पंजाब में हर साम कम हो रहा नरमे की फसल का रकबा, इस वजह से परेशान हैं किसान
पंजाब में हर साल नरमे की फसल का रकबा कम होता जा रहा है। बीते 20 वर्षों में नरमा फसलों का रकबा घटकर आधा रह गया है। इस बार तीन लाख हेक्टेयर में नरमा की बिजाई का लक्ष्य रखा गया है।
By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaUpdated: Mon, 08 May 2023 03:05 PM (IST)
बठिंडा, जागरण संवाददाता। प्रदेश में हर साल नरमा का रकबा कम हो रहा है। फसल का उचित मूल्य न मिलने के कारण किसान नरमा बुवाई से मुंह मोड़ रहे हैं। किसान सफेद मक्खी व गुलाबी मक्खी से इतना डरे हुए हैं कि कृषि विभाग भी किसानों के इस डर को दूर करने में नाकाम रहा है। बीते 20 वर्षों में राज्य में नरमा फसलों का रकबा घटकर आधा रह गया है। इस बार भी तीन लाख हेक्टेयर में नरमा की बिजाई का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन यह भी पूरा नहीं हो पा रहा है।
बठिंडा में नरमा की बहुत बड़ी मंडी हुआ करती थी। मगर धीरे धीरे यह मंडी खत्म होने लगी। हर साल नरमा का रकबा कम होने के कारण कपास मिलें भी बंद हो गईं। पंजाब में वर्ष 1995 व 1996 में नरमा खेती का रकबा 7 लाख 42 हजार हेक्टेयर था, जो अब घटकर 2 लाख 52 हजार हेक्टेयर रह गया है। दो दशक पूर्व कपास की फसल अमरीकन सुंडी ने नष्ट कर दी थी, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं से किसानों के कर्ज के बोझ तले दबने का सिलसिला शुरू हो गया।
इसके बाद नरमा फसलों का क्षेत्रफल लगातार कम होने लगा। नतीजा यह रहा है कि किसान धान की बिजाई करने लगे, इसके साथ जमीनी पानी नीचे जाने लगा। हालांकि अमरीकन सुंडी के हमले की रोकथाम के लिए साल 2007 में बीटी बीज बाजार में लाया गया, ताकि किसानों को फिर से खेती की तरफ उत्साहित किया जा सके। हुआ यह भी कि इसके बाद किसानों ने नरमे की बुवाई शुरू की। लेकिन वर्ष 2015 में सफेद मक्खी ने नरमे की फसल पर बड़े पैमाने पर हमला किया और पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो गई। इसके बाद नरमा फसल को किसान अलविदा कह रहे हैं।
क्षेत्रफल घटा लेकिन उपज बढ़ी
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में सफेद मक्खी से भारी हानि हुई थी। इस वर्ष नरमा का रकबा 3.35 लाख हेक्टेयर था। लेकिन 197 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की पैदावार हुई और 3.86 लाख गांठ का उत्पादन हुआ। जबकि 2014 में नरमे की बुआई 4.21 लाख हेक्टेयर व प्रति हेक्टेयर 544 किलोग्राम नरम उपज और 13.47 लाख गांठ उत्पादित हुई थी। वर्ष 2016-17 में 2.85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में नरमा लगाया गया और प्रति हेक्टेयर 757 किलोग्राम उत्पादन दर्ज किया गया। इस वर्ष 12.69 लाख गांठ गांठ का उत्पादन हुआ, जबकि 2017-18 में 2.91 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई और उपज 750 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही। इसी साल 12.84 लाख गांठ प्राप्त हुई थी।
वर्ष 2018-19 में 2.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में नरमे की बुवाई की गई और उपज 776 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही। इस वर्ष 12.23 लाख गांठ प्राप्त हुई थी। वर्ष 2019-20 में 2.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई की गई और उपज 827 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। इस साल 12.3 लाख गांठ हुई। वहीं वर्ष 2020-21 में 3.03 हेक्टेयर में नरमे की बुवाई की गई और उपज 750 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही। इस साल 21.22 लाख गांठ का उत्पादन हुआ। वर्ष 2021-22 में 2.52 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी, जिसमें मात्र 6.45 लाख गांठ हुई। इस प्रकार, वर्ष 2022-23 में राज्य में 2.41 लाख हेक्टेयर नरमा की बुवाई की गई और केवल 3.5 लाख गांठ हुई।
2010 में 422 कॉटन फैक्ट्री, अब 75 रहीं
कॉटन फैक्ट्री यूनियन के पूर्व प्रधान भगवान बांसल का कहना है कि मुक्तसर व फाजिल्का एरिया में पानी की निकासी का कोई प्रबंध न होने के कारण नरमा की फसल खराब हो जाती है। यहां पर ऊंचे इलाकों से पानी आता है, जो यहीं पर रुक जाता है। जिसके बाद नरमा की फसल पर सुंडी का हमला होने से नुकसान होता है। यही कारण है कि 2022 में कॉटन फैक्ट्रियों की गिनती 2010 के मुकाबले 422 से कम होकर 75 रह गई हैं। जबकि सरकार को चाहिए कि वह पानी की निकासी के लिए 25 करोड़ फाजिल्का व 25 करोड़ मुक्तसर को दे। इसके अलावा बठिंडा में थर्मल की जमीन पर काटन यूनिवर्सिटी बनाई जाए। यहां पर किसानों को नरमा की बिजाई की जानकारी देने के अलावा उनको बढ़िया किस्म के बीज दिए जाएं। आज के समय 65 फैक्ट्रियों के हालात तो ऐसे हैं, जो कभी भी बंद हो सकती हैं।
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