बठिंडा रिफाइनरी को मिला Ethanol बनाने का लाइसेंस, गन्ने की वेस्टेज से होगा प्रोडक्शन; किसानों को भी मिलेगा लाभ
इथेनॉल का उत्पादन स्टार्च कंटेट पर निर्भर करता है जो चावल में 68-72 फीसदी मक्की में 58-62 फीसदी ज्वार में 56-58 फीसदी है। सवाल यह है कि अगर कंपनियों को वेस्टेज नहीं मिली तो क्या ग्रेन से इथेनॉल बनाएंगी। यदि ऐसा होता है तो इसका फसली विविधीकरण पर बुरा असर पड़ेगा। अगर यह गन्ने से बनाया जाता है तो किसानों के पास विविधीकरण का एक अच्छा मौका हो सकता है।
चंडीगढ़, इन्द्रप्रीत सिंह। बठिंडा में लगी एचएमईएल की रिफाइनरी अब इथेनॉल भी बनाएगी और इसे बीस फीसदी तक पेट्रोल में मिक्स कर सकेगी। ऐसा करने के लिए टेक्सेशन विभाग से उन्हें लाइसेंस मिल गया है। ई2 लाइसेंस फसलों की वेस्टेज से इथेनॉल बनाने के लिए दिया जाता है। कंपनी ने काफी लंबे समय से लाइसेंस की मांग की हुई थी जो उन्हें अब बीते वीरवार को मिला है।
कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने लाइसेंस मिलने की पुष्टि भी की है। उन्होंने बताया कि कंपनी अब रोजाना 300 किलोलीटर इथेनॉल बना सकेगी और इसके लिए किसानों से उनकी गन्ने की वेस्टेज ली जाएगी। उन्होंने बताया कि अब कंपनी किसानों को उनकी वेस्टेज के भी पैसे देगी।
कहां से आएगा इथेनॉल बनाने के लिए इतना वेस्ट?
हालांकि, यहां बड़ा सवाल यह है कि कंपनी 300 किलोलीटर इथेनॉल बनाने के लिए रोजाना इतनी वेस्टेज कहां से लाई जाएगी। जितनी वेस्टेज की बात की जा रही है वह केवल चीनी मिलों के पास ही होती है। लेकिन वे भी अब इथेनॉल बनाने का काम करेंगी या फिर इससे मोलेसिस तैयार करती हैं। कुछ ईंधन के रूप में भी इससे काम लेती हैं।
जानकारों का मानना है कि अगर गन्ने की वेस्टेज से इथेनॉल तैयार करके किसानों को अतिरिक्त पैसे दिए गए तो वे धान और गेहूं को छोड़कर गन्ने का रकबा बढ़ा सकते हैं। परंतु इसमें बड़ी दिक्कत इसकी वेस्टेज को जमा करना है। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने इसके लिए रिफाइनरी में 500 एकड़ जमीन अतिरिक्त रखी हुई है।
गौरतलब है कि सबसे ज्यादा इथेनॉल ग्रेन से निकलता है, जो कंपनी के लिए सबसे ज्यादा लाभप्रद है। एक टन चावल से 450-480 लीटर इथेनॉल निकलता है। जबकि टूटे हुए दाने से 450-460 लीटर, मक्की से 380-400 लीटर, ज्वार और बाजरे से 365-380 लीटर निकलता है।
इथेनॉल का उत्पादन स्टार्च कंटेट पर निर्भर करता है, जो चावल में 68-72 फीसदी, मक्की में 58-62 फीसदी, ज्वार में 56-58 फीसदी है। अब सवाल यह है कि अगर कंपनियों को वेस्टेज नहीं मिली तो क्या वह ग्रेन से इथेनॉल बनाएंगी। यदि ऐसा होता है तो इसका फसली विविधीकरण पर बुरा असर पड़ेगा। अगर यह गन्ने से बनाया जाता है तो किसानों के पास विविधीकरण का एक अच्छा मौका हो सकता है। लेकिन अगर यह चावल से बनाई गई तो किसान धान का रकबा और बढ़ा सकते हैं।