Surjit Patar: ...जब सुरजीत पातर की गजलों की कैसेट एक हजार भी नहीं बिकी थी, ऑडियो कंपनी से बोले- जानता था ऐसा ही होगा
पंजाबी साहित्य जगत में उस वक्त शोक की लहर दौड़ गई जब मशहूर कवि सुरजीत पातर की मृत्यु समाचार सामने आया। वो बीते कई सालों से लुधियाना में ही रह रहे थे। उनकी कविताएं आम जन को काफी पसंद थी। वहीं एक वाक्या ऐसा भी है जब अमर सिंह चमकीला के गानों के कारण सुरजीत पातर की एक हजार ऑडियो कैसेट भी नहीं बिक सकी।
इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। आज की सुबह पंजाबी साहित्य जगत को ही नहीं बल्कि सभी को बेहद उदास कर गई है। पंजाबी साहित्य जगत की फुलवाड़ी का वह सबसे महकता फूल सुरजीत पातर इस फानी दुनिया को अलविदा कह गया है।
इंटरनेट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सभी जगह से पातर साहिब को याद करते हुए शोक संदेश आ रहे हैं। हर कोई उन्हें अपने तरीके से याद कर रहा है। उनके साथ बिताए पलों के रूप में, उनकी शायरी को पढ़ते हुए या उनके समारोहों का हिस्सा रहकर.. शायद उन्हें अलविदा कहने के लिए कोई भी चूकना नहीं चाहता।
चमकीले के दौर के चलते नहीं बिकी एक हजार कैसेट
मैं भी शायद उन्हें उसी रूप में याद कर रहा हूं। यह बात शायद 1995 की है। जब धूरी में साहित्य सभा वालों ने मालवा खालसा हाई स्कूल में एक समारोह करवाया और उसमें सुरजीत पातर को बुलाया। साफ सुथरे लेखन और गायकी को लेकर चल रही बहस के बीच सुरजीत पातर ने बताया कि प्रसिद्ध ऑडियो कंपनी एचएमवी वालों ने उनकी गजलों की पहली कैसेट निकाली थी और वह एक हजार भी नहीं बिकी। यह वह दौर था अश्लीलता से भरे चमकीले के गीत हर जगह बज रहे थे।एचएमवी से पातर ने कही ये बात
पातर साहिब ने बताया कि वह जानते थे कि ऐसा ही होगा। लेकिन एचएमवी वालों को लगता था कि साफ सुथरे लेखन को समाज ज्यादा पसंद करता है। उनका भ्रम तो उसी समय दूर हो गया जब एक हजार कैसेट भी नहीं बिक पाए। पातर साहिब ने बताया कि एचएमवी वाले उनके घर पर आए और अफसोस जाहिर करते हुए उनसे कहा कि अगर पांच हजार कैसेट भी बिक जाते तो वह एक बार फिर से रिस्क लेते।
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इम्तियाज अली के निर्देशन में बनी अमर सिंह चमकीला
लचर गीतकारी से दूर साफ सुथरी और जिंदगी के गहन पहलुओं को शब्दों में पिरोने वाले पातर साहिब शायद इस हकीकत को समझते थे। यह बात आज फिर से प्रासंगिक हो गई है क्योंकि पिछले दिनों ही एक बार फिर अमर सिंह चमकीले को लेकर इमतियाज अली जैसे डायरेक्टर ने फिल्म बनाई और दिलजीत दोसांझ और परिणति चोपड़ा जैसे बड़े कलाकारों ने उसमें काम किया। इस फिल्म को लेकर मीडिया में जमकर बहस हुई।
बहुत से लोगों ने चमकीले की गायकी को सराहा लेकिन शायद उससे कहीं ज्यादा ऐसे लोग भी थे जिन्होंने इसकी आलोचना की। लेकिन सवाल फिर वहीं खड़ा है.... किस तरह के साहित्य को समाज में जगह मिलनी चाहिए...। फिर सोचता हूं इसका जवाब तो खुद पातर साहिब ने ही दे दिया है....दुनिया ने वसदी रहणा है साडे तो बगैर वीतूं ऐवें तपेया, तड़पेया ते उलझेया न करअलविदा पातर साहिब.......
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