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किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी से अलग हुए भूपिंदर सिंह मान

सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए गठित कमेटी के सदस्य भूपेंद्र सिंह मान ने इसे छोड़ने का एलान किया है। साथ ही मान ने सुप्रीम कोर्ट का भी धन्यवाद किया कि उन्हें कमेटी में रखा गया।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Thu, 14 Jan 2021 03:57 PM (IST)
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भूपेंद्र सिंह मान ने कृषि कानूनों पर बनी कमेटी की सदस्यता छोड़ी।
जेएनएन, चंडीगढ़। कृषि सुधार कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के मेंबर और भाकियू के प्रधान भूपेंद्र सिंह मान ने कमेटी की सदस्यता छोड़़ दी है। आज एक वक्तव्य जारी करते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया कि उन्हें कमेटी में शामिल किया गया, जिसने किसानों और केंद्र सरकार के बीच तीन कृषि कानूनों को लेकर बातचीत करके रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी थी।

यहां जारी वक्तव्य में मान ने कहा कि वह केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति में उन्हें नामित करने के लिए आभार व्यक्त करते हैं, लेकिन वह किसान हितों से कतई समझौता नहीं कर सकते। वह इस कमेटी से हट रहे हैं और हमेशा पंजाब व किसानों के साथ खड़े हैं। मान राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। किसान संघर्षों के लिए उनके योगदान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कमेटी में शामिल किया था।  

बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पूर्व कृषि कानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच गतिरोध खत्म करने की पहल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों नए कृषि कानूनों केे अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाते हुए चार सदस्यीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन और आल इंडिया किसान को-ऑर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष भूपिंदर सिंंह मान, कृषि अर्थशास्त्री और साउथ एशिया इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डाक्टर प्रमोद जोशी, कृषि अर्थशास्त्री और एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइज कमीशन के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी तथा शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट शामिल हैं, लेकिन अब कमेटी से भूपिंदर सिंह मान ने खुद को अलग कर दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी को दो माह के भीतर रिपोर्ट देने को कहा है, लेकिन मान के कमेटी से अलग होने के बाद अब रिपोर्ट कैसे तैयार होगी इसके लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। बताया जा रहा है कि कमेटी को लेकर कुछ किसान संगठन सहमत नहीं थे। कमेटी से हटने के लिए किसान संगठनों द्वारा मान पर दबाव बनाया जा रहा था।

कमेटी के गठन के दिन से ही सिंघुु, टीकरी बार्डर पर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने इस कमेटी काे ठुकरा दिया था। यही नहीं, इंटरनेट मीडिया समेत सभी जगह पर कमेटी के सदस्यों को लेकर बात उठने लगी कि चारों सदस्य ऐसे लिए गए हैं जो पिछले चार महीनों से खेती कानूनों का समर्थन कर रहे हैं। किसान संगठनों ने कहा कि ऐसी कमेटी से इंसाफ की उम्मीद कैसे की जा सकती है।

भूपिंदर मान ने तीनों कृषि कानूनों को लेकर सितंबर 2020 में प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था जिसमें इनमें संशोधन करने की वकालत की गई थी। मान ने कहा कि इन तीनों कानूनों में भी वह बात नहीं है जिसकी हम मांग कर रहे थे। हमने अनिवार्य वस्तु कानून को रद करके इसकी जगह नया कानून लाने की मांग की थी, जिसमें हमें अदालत का दरवाजा खटखटाने का प्रावधान दिया गया हो, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। नए कानून में भी नौंवें शेड्यूल में कोई बदलाव नहीं किया गया, लेकिन जो कानून मौजूदा केंद्र सरकार ने पारित किए हैं उनमें अब भी काफी सुधार की जरूरत है।

भूपिंदर सिंह मान का संगठन गुरदासपुर के क्षेत्र में ही सक्रिय है। वह उन 31 संगठनों के साथ भी नहीं थे जिन्होंने पंजाब में जून महीने में जब खेती कानूनों से संबंधित अध्यादेश पास किए थे अपना आंदोलन छेड़ा था। काबिलेगौर है कि भूपेंद्र सिंह मान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी माने जाते हैं और उनके प्रयासों के चलते ही मान को राज्यसभा की सदस्यता भी मिली थी।

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