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'यह सरकार किसान और जवान की नहीं बल्कि धनवान की है', केंद्र पर बरसे कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने केंद्र सरकार पर किसानों से विश्वासघात करने का आरोप लगाया है। दीपेंद्र हुड्डा का कहना है कि कोरोना की आड़ में जिस ढंग से तीन कृषि कानूनों को लागू किया गया था उससे तभी देश के किसान को षड्यंत्र की बू आ गई थी। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों को फसल की लागत में 50% लाभ जोड़कर एमएसपी अभी तक नहीं दिया।

By Anurag AggarwaEdited By: Rajat MouryaUpdated: Mon, 21 Aug 2023 07:02 PM (IST)
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'यह सरकार किसान और जवान की नहीं बल्कि धनवान की है', केंद्र पर बरसे कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो। कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य एवं सांसद दीपेंद्र हुड्डा (Deepender Hooda) ने कहा कि भाजपा सरकार का किसानों और जवानों के हितों से कोई लेना देना नहीं है। यह सरकार न किसान की है और न जवान की है। यह सरकार सिर्फ धनवान की है। दीपेंद्र हुड्डा ने आरोप लगाया कि तीन कृषि कानून मालदार लोगों को लाभ देने के लिए बनाए गए थे। सरकार बार-बार कहती रही कि वह इन तीन कृषि कानूनों के फायदे किसानों को समझा नहीं पाई, जबकि असलियत यह है कि किसान इन कानूनों से होने वाले भयंकर नुकसान को समय रहते समझ गए थे।

नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया से बात करते हुए दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि अन्नदाता पर थोपे गए तीन कृषि कानूनों का कड़वा सच जनता के सामने आ गया है। कोरोना की आड़ में जिस ढंग से तीन कृषि कानूनों को लागू किया गया था, उससे तभी देश के किसान को षड्यंत्र की बू आ गई थी। एक साल से ज्यादा समय तक चले शांतिपूर्ण संघर्ष और 750 किसानों के बलिदान के बाद आखिरकार इस सरकार को तीनों कानून वापस लेने पड़े। इसके बाद से बीजेपी सरकार द्वेष भावना से किसानों की उपेक्षा करती रही।

'शरद मराठे का कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं'

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि किसानों की आय डबल करने की आड़ में भाजपा के करीबी एनआरआई उद्योगपत्ति शरद मराठे द्वारा नीति आयोग को भेजे एक प्रस्ताव में कृषि सेक्टर को प्राइवेट हाथों में देने का कदम उठाया गया, जबकि 1960 से अमेरिका में रह रहे शरद मराठे का कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है।

'दलवई कमेटी की रिपोर्ट को न मानकर...'

उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने दलवई कमेटी की रिपोर्ट को न मानकर शरद मराठे वाली टास्क फोर्स द्वारा जमाखोरी पर अंकुश लगाने और कीमतों में उतार चढ़ाव को नियंत्रित करने वाले आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने की सिफारिश को तुरंत मान लिया, जिसमें 3 कानूनों में से एक के तौर पर बिचौलियों को जमाखोरी की इजाजत देने और एमएसपी पर खरीदने की अनिवार्यता नहीं होने की सिफारिश शामिल है।

'किसानों के साथ विश्वासघात हुआ'

सांसद ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस बिल को संसद में लाने की बजाय अध्यादेश जारी कर लागू कर दिया। सरकार का किसानों के साथ जो समझौता हुआ था, वह भी विश्वासघात साबित हुआ। सरकार ने किसानों को फसल की लागत में 50% लाभ जोड़कर एमएसपी अभी तक नहीं दिया। बलिदान हुए 750 किसानों के परिजनों को मुआवजा नहीं मिला। न उन्हें शहीद का दर्जा दिया और न ही उनके परिजनों को नौकरियां दी। संसद में भी एक मिनट का मौन नहीं रखा गया। उनके खिलाफ दर्ज केस भी वापस नहीं हुए।

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