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चंडीगढ़ हार्स शो: नस्ल, कद काठी से ज्यादा खानदान और मेडल देखकर तय होती है घोड़ों की कीमत

मोहाली जिले के न्यू चंडीगढ़ के पास स्थित पल्लनपुर में होने वाले चंडीगढ़ हार्स शो में इस बार घोड़ों की खुली नीलामी होगी। सात नवंबर को दुर्लभ नस्लों के घोड़ों की नीलामी होगी। यह सबके लिए एक खुली नीलामी है जिसमें कोई भी हिस्सा ले सकता है।

By Vikas SharmaEdited By: Ankesh ThakurUpdated: Wed, 02 Nov 2022 09:31 AM (IST)
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सात नवंबर को दुर्लभ नस्लों के घोड़ों की नीलामी होगी।
विकास शर्मा, चंडीगढ़ : लोग अपने बच्चों की शादी तय करते समय पारिवारिक पृष्ठभूमि को खास तव्वजो देते हैं। पारिवारिक पृष्ठभूमि से ही वर-वधू के गुणों का पता चलता है। ऐसे ही घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले घोड़ों की भी पारिवारिक कुंडली होती है।

नस्ल, कद काठी से ज्यादा घोड़ों की कीमत उसके अपने और उसके माता-पिता के जीते मेडल रिकार्ड पर निर्भर करती है। स्पोर्ट्स में शामिल होने वाले घोड़ों का रिकार्ड बकायदा स्टड बुक में दर्ज होता है।

राष्ट्रीय स्तर के घुड़सवार दीपेंद्र सिंह बराड़ ने बताया कि अलग-अलग देशों के स्टड बुक से घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले घोड़ों की तमाम जानकारी मौजूद रहती है। स्टड बुक की तमाम जानकारी एक टैग देकर सुरक्षित रखा जाता है। घोड़े की खरीद फरोख्त, आयात-निर्यात या फिर स्पोर्ट्स में हिस्सेदारी के समय इस टैग से घोड़े को जांचा परखा जाता है।

बता दें मोहाली जिले के न्यू चंडीगढ़ के पास स्थित पल्लनपुर में होने वाले चंडीगढ़ हार्स शो में इस बार घोड़ों की खुली नीलामी होगी। सात नवंबर को दुर्लभ नस्लों के घोड़ों की नीलामी होगी। यह सबके लिए एक खुली नीलामी है, जिसमें कोई भी हिस्सा ले सकता है। नीलामी में हिस्सा लेने के लिए पंजाब, मेरठ और हैदराबाद के घोड़ा पालक चंडीगढ़ पहुंचेंगे।

भारतीय नस्ल के घोड़ों की कीमत भी लाखों में

पीपीएस नाभा में तैनात व पूर्व सूबेदार मनीकांत सिंह ने बताया कि भारतीय नस्ल के घोड़ों की भी दुनियाभर में अच्छी खासी डिमांड है। खासकर मारवाड़ी, काठियावाड़ी, पोनिज और थोरौ घोड़ों को घुड़सवारों की तरफ से खासा पसंद किया जाता है। मारवाड़ी और काठियावाड़ी एकदम असली भारतीय नस्ल के घोड़े हैं। इनका स्टेमिना अन्य नस्लों की तुलना में अच्छा होता है। बावजूद इसके जैसे-जैसे यह घोड़े मेडल जीतते जाते हैं इनकी कीमत भी उसी के अनुसार बढ़ती जाती है। इंटर नेशनल प्रतियोगिताओं में मेडल जीतते ही इन घोड़ों की कीमत रातों-रात लाखों रुपये बढ़ जाती है।

घोड़े के साथ घुड़सवार का तालमेल रखता है मायना

पीपीएस नाभा के घुड़सवार धनवीर सिंह ने बताया कि प्रतियोगिता में जीतने के लिए घोड़े के साथ घुड़सवार का तालमेल भी अहम होता है। जब आप महीनों एक ही घोड़े पर अभ्यास करते हैं तो आप उस घोड़े के दौड़ने, हिनहिनाने को समझने लगते हैं। घोड़ा भी आपकी कमांड को समझता है। इसलिए घुड़सवारी में घोड़े के साथ आपका लगाव अहम होता है।

नई पीढ़ी भी घुड़सवारी सीखने में दिखा रही उत्साह

पीपीएस नाभा के घुड़सवारी के कोच व रिटायर्ड कैप्टन हरबंस सिंह ने बताया कि चंडीगढ़ होर्स शो में हमारे 26 घुड़सवार हिस्सा ले रहे हैं। इनमें सबसे छोटे घुड़सवार अमेर सिंह और भवजोत है जिनकी उम्र नौ साल है, जबकि अनायत कौर टांडा और सहज कौर भी इस शो में अपने घुड़सवारी के कौशल को दिखाएंगी। घोड़े और इंसान का सदियों पुराना रिश्ता है। घुड़सवारी एक साहसी खेल है। हमें खुशी है कि हम नई पीढ़ी को इस खेल से जोड़ रहे हैं। नई पीढ़ी भी इसे सीखने में उत्साह दिखा रही है।

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