आखिरकार जरनैल सिंह भिंडरांवाला 2.0 के रूप में देखे जाने वाले इस युवक के पीछे है कौन?
क्यों राज्य सरकार या पुलिस ने अभी तक अमृतपाल सिंह के खिलाफ कोई केस नहीं किया है जो इंटरनेट मीडिया पर वीडियो डाल सरेआम कह रहा है ‘तिरंगा हमारा झंडा नहीं है क्योंकि इस झंडे ने हमारे ऊपर बेइंतहा जुल्म किए... इसे बदल डालो... मिटा डालो।’ अमृतपाल सिंह (दाएं)
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 23 Nov 2022 10:36 AM (IST)
चंडीगढ़, अमित शर्मा। बात लगभग दो महीने पहले 29 सितंबर की है। मोगा जिले में अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरांवाला के पैतृक गांव रोडे में एक मंच से ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ और ‘हमें क्या चाहिए-आजादी’ जैसे नारों के बीच हथियारों से लैस अपने समर्थकों से घिरा एक नौजवान अपनी दस्तारबंदी (पगड़ी बांधने की रस्म) पूरी होते ही ‘भविष्य की जंग’ शुरू करने की घोषणा करता है। वह एक वर्ष पहले तक न सिर्फ क्लीन शेव में दिखता था, बल्कि केश भी कटवाता था। दुबई में ट्रक चलाने वाला 29 वर्षीय अमृतपाल सिंह नाम का यह युवक दस साल बाद पंजाब लौटा है और अब अपने हथियारबंद अंगरक्षकों के साथ पंजाब के गांवों के दौरे कर रहा है। भिंडरांवाला से मिलती-जुलती वेशभूषा पहन कर गांव-गांव जाकर हर संवेदनशील मुद्दे पर उकसाने वाली शैली में अलगाववाद को हवा देता अमृतपाल न सिर्फ ‘जंग’, ‘खालिस्तान’, ‘आजादी’, ‘कुर्बानी’ और ‘मरजीवड़े’ (आत्मघाती दस्ते) की बातें कर रहा है, बल्कि कानून को चुनौती देते हुए पुलिस और अदालतों पर निर्भर न होकर पंथ के दोषियों को ‘अपने दम पर दंडित’ करने का खुलेआम आह्वान भी कर रहा है।
विडंबना देखिए कि जो पंजाब पुलिस रात के अंधेरे में अज्ञात व्यक्ति द्वारा किसी सुनसान दीवार पर ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ लिखा पाए जाने पर सुबह होने से पहले केस दर्ज कर आरोपितों को गिरफ्तार तक कर लेती रही है, वही पुलिस अमृतपाल के मामले में किसी भी सख्त कार्रवाई से कतरा रही है। राज्य सरकार को तो शायद अमृतपाल के उकसावे वाले भाषणों में भी कुछ गलत नहीं दिख रहा। मुख्यमंत्री भगवंत मान भी चुप्पी साधे हैं, जिनके पास गृह विभाग भी है। और शायद तभी सोमवार को तरनतारन में अमृतपाल पर कार्रवाई को लेकर मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए डीजीपी गौरव यादव ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि हर किसी की तरह अमृतपाल को भी अपने सोच के मुताबिक अपनी बात रखने का संवैधानिक अधिकार है। बकौल डीजीपी, कार्रवाई तो तभी होगी, जब अमृतपाल हो या कोई अन्य कानून तोड़ेगा।
राज्य में बढ़ते ‘बंदूकवाद’ को नियंत्रित करने के लिए भगवंत मान सरकार ने सार्वजनिक स्थानों और इंटरनेट मीडिया पर हथियारों का प्रदर्शन करने पर पाबंदी लगा दी है। पिछले चार दिनों में अपने लाइसेंसी हथियार के साथ इंस्टाग्राम या फेसबुक पर फोटो डालने पर विभिन्न जिलों की पुलिस ने एक गायक समेत कई लोगों के खिलाफ मुकदमे भी दायर किए हैं, लेकिन वही पुलिस अमृतपाल और उसके साथियों के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रही है, जो न सिर्फ सार्वजनिक स्थानों पर हथियारों से लैस होकर घूम रहे हैं, बल्कि इन हथियारों के साथ लगातार अपनी तस्वीरें और वीडियो भी इंटरनेट मीडिया पर बेखौफ अपलोड कर रहे हैं। ऐसे में केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में अमृतपाल सिंह और उसकी संस्था ‘वारिस पंजाब दे’ की गतिविधियों के प्रति पंजाब पुलिस और राज्य सरकार के नरम रुख पर जो सवाल उठाए गए हैं, वे वाजिब तो हैं ही, चिंताजनक भी हैं।
सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार जरनैल सिंह भिंडरांवाला 2.0 के रूप में देखे जाने वाले इस युवक के पीछे है कौन? किसके दम पर वह इस तरह लगातार अलगाववादी बोल सरेआम बोल रहा है? क्यों राज्य सरकार या पुलिस ने अभी तक उस व्यक्ति के खिलाफ कोई केस नहीं किया है, जो इंटरनेट मीडिया पर वीडियो डाल सरेआम कह रहा है, ‘तिरंगा हमारा झंडा नहीं है, क्योंकि इस झंडे ने हमारे ऊपर बेइंतहा जुल्म किए... इसे बदल डालो... मिटा डालो।’
तरनतारन में चर्च पर हुए हमले और फिर अमृतसर में शिवसेना टकसाली के नेता सुधीर सूरी की हत्या में पीड़ित परिवारों की ओर से अमृतपाल के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग को राज्य सरकार ने खारिज क्यों कर दिया? पिछले कुछ महीनों में घटी ऐसी तमाम घटनाओं से जुड़े तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है, क्योंकि उनसे आतंकवाद के पुन: जीवित होने के संकेतमिल रहे हैं, लेकिन सबसे खतरनाक बात यह है कि इन संकेतों को हर स्तर पर नजरअंदाज किया जा रहा है। इस मुद्दे पर राज्य सरकार के इस तरह उदासीन होने का अगर कोई संदेश जा रहा है तो यही कि आम आदमी पार्टी पंजाब में अलगाववादियों का मूक समर्थन कर रही है। ऐसे अंदेशे की गंभीरता तब और बढ़ जाती है, जब पुलिस अधिकारी भी अलगाववादी सोच रखने वालों के बचाव में ‘बोलने की आजादी’ के अधिकार की दुहाई देते हैं। हालांकि एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि अमृतपाल जैसे स्वयंभू नेता सिखों की नुमाइंदगी नहीं करते हैं।
पंजाब की इतिहास रहा है कि वहां की सरकारें समस्या को भलीभांति जानते हुए भी उसे उग्र रूप धारण करने देती हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो नशा या गैंगस्टरवाद पंजाब के लिए कभी भी इस तरह अनर्थकारी साबित नहीं होते और न ही पिछले दो दशकों से आतंकियों और गैंगस्टरों के बीच पनपते रिश्तों की परिणति गायक सिद्धू मूसेवाला जैसे अनेक हत्याकांडों में होती, जिन्होंने एक बार फिर पंजाब में असुरक्षा की भावना को जन्म देकर राज्य को निराशा की तरफ धकेल दिया है। पंजाब का पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है। ताजा घटनाओं से राज्य की छवि भी लगातार खराब हो रही है। सख्त कार्रवाई के लिए सरकार अब किस बात का इंतजार कर रही है। कहीं ऐसा न हो कि कानून तोड़ने के बाद ‘बड़ा कदम’ उठाने की नीति पर चलते हुए मामला संभालना मुश्किल हो जाए या हाथ से ही निकल जाए। निदा फाजली के शब्दों में- खतरे के निशानात अभी दूर हैं लेकिन, सैलाब किनारों पे मचलने तो लगे हैं।[स्थानीय संपादक, पंजाब]
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