'सुपारी से कैंसर' वाली दलील खारिज, बीमा कंपनी को देना होगा क्लेम, उपभोक्ता आयोग ने कहा-सब्जबाग दिखाने के बाद जिम्मेदारी से न भागें
चंडीगढ़ उपभोक्ता आयोग ने सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस को मुंह के कैंसर से हुई मौत के मामले में बीमा क्लेम देने का आदेश दिया। कंपनी ने सुपारी खाने की आदत को आधार बनाकर क्लेम खारिज कर दिया था। आयोग ने इसे गलत ठहराते हुए 3.18 लाख रुपये ब्याज सहित और 20 हजार रुपये हर्जाना भरने का आदेश दिया। आयोग ने कहा कि बीमा का उद्देश्य आर्थिक सुरक्षा है, न कि कंपनियां बहाने बनाकर दायित्व से बचें।

बीमा कंपनी ने मरीज की सुपारी खाने की आदत को बहाना बनाकर किया था क्लेम खारिज, उपभोक्ता आयोग ने शिकायतकर्ता के पक्ष में सुनाया फैसला।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। उपभोक्ता आयोग ने मुख के कैंसर से व्यक्ति की मौत के मामले में सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को कड़ी फटकार लगाते हुए बीमा क्लेम अदा करने का फैसला सुनाया है। 3.18 लाख रुपये छह प्रतिशत ब्याज सहित अदा करने और 20 हजार रुपये हर्जाना भरने के निर्देश दिए।
आयोग ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बीमा कंपनियां पाॅलिसी बेचते समय ग्राहकों को सब्जबाग दिखाती हैं, लेकिन जब दावे का समय आता है तो तरह-तरह के बहाने बनाकर जिम्मेदारी से बचती हैं। बीमा का उद्देश्य विलासिता नहीं, बल्कि अनहोनी की स्थिति में आर्थिक सुरक्षा देना होता है।
शिकायतकर्ता अमरजीत कौर वालिया के पति गुरनाम सिंह वालिया का मुंह के कैंसर से निधन हो गया था। गुरनाम ने सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से नौ मार्च 2019 से आठ मार्च 2020 तक की अवधि के लिए 4.5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा लिया था। जनवरी 2020 में उन्हें फोर्टिस अस्पताल में इलाज के दौरान मुख के कैंसर का निदान हुआ और उनके इलाज पर 3.55 लाख रुपये खर्च हुए। बाद में गुरनाम वालिया की मौत हो गई।
बीमा करने ने दिया था पाॅलिसी के नियमों का हवाला
गुरनाम के परिवार ने बीमा क्लेम मांगा, लेकिन कंपनी ने 27 जून 2020 को यह कहकर क्लेम खारिज कर दिया कि मरीज को सुपारी खाने की आदत थी। बीमा कंपनी का कहना था कि पाॅलिसी के नियमों के अनुसार “नशे या किसी नशीले पदार्थ के दुरुपयोग” से जुड़ी बीमारियां पाॅलिसी से बाहर हैं। डाॅक्टर की पर्ची में मरीज के सुपारी खाने का उल्लेख होने के आधार पर उन्होंने क्लेम अस्वीकार किया।
केवल डॉक्टर की पर्ची साबित नहीं कर सकती की बीमारी सुपारी खाने की वजह से हुई
आयोग ने कहा कि बीमा कंपनी ने केवल डाॅक्टर की पर्ची पर भरोसा किया, लेकिन डाॅक्टर का हलफनामा या गवाही पेश नहीं की। आयोग ने कहा कि केवल पर्ची के उल्लेख से यह साबित नहीं किया जा सकता कि बीमारी सुपारी खाने की वजह से हुई थी। भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत इस तरह के दस्तावेज प्रमाण योग्य नहीं माने जाते।

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