मिल जाती है और हर धर्म के लोग वहां श्रद्धा से अपना सिर भी झुकाते हैं बठिंडा की ठंडी सड़क पर स्थित लाइन पार क्षेत्र में एक मजार है। यह मजार है दिल्ली पर शासन करने वाली रजिया सुल्तान के आशिक जलालुद्दीन याकूत की। यह मजार रेल लाइन के बीच बनी हुई है। इसे लोग याकूत पीर की मजार कहते हैं।

By Sahil Garg Edited By: Prince Sharma Updated: Thu, 11 Jan 2024 03:55 PM (IST)
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याकूत की मजार: यहां हर भूले-भटके आशिक को मिलता है उसका महबूब
साहिल गर्ग, बठिंडा। गुरुओं पीरों की मजार हर जगह मिल जाती है और हर धर्म के लोग वहां श्रद्धा से अपना सिर भी झुकाते हैं। लेकिन बठिंडा में एक ऐसी मजार है, जहां आशिक विशेष रूप से अपना सिर झुकाते हैं और सजदा करते हैं। मान्यता है कि यहां जो भी आशिक सिर झुकाता है, उसे उसका प्यार मिल जाता है।

बठिंडा में है यह मजार

बठिंडा की ठंडी सड़क पर स्थित लाइन पार क्षेत्र में एक मजार है। यह मजार है, दिल्ली पर शासन करने वाली रजिया सुल्तान के आशिक जलालुद्दीन याकूत की। यह मजार रेल लाइन के बीच बनी हुई है। इसे लोग याकूत पीर की मजार कहते हैं। यहां हर धर्म के लोग एक साथ सजदा करते हैं। कहा जाता है कि अगर किसी की शादी न हो रही हो या किसी को उसका प्यार न मिल रहा हो तो अगर वह पूरी शिद्दत से यहां माथा टेके तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है। याकूत की दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता के दृष्टिकोण से मील का पत्थर साबित हो रही है। इस मजार पर दोनों समुदाय के लोग सदियों से चादर चढ़ाते आ रहे हैं।

रजिया सुल्ता में बेहतर शासक बनने के थे सारे गुण

रजिया सुल्तान में बेहतर शासक बनने के सारे गुण थे। वह पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थीं और खुले दरबार में बैठती थीं। याकूत रजिया सुल्तान को घुड़सवारी कराता था। इसी क्रम में दोनों में नजदीकियां बढ़ीं। याकूत रजिया सुल्ताना का आशिक था। बठिंडा पर हमला करने के लिए लश्करी टिब्बी पर रजिया का लश्कर पहुंचा। इसके बाद राजा अलतूनिया के साथ लड़ाई शुरू हो गई और याकूत ठंडी सड़क के पास मारा गया।

रजिया को बंदी बना लिया गया। जहां पर याकूत की मौत हुई थी, वहीं पर बाद में मजार बन गई। अब यहां पर लोग श्रद्धा से माथा टेकने आते हैं। जबकि गुलाम याकूत से उसकी प्रेम कहानी व महिला शासक होने के कारण तुर्क उनके दुश्मन हो गए। इन दुश्मनों में उनके बचपन का दोस्त बठिंडा का गवर्नर मलिक अल्तुनिया भी शामिल था। याकूत तुर्क नहीं था, इसलिए उसके प्रति रजिया के प्रेम को देखकर तुर्क विद्रोही हो गए और मल्लिका को सल्तनत से बेदखल करने के लिए षड्यंत्र में लग गए। अल्तुनिया ने रजिया की सत्ता को स्वीकारने से इनकार किया। उसके और रजिया के बीच युद्ध शुरू हो गया।

मरने के डर से रजिया अल्तुनिया से करने से हुई थी शादी

मरने के डर से रजिया अल्तुनिया से शादी करने को तैयार हो गई। इस बीच, रजिया के भाई, मैजुद्दीन बेहराम शाह ने सिंहासन हथिया लिया। अपनी सल्तनत की वापसी के लिए रजिया और उसके पति अल्तुनिया ने बेहराम शाह से युद्ध किया, जिसमें उनकी हार हुई। उन्हें दिल्ली छोड़कर भागना पड़ा और अगले दिन वो कैथल पंहुचे, जहां उनकी सेना ने साथ छोड़ दिया। वहां डाकुओं के द्वारा 14 अक्टूबर 1240 को दोनों मारे गए। बाद में बेहराम को भी अयोग्यता के कारण गद्दी से हटना पड़ा। जबकि अब तक इतिहास में ये ही पढ़ते आए थे कि रजिया के याकूत से रिश्ते थे।

रजिया विद्रोहियों से रही थी जूझती

रजिया मुश्किल से चार साल दिल्ली की सुल्तान रह पाईं और इस दौरान केवल विद्रोहियों से ही जूझती रहीं। एक जगह से दूसरी जगह विद्रोह दबाने भागती रहीं। लेकिन उस दौर में बिना पिता के इस्लामिक समाज में इस मुकाम पर पहुंचना कितना अहम था, ये इस तथ्य से समझ सकते हैं कि रजिया के बाद दिल्ली को दूसरी सुल्तान नहीं मिली। रजिया और उसके सलाहकार जमात-उद-दिन-याकुत, एक हब्शी के साथ विकसित हो रहे अंतरंग संबंध की बात भी मुसलमानों को पसंद नहीं आई। रजिया ने इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया।किंतु उसका इस संबंध के परिणाम को कम आंकना अपने राज्य के लिये घातक सिद्ध हुआ।

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