Chandigarh News: नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल हो SAD ने खोली भाजपा से गठबंधन की राह
Chandigarh News नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल होकर शिअद ने भाजपा से गठबंधन की राह खोल दी है। शिअद के प्रधान सुखबीर बादल कार्यक्रम में मौजूद रहे। सुखबीर बादल ने अपने पिता स्व. प्रकाश बादल की तरह ही खुद को संघवाद का समर्थक साबित करने की कोशिश की।
चंडीगढ़, कैलाश नाथ: कांग्रेस समेत करीब 20 राजनीतिक दल नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम से दूर रहे, लेकिन भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन टूटने के बावजूद शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल कार्यक्रम में मौजूद रहे। राजग के सबसे पुराने घटक दल में से एक शिअद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किए गए उद्घाटन का समर्थन करके एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है।
अपने पिता की राह पर चले सुखबीर बादल
कार्यक्रम में शामिल होकर शिअद ने भाजपा से फिर से गठबंधन की राह खोलने का प्रयास किया। सुखबीर बादल ने अपने पिता स्व. प्रकाश सिंह बादल की तरह ही खुद को संघवाद का समर्थक साबित करने की कोशिश की। वहीं, दूसरी तरफ भविष्य में भाजपा के साथ फिर से गठबंधन की राह को भी खोले रखा।
शिअद और भाजपा के नेता भले ही दोनों के फिर से गठबंधन की बातों को सिरे से खारिज करते आ रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि गठबंधन टूटने के बावजूद दोनों पार्टियों में रिश्तों की मर्यादा बरकरार है।
अमित शाह दुख की घड़ी में हमेशा रहे सुखबीर बादल के साथ
पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय प्रधान जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दुख की इस घड़ी में हमेशा सुखबीर बादल के साथ रहे। तीनों नेता बादल के निधन, संस्कार और भोग में अलग-अलग रूप से उपस्थित हुए। गठबंधन टूटने के बाद 2022 विधानसभा चुनाव में शिअद दो सीटों पर सिमटकर रह गया। इसके बाद से ही शिअद हमेशा ही सीधे रूप से भाजपा पर हमला करने से कतराती रही है।
जालंधर लोकसभा उपचुनाव में भी शिअद ने भाजपा पर सीधा हमला नहीं बोला। भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद भले ही शिअद ने बहुजन समाज पार्टी के साथ समझौता कर लिया हो, लेकिन शिअद का ग्राफ राजनीतिक रूप से उठ नहीं पा रहा है।
अपने गहरे रिश्तों के कारण उसे राष्ट्रीय राजनीति में मिलती रही है तवज्जो
इसके अलावा केंद्रीय स्तर पर भी शिअद की पकड़ कमजोर हुई हैं, क्योंकि शिअद भले ही देश की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी रही हो, लेकिन भाजपा के साथ अपने गहरे रिश्तों के कारण उसे राष्ट्रीय राजनीति में हमेशा ही तवज्जो मिलती रही हैं, लेकिन गठबंधन टूटने के बाद ऐसा नहीं हो पा रहा है।
यही कारण है कि कांग्रेस के नेता भी यही मान रहे हैं कि दोनों पार्टियां एक जरूर होंगी, फिर चाहे 2024 में हों या 2027 तक पहुंचते-पहुंचते। नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होकर शिअद ने भी कुछ ऐसे ही संकेत दिए हैं।