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क्यों नहीं जा पाए पेरिस...अमृतपाल कैसे जीत गया? क्या पंजाब में उभर रही अलगाववादी सोच, पढ़ें CM भगवंत मान का पूरा Interview

Bhagwant Mann Interview सीएम भगवंत मान ने कहा कि अमृतपाल जैसे लोगों को कोई पसंद नहीं करता। धर्म के नाम पर युवाओं को भ्रमित करना श्री गुरु ग्रंथ साहिब का स्वरूप लेकर थानों को घेरना गुरुद्वारों में तोड़फोड़ करना दूसरे धर्मों को गाली-गलौच कर उनके खिलाफ भड़काऊ बातें करना क्या ऐसे निंदनीय कृत्य कोई भी पंजाबी अप्रूव करता है? बिल्कुल नहीं।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sat, 10 Aug 2024 06:27 PM (IST)
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Bhagwant Mann Interview: पढ़िए पंजाब के सीएम भगवंत मान का खास इंटरव्यू।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वह सफलता नहीं मिली, जिसकी पार्टी ने आस की थी। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 13-0 से जीतने का लगातार दावा किया, लेकिन पार्टी तीन सीटों पर सिमट गई। कहा जाने लगा कि लोकसभा चुनाव के परिणामों ने उस धारणा को पुख्ता कर दिया है कि प्रदेश में आम आदमी पार्टी से लोगों का मोहभंग हो गया है।

बात यहां तक पहुंची तो ऐसा लगा कि राष्ट्रीय पटल पर कांग्रेस से हाथ मिलाते ही भगवंत मान सरकार द्वारा पंजाब में पिछली सरकार में मंत्री रहे कांग्रेसियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की मुहिम ठंडी पड़ती दिखने लगी, लेकिन मुख्यमंत्री का दो टूक कहना है कि हर वह कांग्रेसी जिसके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज है उसे कोर्ट के जरिए जेल भिजवा कर रहेंगे।

केंद्र में मोदी सरकार की बात हो या पूर्व राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के साथ उनका विवाद, मुख्यमंत्री का रवैया पहले से ज्यादा आक्रामक दिखता है। वह इसे इलेक्टेड और सिलेक्टेड की लड़ाई बताते हैं।

देश में अलगाववादी सोच के उभार को लेकर पैदा हुई आशंकाओं को विराम देते हुए उनका कहना है कि हमारी सरकार इतनी सक्षम हो चुकी है कि वह ऐसे कठोर फैसले ले रही है, जिससे अलगाववादी सोच के लोग पंजाब से बाहर यहां-वहां छिपते फिर रहे हैं।

पंजाब और राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में ऐसे ही तमाम ज्वलंत मुद्दों के अलावा अन्य विषयों को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दैनिक जागरण, पंजाब के स्थानीय संपादक अमित शर्मा और राज्य ब्यूरो प्रमुख इन्द्रप्रीत सिंह से विशेष बातचीत में अपनी राय रखी। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल- आपके विदेश दौरे अक्सर विवाद खड़े कर देते हैं, पेरिस दौरे को लेकर भी हुआ?

जवाब- लोकतांत्रिक मर्यादाओं को दरकिनार कर जब एक पक्ष दूसरे को नीचा दिखाने के लिए राजनीतिक चालें चलता है तो दूसरा पक्ष विरोध भी करेगा ही। जब विरोध होगा तो विवाद होना भी स्वाभाविक है। यही कहानी इस बार के प्रस्तावित पेरिस दौरे की है।

मैं पेरिस किसी सरकारी दौरे पर तो जा नहीं रहा था। भारत की हॉकी टीम में अधिकांश खिलाड़ी पंजाब से हैं और मैं तो पंजाबी के नाते वहां जाकर उनकी हौसला अफजाई करना चाहता था। सारा खर्च निजी था। मैच की टिकट, होटल बुकिंग, फ्लाइट के किराये से लेकर हर खर्च अपने पैसे से कर रहा था।

कुछ सरकारी था तो केंद्र सरकार की अनुमति, जिसे देने से इनकार कर दिया गया। जब मैंने और मेरी पार्टी ने इसका विरोध किया तो विवाद खड़ा कर दिया गया।

सवाल- केंद्र ने कहा कि रिजेक्शन की वजह मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा अनुमति के लिए अप्लाई करने में हुई देरी है, न कि गैरभाजपा शासित राज्य का मुख्यमंत्री होना?

जवाब- सरासर झूठ... (आक्रामकता दिखाते हुए), वह (केंद्र) चिल्ला-चिल्ला कर एक झूठ सौ बार बोलेंगे तो क्या उसे सच मान लिया जाएगा? हमने तो हॉकी के पहले मैच के बाद ही दौरे की अनुमति के लिए अप्लाई कर दिया था और विदेश मंत्रालय द्वारा हमें भेजे गए संदेश में तो सुरक्षा कारणों को वजह बताया गया है।

दरअसल, यह सब पीएम के इशारे पर हुआ है। मोदी जी 'लाइट... कैमरा... एक्शन' के चलते हर बात का क्रेडिट स्वयं लेना चाहते हैं। अब हॉकी टीम में 10 खिलाड़ी पंजाब से हैं और उन्हें लगा कि अगर पंजाब का मुख्यमंत्री वहां पहुंच गया तो सब... सो बहाना बनाकर रिजेक्ट कर दिया गया।

सवाल- खैर, वजह कुछ भी हो, लेकिन राज्यों और केंद्र के बीच टकराव में बड़ा नुकसान तो राज्य का ही होता है? तो क्या केंद्र सरकार के साथ पंजाब का टकराव ऐसे ही चलता रहेगा?

जवाब- नहीं, बिल्कुल नहीं... मेरी राजनीति का रास्ता टकराव की राजनीति से नहीं निकलता, लेकिन जब सामने वाला अड़ जाए और रास्ता बंद कर खड़ा हो जाए तो टकराव ही अंतिम विकल्प बचता है। संघवाद में तो केंद्र और राज्यों की शक्तियां साफ हैं।

कहीं टकराव पैदा ही नहीं होना चाहिए था, लेकिन आप देखें 2014 से मोदी सरकार लगातार पंजाब से सौतेला व्यवहार कर रही है। हर बजट, हर योजना, हर स्तर पर पंजाब की अनदेखी की जा रही है।

ओलिंपिक सीजन है... खेल फंडिंग की देख लो तो पता चल जाएगा कि भारतीय ओलिंपिक दल में उत्तर प्रदेश या अन्य भाजपा शासित राज्यों से ज्यादा खिलाड़ी पंजाब से हैं, लेकिन खेलो इंडिया के तहत फंडिंग पंजाब को उनके मुकाबले कई गुना कम।

हाल ही में केंद्रीय वित्तमंत्री ने बजट पेश किया, लेकिन उन्होंने पंजाब का नाम एक बार भी नहीं लिया। पंजाब का ग्रामीण विकास फंड दो साल से रोका हुआ है, जिसे लेने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। नेशनल हेल्थ मिशन का पैसा हमें नहीं दिया जा रहा।

सवाल- लेकिन ऐसे बढ़ते टकराव के लिए क्या सिर्फ केंद्र जिम्मेदार है? नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार कर आपने तो इस खाई को और गहरा कर दिया? आप भी वहां जाकर पंजाब की बात रख सकते थे?

जवाब- आप इस एक बैठक के बहिष्कार को नजीर बनाकर क्यों देख रहे हो? मैंने तो पहले भी तीन बैठकें की हैं... पिछले वर्षों में भी ऐसी कई मीटिंग अटेंड की हैं, लेकिन मिला क्या हमें? कुछ भी नहीं।

मुख्यमंत्रियों को बुलाकर वहां भी बैठक में प्रधानमंत्री मोदी जी एकतरफा संवाद करते हुए सिर्फ और सिर्फ अपने 'मन की बात' करते हैं, सुनते किसी की नहीं। जब वहां बुलाकर भी इतनी अनदेखी ही करनी है उस बैठक में जाने का औचित्य ही नहीं रह जाता।

एक तरफ प्रधानमंत्री सबका साथ, सबका विकास का नारा लगाते हैं, दूसरी ओर सारा दिन यही सोचते रहते हैं कि कैसे राज्यों को नीचा दिखाया जाए। खेल बजट की बात मैंने पहले ही कर दी है और यह कोई एक उदाहरण नहीं है।

सवाल- आपका तो राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के साथ भी विवाद चरम पर रहा, इसकी क्या वजह है?

जवाब- (बीच में रोकते हुए...) बिल्कुल, राज्यपाल साहब भी तो मोदी जी की उसी 'सब कुछ हथियाने' वाली स्ट्रेटेजी का अहम किरदार रहे हैं। वह तो हर कदम मोदी जी और अमित शाह जी के इशारे पर उठाते थे। मेरा उनसे किसी खेत या घर को लेकर कोई निजी विवाद तो था नहीं।

वास्तव में वहां तो लड़ाई 'इलेक्टेड बनाम सिलेक्टेड' की थी। मैं दो करोड़ से ज्यादा लोगों की पसंद से चुन कर मुख्यमंत्री बना था और वह मात्र दो लोगों की पसंद से राज्यपाल बनकर आए थे। उन्होंने हर फैसले पर सवाल तो उठाए, लेकिन क्या कभी उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से पंजाब के रोके गए फंड पर एक बार भी पत्राचार किया?

सवाल- अब तो राज्यपाल बदल गए हैं, क्या राजभवन और मुख्यमंत्री ऑफिस में सुलह की उम्मीद की जा सकती है?

जवाब- (हंसते हुए...) उम्मीद नहीं पूरा यकीन है कि अब सब ठीक हो जाएगा। मैं, नए राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया जी से मिलकर आया हूं। उनकी बातों से ही स्पष्ट हो गया कि कोई समस्या आने वाली नहीं है।

इसकी बड़ी वजह है कि कटारिया साहब स्वयं आठ बार विधायक चुने गए हैं और तीन बार सरकार में मंत्री बने हैं, सो जाहिर है कि वह भलीभांति समझते हैं कि 'इलेक्टेड और सिलेक्टेड' में क्या अंतर है?

सवाल- ‘जेल का जवाब वोट से’ नारा देकर लोकसभा चुनाव लड़ा और बार-बार 13-0 सीट का दावा किया था, लेकिन नतीजा 3-10 में बदल गया? क्या पंजाब की जनता राज्य सरकार से नाखुश है?

जवाब- देखिए हर चुनाव में मतदान का पैटर्न अलग होता है। विशेषकर देश के आम चुनाव में पंजाब के वोटर का रवैया तो हमेशा हट कर दिखा है। देश के प्रधानमंत्री के लिए होने वाले चुनाव में राज्य सरकार द्वारा लिए गए फैसले या राज्य सरकार की नीतियां वोटर पर ज्यादा प्रभाव नहीं डालतीं।

मैं तो बिल्कुल नहीं मानता कि लोकसभा के नतीजे राज्य में मेरी सरकार की कारगुजारी के पक्ष या विरोध में कोई फतवा पेश करते हैं। दिल्ली का ही उदहारण ले लो... लोकसभा चुनाव में वहां लगातार तीन बार से सभी सातों सीटें भाजपा जीत जाती है, लेकिन उसके कुछ ही महीनों बाद वही मतदाता, उन्हीं बूथों पर आम आदमी पार्टी को रिकॉर्ड मतों से जितवा देते हैं।

पंजाब में अब ऐसा ही होने लगा है। 2022 में हमने 92 सीटें जीतीं, लेकिन केवल तीन महीने बाद ही हम संगरूर की लोकसभा सीट सिमरनजीत सिंह मान जैसे व्यक्ति से हार गए। आज का वोटर विधानसभा चुनाव में एक माइंडसेट से वोट डालता है तो लोकसभा चुनाव में अलग माइंडसेट से।

सवाल- अलगाववादी सोच वाले अमृतपाल और सरबजीत पंजाब से चुनाव जीत गए? अलगाववादी सोच का ऐसा उभार क्या चिंता का विषय नहीं है?

जवाब- नहीं, यह ज्यादा चिंता का विषय नहीं है। ऐसे उभार समय के साथ अपने आप खत्म हो जाते हैं। पंजाब ने काला दौर देखा है और कोई भी उसे दोबारा देखना नहीं चाहता। पंजाब में रहने वाला एक भी व्यक्ति, बेशक वह सिख ही क्यों न हो, खालिस्तान की हिमायत नहीं करता।

ऐसे लोगों की पैरवी और उनकी बेतुकी बातों को प्रचारित और प्रसारित करने का काम विदेश में बैठे लोग करते हैं। मानो पंजाब में ऐसी सोच लगातार उभर रही है, जबकि ऐसा है नहीं...!

सवाल- आइएनडीआइए के गठन के बाद पंजाब में भगवंत मान सरकार ने कांग्रेस के पूर्व मंत्रियों पर भ्रष्टाचार को लेकर की जा रही विजिलेंस की कार्रवाई रोकी हुई है?

जवाब- बिल्कुल नहीं, आइएनडीआइए के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाना एक बड़ी लड़ाई के आगाज के लिए सियासी समझौता है, जबकि भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी पार्टी की सैद्धांतिक लड़ाई है।

बेशक राष्ट्रीय स्तर के सियासी मंचों पर हमारा कांग्रेस से गठजोड़ है, लेकिन पंजाब में हर उस कांग्रेस नेता, जो पिछली सरकार में भ्रष्टाचार में लिप्त था, उसके खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी।

सवाल- कांग्रेस नेता तो आप पर जमकर बदलाखोरी और प्रदेश में अमन कानून बिगाड़ने का आरोप लगा रहे हैं?

जवाब- उनके पास जब कोई मुद्दा ही नहीं है तो सुर्खियों में रहने के लिए उन्हें कुछ तो बोलना ही है। इसलिए बोलते रहते हैं। कांग्रेसियों ने जो पिछले पांच साल बोया, वही अब काट रहे हैं।

अपने केस लड़ने में वह इतने व्यस्त हैं कि उन्हें पता ही नहीं कि राष्ट्रीय एजेंसी ने हमें देशभर के राज्यों में बेहतर लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति को लेकर दूसरे पायदान पर रखा है।

अमन-कानून की स्थिति जितनी पंजाब में नियंत्रण में है, इतनी किसी भी प्रदेश में नहीं है। गैंगस्टरों, अलगाववादियों और नशा तस्करों पर जिस प्रकार की नकेल हमने कसी है, क्या पंजाब में कभी पहले ऐसा दिखा है?

सवाल- अमृतपाल और सरबजीत सिंह के चुनाव जीतने के बाद कैसे कह सकते हैं कि विघटनकारी ताकतों का उभार पंजाब में अब केवल सोशल मीडिया तक सीमित है?

जवाब- मैंने पहले भी कहा इस तरह के लोगों को कोई पसंद नहीं करता। धर्म के नाम पर युवाओं को भ्रमित करना, श्री गुरु ग्रंथ साहिब का स्वरूप लेकर थानों को घेरना, गुरुद्वारों में तोड़फोड़ करना, दूसरे धर्मों को गाली-गलौच कर उनके खिलाफ भड़काऊ बातें करना, क्या ऐसे निंदनीय कृत्य कोई भी पंजाबी अप्रूव करता है?

बिल्कुल नहीं। रही बात ऐसे लोगों द्वारा चुनाव जीत जाने की तो मान कर चलिए कि कभी-कभार ऐसे उभार आ ही जाते हैं। मुझे याद है जब मैं नौवीं कक्षा में था तब 1989 के चुनाव हुए थे। हमारा गांव पटियाला संसदीय सीट में पड़ता था।

जहां सिमरनजीत मान की पार्टी का प्रत्याशी अतिंदरपाल जेल में बंद रहकर चुनाव लड़ रहा था। उसका चुनाव चिन्ह ताला-चाबी था। मैं भी उसी सोच का हिस्सा बन गया और गांव वालों सहित अपनी-अपनी माता को भी कहता फिरता कि बेबे, वोट इसी को डालना, क्योंकि यह तो जेल में ताला बंद और इस ताले की चाबी हमारे पास है।

न तो कभी मां ने मुझसे पूछा कि यह कौन है न ही हमने कभी उसका बैकग्राउंड पता करने की कोशिश की। बस जेल में बंद तस्वीरें देखी, सो जुट गए उसे जितवाने में।

एक बार तो वह जीत गया, लेकिन उसके बाद अतिंदरपाल का क्या हुआ? शायद आज किसी को पता भी नहीं। सो कहने का भाव है कि कई बार ऐसे ही वोट पड़ते हैं और ऐसा ही इस बार पंजाब में हुआ।

सवाल- आप कह रहे हैं कि अमृतपाल जैसे अलगाववादी सोच के लोगों को आगे कभी वोट नहीं मिलेगा?

जवाब- डरने की कोई वजह नहीं, क्योंकि ऐसे नकारात्मक और विघटनकारी विचार ज्यादा दिन नहीं टिकते। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सपने में भी पंजाब में सांप्रदायिक सद्भाव और शांति बिगाड़ने के बारे में सोचने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

दरअसल, यह पूर्व मुख्यमंत्री और जालंधर से कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी जैसे नेताओं द्वारा दिए बयान ही हैं, जो आम जनता को आशंकित करते हैं। कांग्रेस जैसी पार्टी के नेता भी अलगाववादियों के समर्थन में आ गए हैं।