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Punjab: पाराली निस्तारण के लगने थे 200 बायो मास प्लांट, चार साल बाद पहला ही शुरू नहीं

बठिंडा के गांव महमा सरजा में पराली से कैटल फीड बनाने के पहले प्लांट का चार साल पहले रखा था नींवपत्थर। ऐसे पूरे पंजाब में 200 प्लांट लगने थे। इस प्लांट में पराली से सल्फर मुक्त कोयला व कैटल फीड बनाई जानी थी।

By Sahil GargEdited By: Pankaj DwivediUpdated: Wed, 26 Oct 2022 10:07 PM (IST)
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पराली निस्तारण को लेकर सरकार की शुरू की गई एक भी योजना आज तक सिरे नहीं चढ़ सकी। सांकेतिक चित्र
जासं, बठिंडा। पराली को आग लगाने से प्रदूषण अब बढ़ने लगा है। सरकार केवल जागरूकता तक ही सीमित है। पराली निस्तारण को लेकर सरकार की शुरू की गई एक भी योजना आज तक सिरे नहीं चढ़ सकी। इसमें एक बायोमास प्लांट भी है। ऐसे पूरे पंजाब में 200 प्लांट लगने थे। इस प्लांट में पराली से सल्फर मुक्त कोयला व कैटल फीड बनाई जानी थी।

इसकी शुरुआत पूर्व वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने 24 जून, 2018 बठिंडा के गांव मेहमा सरजा से की थी। पहला प्लांट तीन महीनों में लगाया जाना था। चार साल बीत जाने के बाद भी 200 प्लांट लगने तो दूर, पहला ही शुरू नहीं हो पाया। राज्य में इस बार 75 लाख एकड़ में धान की बिजाई की गई है। एक एकड़ से तीन टन पराली निकलती है। ऐसे में 75 लाख एकड़ से 225 लाख टन पराली पैदा होती।

अगर एक प्लांट में 300 टन पराली की प्रतिदिन खपत होती तो 200 प्लांट के चलने से रोजाना 60 हजार टन पराली की खपत होती। ऐसे में पंजाब के खेतों से पैदा होने वाली पराली का कुछ ही दिनों में निस्तारण हो जाता।

मनप्रीत बादल ने रखा था नींवपत्थर

गांव मेहमा सरजा में राज्य के पहले बायोमास प्रोसेसिंग प्लांट का कांग्रेस सरकार के समय पूर्व वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने नींव पत्थर रखा था। उन्होंने पूरे पंजाब में ऐसे 200 प्लांट चार साल में लगाने की बात कही थी। मगर चार साल में 200 तो दूर, पहला ही नहीं चल पाया।

अकेले बठिंडा में ही ऐसे 9 प्लांट लगाए जाने थे। गांव के पंच गुरमेल सिंह का कहना है कि बायोमास प्लांट के लिए पंचायत ने जमीन भी दी थी, लेकिन इसका काम शुरू नहीं हो सका। प्लांट का काम सिर्फ चारदीवारी तक ही सीमित रह गया। यह प्लांट शुरू न होने के कारण किसान भी मजबूरी में पराली को आग के हवाले कर रहे हैं।

चेन्नई की कंपनी के साथ किया था टाईअप

बायोमास प्रोसेसिंग प्लांट को चलाने के लिए पंजाब सरकार ने चेन्नई की नैवे रिन्यूएबल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के साथ टाईअप किया था। कंपनी ने पूरे राज्य से प्लांट के लिए 10 हजार करोड़ रुपये निवेश करने थे। नींव पत्थर रखने के बाद पंजाब सरकार की दिलचस्पी न होने के कारण यह प्रोजेक्ट फेल ही हो गया।

अगर पंजाब में यह प्लांट शुरू हो जाते तो यहां पर 45 हजार युवाओं को रोजगार भी मिलता। पंजाब में लगने वाले इन प्लांट से तैयार होने वाली कैटल फीड को कतर व देश के अन्य भागों में भेजे जाने की योजना थी तो कोयले को नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन को बेचा जाना था। एक प्लांट के तैयार होने पर 50 करोड़ का एस्टीमेट था।

यह थी योजना की खासियत

बायोमास प्लांट अपने आसपास के 10 किलोमीटर का एरिया कवर करता। जहां पर एरिया की सारी पराली इकट्ठी की जाती और हर रोज करीब 300 टन पराली की खपत की जाती। इसके साथ इतनी ही मात्रा में अन्य मेटिरियल भी प्रोसेस किया जाता। इससे 200 टन कोयला व 250 टन कैटल फीड बनती।

पराली की संभाल के लिए पंजाब सरकार ने इंडियन आयल कारपोरेशन के साथ भी गैस बनाने को लेकर एग्रीमेंट किया था। मगर प्लांट के शुरू न हो पाने के कारण यह बीच में ही रह गया। जबकि इंग्लैंड की अरीका कंपनी के साथ भी बायोएथेनाल प्लांट बनाने की योजना बनाई गई थी, लेकिन यह भी सिरे नहीं चढ़ सकी।

प्लांट का निर्माण तो शुरू हुआ था, लेकिन यह किस कारण पूरा नहीं हो पाया, इसके बारे में वह स्टेट्स चेक करवाएंगे। इसके बाद ही कुछ बता पाएंगे।

-शौकत अहमद, डीसी बठिंडा

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