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भगवंत मान सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा आज, आखिर क्यों पड़ी इसकी जरूरत, पढ़ें राज्य में दलीय स्थिति

पंजाब विधानसभा में आज भगवंत मान सरकार के विश्वास मत पर चर्चा होगी। आम आदमी पार्टी को पंजाब में प्रचंड बहुमत हासिल हैं। राज्य की 117 सीटों में से 92 पर आप का कब्जा है। आइए जानते हैं मान सरकार को विश्वास मत की जरूरत क्यों पड़ी...

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Mon, 03 Oct 2022 11:05 AM (IST)
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भगवंत मान सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा आज। सांकेतिक फोटो
आनलाइन डेस्क, चंडीगढ़। पंजाब की भगवंत मान सरकार गत सप्ताह मंगलवार को विश्वास मत का प्रस्ताव पेश किया था। इस पर आज बहस होगी। विपक्ष के बहस में हिस्सा लेने की संभावना कम ही है। कांग्रेस एक बार फिर फौजा सिंह सरारी के मामले में सत्ता पक्ष को घेरेगी। कांग्रेस ने इस सत्र में शुरू से सरारी मामले पर आक्रामक रुख अपनाए रखा। वह सदन में सरारी की बर्खास्तगी के लिए नारेबाजी करते रहे। 

पंजाब में दलीय स्थिति

आम आदमी पार्टी को पंजाब विधानसभा में प्रचंड बहुमत हासिल है। विधानसभा में 117 सीटों में से 92 पर आम आदमी पार्टी का ही कब्जा है, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस है। कांग्रेस के महज 18 ही विधायक हैं, जबकि शिरोमणि अकाली दल के 3, भारतीय जनता पार्टी के दो व बसपा 1 तथा एक निर्दलीय विधायक है। 

क्यों पड़ी विश्वास मत की जरूरत

आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर आपरेशन लोटस के तहत विधायकों को तोड़ने का आरोप लगाया। आप का कहना है कि भाजपा ने उसके विधायकों को खरीदने के लिए 25-25 करोड़ रुपये तक का आफर दिया। आप ने बकायदा मोहाली में मामला भी दर्ज कराया है।

सरकार व राज्यपाल में हुआ टकराव

भाजपा पर आपरेशन लोटस के तहत विधायक तोड़ने का आरोप लगाने के बाद भगवंत मान ने 22 सितंबर को विश्वास मत हासिल करने के लिए सत्र बुलाया, लेकिन राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने पहले सत्र को मंजूरी देने के बाद इसे रद कर दिया। इससे आप व राज्यपाल में टकराव की स्थिति पैदा हो गई। 22 सितंबर को ही आम आदमी पार्टी ने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ चंडीगढ़ में रोष प्रदर्शन किया। वहीं, उसी दिन भाजपा ने राज्यपाल के समर्थन में मार्च निकाला। 

दोबारा सत्र बुलाया तो राज्यपाल ने मांगी जानकारी

22 सितंबर को सत्र की मंजूरी न देने के बाद सरकार ने फिर 27 सितंबर को सत्र बुलाने की मंजूरी मांगी, लेकिन राज्यपाल ने एक बार फिर सरकार से सवाल पूछ लिया। राज्यपाल ने सत्र के एजेंडे के बारे में सरकार से जवाब मांगा। इस पर भी खूब राजनीति हुई, लेकिन आखिरकार सरकार को सत्र का एजेंडा बताना पड़ा, लेकिन इसमें विश्वास मत का जिक्र नहीं था। 

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