प्रकाश सिंह बादल के बाद अकाली राजनीति का दूसरा चेहरा हुआ विलुप्त, 90 साल की उम्र में ढींडसा ने ली अंतिम सांस
दो साल पहले प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद सुखदेव सिंह ढींडसा के रूप में अकाली दल का एक और महत्वपूर्ण चेहरा विलुप्त हो गया। उन्होंने सुखबीर सिंह बादल को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई खासकर 2007 में जब अकाली दल सत्ता में लौटा। मतभेदों के बावजूद ढींडसा हमेशा प्रकाश सिंह बादल के साथ खड़े रहे और उन्होंने पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। दो साल पहले माडरेट अकाली राजनीति के सबसे बड़े चेहरे प्रकाश सिंह बादल के जाने के बाद आज दूसरा सबसे बड़ा चेहरा सुखदेव सिंह ढींडसा के रूप में विलुप्त हो गया । प्रकाश सिंह बादल के साथ लंबा समय तक राजनीति करने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा का बेशक अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम वर्षों में सुखबीर सिंह बादल के साथ संबंध कटु रहे लेकिन शिरोमणि अकाली दल के प्रधान के तौर पर प्रकाश सिंह बादल जब अपनी राजनीतिक विरासत आगे सौंपना चाहते थे तो यह सुखदेव सिंह ढींडसा ही थे जिन्होंने सुखबीर सिंह बादल का नाम आगे बढ़ाया और रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने उसकी प्रौढ़ता की।
2007 में जब शिरोमणि अकाली दल भाजपा के साथ गठजोड़ में एक बार फिर से सत्ता में लौट आया तब सुखबीर बादल पार्टी के महासचिव थे लेकिन सत्ता में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता था। इसी समय को भांप कर सुखदेव सिंह ढींडसा ने सुखबीर बादल का नाम प्रधान पद के लिए प्रस्तावित करवाया। प्रकाश सिंह बादल के लंबा समय तक सलाहकार रहे हरचरण बैंस ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि अकाली राजनीति हमेशा से ही दो धड़ों में बंटी रही है।
सुखदेव सिंह ढींडसा प्रकाश सिंह बादल के साथ हमेशा खड़े नजर आए। यहां तक कि जब 1985 में सुरजीत सिंह बरनाला की अगुवाई में सरकार बनी तो प्रकाश सिंह बादल को बाहर रखा गया तब सुखदेव सिंह ढींडसा भी इस सरकार का हिस्सा नहीं बनी जबकि वह चौथी बार जीतकर आए थे और सीनियर विधायकों में से एक थे। इस सरकार के दौरान हुए आप्रेशन ब्लैक थंडर के दौरान अकाली दल में काफी मतभेद उभर आए और ढींडसा ने सुरजीत सिंह बरनाला का विरोध करते हुए प्रकाश सिंह बादल का साथ दिया।
इसी दौरान माडरेट अकाली राजनीति के एक और चेहरे संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई तब प्रकाश सिंह बादल और सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे अकाली नेताओं ने उस राजनीति को आगे बढ़ाया और गर्म ख्याली दल वालों का पूरा दौर होने के बावजूद ये लोग पीछे नहीं हटे। बल्कि प्रकाश सिंह बादल की अगुवाई में और मजबूत होता गया।
यही नहीं, जब शिरोमणि अकाली दल ने 1996 में भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी तब भी ढींडसा प्रकाश सिंह बादल के साथ थे। हालांकि उस सरकार में एकबारगी उन्हें मंत्री न बनाए जाने के कारण वह बादल से नाराज हो गए लेकिन बादल ने उन्हें मना लिया।
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