SYL पर पंजाब को सुप्रीम कोर्ट से करारा झटका, हरियाणा को राहत
एसवाइएल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज पंजाब को बड़ा झटका दिया है। हरियाणा को इस मामले में राहत मिली है। कोर्ट ने पंजाब द्वारा नहर का निर्माण राेकने को असंवैधानिक कहा है।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Fri, 11 Nov 2016 09:35 AM (IST)
जेएनएन, चंडीगढ़। सतलुज यमुना संपर्क नहर (एसवाइएल) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को बड़ा झटका दिया है। हरियाणा को इस मामले में बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब की टिप्पणी और नहर का निर्माण राेकने को असंवैधानिक माना है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एसवाइएन नहर को पूरा करने का आदेश दिया है। इस फैसले के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने वीरवार काे सुनाए फैसले में कहा कि किसी राज्य सरकार को राज्यों के बीच के जलबंटवारे समझौते रद करने का अधिकार नहीं है। इस बारे में पंजाब द्वारा सतलुज यमुना संपर्क नहर को लेकर हुए समझौतेे को रद करने का फैसला असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब को एकतरफ़ा क़ानून बना कर इस समझौते को खारिज करने हक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सतलुज-यमुना संपर्क नहर को पूरा किया जाए अौर संबधित राज्यों को समझौते के अनुरूप उसके हिस्से का पानी दिया जाए।पढ़ें : SYL पर हरियाणा और पंजाब फिर टकराने को तैयारदूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पंजाब में हड़कंप मच गया है। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस के विधायकों ने पहले ही इस तरह का फैसला आने पर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने का एलान कर रखा है।
पढ़ें : SYL पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजनीति न करे कोई : मनोहर लालहरियाणा बना चुका अपने हिस्से की 91 किमी नहर
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बना, किंतु उत्तराधिकारी राज्यों (पंजाब व हरियाणा) के बीच पानी का बंटवारा नहीं हुआ। विवाद खत्म करने के लिए केंद्र ने अधिसूचना जारी कर हरियाणा को 3.5 एमएएफ पानी आवंटित कर दिया। इसी पानी को लाने के लिए 212 किमी लंबी एसवाइएल नहर बनाने का निर्णय हुआ था। हरियाणा ने अपने हिस्से की 91 किमी नहर का निर्माण वर्षों पूर्व पूरा कर दिया था, लेकिन पंजाब ने अब तक विवाद चला आ रहा है।पढ़ें : SYL पर फैसला जो मर्जी हो किसी को पंजाब में घुसने नहीं देंगे : सुखबीर बादलसुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला राष्ट्रपति के रेफरेंस पर दी है। इस रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी गई थी। आज के निर्णय के बाद अब सुप्रीम कोर्ट का 2002 और 2004 का फैसला प्रभावी हो गया। अब, केंद्र सरकार को नहर का कब्जा लेकर लिंक निर्माण पूरा करना है।पढ़ें : SYL पर बादल ने कहा- न नहर बनाएंगे और न पानी देंगे, 16 काे विस का विशेष सत्र
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से मांगे थे चार सवालों के जवाब। ये सवाल पूछे गए थे- 1. क्या पंजाब का पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 संवैधानिक है?
2. क्या ये एक्ट इंटरस्टेट वाटर डिस्प्यूट एक्ट १९५६ और पंजाब रिओर्गनाइजेशन एक्ट १९६६ के तहत सही है ?
3. क्या पंजाब ने रावी ब्यास बेसिन को लेकर १९८१ के एग्रीमेंट को सही नियमों के तहत रद्द किया है?
4. क्या पंजाब इस एक्ट के तहत २००२ और २००४ में सुप्रीम कोर्ट की डिक्री को मानने से मुक्त हो गया है ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय में इन सवालों के जवाब नकारात्मक दिए हैं।------पढ़ें : SYL पर फिर टकराव के आसार, पंजाब का रुख कड़ाप्रमुख घटनाक्रम: कब क्या हुआ
19 सितंबर 1960 भारत व पाकिस्तान के बीच विभाजन पूर्व रावी व ब्यास के अतिरिक्त पानी को १९५५ के अनुबंध द्वारा आवंटित किया गया। पंजाब को 7.20 एमएएफ (पेप्सू के लिए 1.30 एमएएफ सहित), राजस्थान को 8.00 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ पानी आवंटित किया गया था।
24 मार्च 1976 :
केंद्र ने अधिसूचना जारी कर पहली बार हरियाणा के लिए 3.5 एमएएफ पानी की मात्रा तय की। 13 दिसंबर 1981: नया अनुबंध हुआ। पंजाब को 4.22, हरियाणा को 3.50, राजस्थान को 8.60, दिल्ली को 0.20 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर के लिए 0.65 एमएएफ पानी की मात्रा तय की गई।
8 अप्रैल 1982 : इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव के पास नहर खुदाई के काम का उद्घघाटन किया। विरोध के कारण पंजाब के हालात बिगड़ गए।पढ़ें : SYL पर SC के फैसलेे के बाद अमरिंदर सिंह ने लोकसभा से दिया इस्तीफा
24 जुलाई 1985 :
राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ। पंजाब ने नहर बनाने की सहमति दी।
वर्ष 1996 :
समझौता सिरे नहीं चढ़ने पर हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
15 जनवरी 2002 :
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक वर्ष में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया।
4 जून 2004 :
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की याचिका खारिज हुई।
2004 :
पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए। संघीय ढांचे की अवधारण पर चोट पहुंचने का डर देखकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा। 12 वर्ष ठंडे बस्ते में रहा।
20 अक्टूबर 2015 :
हरियाणा की मनोहर लाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया।
26 फरवरी 2016 :
इस अनुरोध पर गठित पांच जजों की पीठ ने पहली सुनवाई की। सभी पक्षों को बुलाया।
8 मार्च 2016 :
8 मार्च को दूसरी सुनवाई। लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मई 2016 में फैसला सुरक्षित रख लिया था। पंजाब सरकार बिना कानून के डर के जमीन लौटाने का एलान कर चुकी है। अब यह नया मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।
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2. क्या ये एक्ट इंटरस्टेट वाटर डिस्प्यूट एक्ट १९५६ और पंजाब रिओर्गनाइजेशन एक्ट १९६६ के तहत सही है ?
3. क्या पंजाब ने रावी ब्यास बेसिन को लेकर १९८१ के एग्रीमेंट को सही नियमों के तहत रद्द किया है?
4. क्या पंजाब इस एक्ट के तहत २००२ और २००४ में सुप्रीम कोर्ट की डिक्री को मानने से मुक्त हो गया है ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय में इन सवालों के जवाब नकारात्मक दिए हैं।------पढ़ें : SYL पर फिर टकराव के आसार, पंजाब का रुख कड़ाप्रमुख घटनाक्रम: कब क्या हुआ
19 सितंबर 1960 भारत व पाकिस्तान के बीच विभाजन पूर्व रावी व ब्यास के अतिरिक्त पानी को १९५५ के अनुबंध द्वारा आवंटित किया गया। पंजाब को 7.20 एमएएफ (पेप्सू के लिए 1.30 एमएएफ सहित), राजस्थान को 8.00 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ पानी आवंटित किया गया था।
24 मार्च 1976 :
केंद्र ने अधिसूचना जारी कर पहली बार हरियाणा के लिए 3.5 एमएएफ पानी की मात्रा तय की। 13 दिसंबर 1981: नया अनुबंध हुआ। पंजाब को 4.22, हरियाणा को 3.50, राजस्थान को 8.60, दिल्ली को 0.20 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर के लिए 0.65 एमएएफ पानी की मात्रा तय की गई।
8 अप्रैल 1982 : इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव के पास नहर खुदाई के काम का उद्घघाटन किया। विरोध के कारण पंजाब के हालात बिगड़ गए।पढ़ें : SYL पर SC के फैसलेे के बाद अमरिंदर सिंह ने लोकसभा से दिया इस्तीफा
24 जुलाई 1985 :
राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ। पंजाब ने नहर बनाने की सहमति दी।
वर्ष 1996 :
समझौता सिरे नहीं चढ़ने पर हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
15 जनवरी 2002 :
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक वर्ष में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया।
4 जून 2004 :
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की याचिका खारिज हुई।
2004 :
पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए। संघीय ढांचे की अवधारण पर चोट पहुंचने का डर देखकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा। 12 वर्ष ठंडे बस्ते में रहा।
20 अक्टूबर 2015 :
हरियाणा की मनोहर लाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया।
26 फरवरी 2016 :
इस अनुरोध पर गठित पांच जजों की पीठ ने पहली सुनवाई की। सभी पक्षों को बुलाया।
8 मार्च 2016 :
8 मार्च को दूसरी सुनवाई। लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मई 2016 में फैसला सुरक्षित रख लिया था। पंजाब सरकार बिना कानून के डर के जमीन लौटाने का एलान कर चुकी है। अब यह नया मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।