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पंजाब में AAP का हाल- एक कदम आगे और दो कदम पीछे, पूरे राज्‍य में आधार बनाना चुनौती

Aam Adami Party पंजाब में आम आदमी पार्टी का हाल एक कदम आगे और दो कदम पीछे वाला रहा है। पार्टी के लिए अब भी पूरे पंजाब में आधार बनाना बड़ी चुनौती है। राज्‍य के दोआबा और माझा क्षेत्र में आप का आधार ज्‍यादा मजबूत नहीं है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Mon, 07 Jun 2021 03:13 PM (IST)
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पंजाब आप के प्रधान भगवंत मान और आप के राष्‍ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की फाइल फोटो।
चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। Aam Adami Party In Punjab: राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर आम आदमी पार्टी का आधार बनाने वाले पंजाब में पार्टी हमेशा ही एक कदम आगे और दो कदम पीछे चलती रही है। यह क्रम 2015 से शुरू हुआ और 2021 तक बदस्तूर जारी है। आप 2022 के विधानसभा चुनाव में भले ही एक बार फिर दावेदारी ठोक रही है लेकिन पार्टी का पूरे पंजाब में कभी भी कोई मजबूत आधार नहीं रहा। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी राज्‍य में सत्‍ता हासिल करने के दावे कर रही थी, लेकिन 20 सीटों पर ही सिमट गई। इस बार पार्टी को मजबूत आधार देने वाले कई नेता उसका साथ छोड़ चुके हैं।

दोआबा-माझा में कभी भी नहीं रहा आप का मजबूत जनाधार, मालवा में भी कम हुए वोट

राज्य के दो हिस्सों माझा और दोआबा की 48 सीटों में से 2017 में केवल तीन विधानसभा सीटों पर ही आप को सफलता मिली थी। मालवा में 69 में से 17 सीटों मिल गई थीं। लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2014 के चुनाव में 24.40 फीसद वोट शेयर लेने वाली आप 2019 में केवल 7.37 फीसद वोट तक ही सिमट गई।

आम आदमी पार्टी के तीन बागी विधायकों के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद आप एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब आप पूरे देश में विफल हुई थी तो पंजाब में चार सीटों पर उसे विजय मिली थी। यह चारों लोकसभा सीटें मालवा क्षेत्र से थीं। लेकिन उसके बाद जल्द ही पार्टी में विघटन की चिंगारी सुलगने लग गई थी। दो सांसदों ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।

आप ने 2015 में अपने दो सांसदों, पटियाला से धर्मवीर गांधी और फतेहगढ़ साहिब से हरिंदर सिंह खालसा को पार्टी से निलंबित कर दिया। पार्टी ने दोबारा इन दोनों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश नहीं की। धर्मवीर गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्‍नी परनीत कौर को हराया था।

2017 के विधानसभा चुनाव में आप का विश्वास बढ़ा हुआ था और आप नेता 117 में से 108 सीटें जीतने तक का दावा कर रहे थे, लेकिन चुनाव परिणामों ने उनको निराश ही किया। आप के केवल 20 प्रत्याशी ही जीत हासिल कर पाए। अहम पहलू यह रहा कि इसमें से सुखपाल खैहरा को छोड़कर बाकी के सारे 19 विधायक पहली बार चुनाव लड़े और जीते थे।

दोआबा में भुलत्थ से सुखपाल खैहरा, रूपनगर से अमरजीत सिंह संदोआ और गढ़शंकर से जय किशन ही जीत हासिल कर पाए। माझा में एक भी सीट नहीं मिली। इस तरह दोआबा और माझा की 48 में से 45 सीटों पर आप कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। अब फिर पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तलाशने में जुट गई है लेकिन जिस तरह से उसकी लोकप्रियता लगातार कम होती गई है, उसे कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

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