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Employee Housing Scheme: हाईकोर्ट के फैसले को SC में चुनौती देगा चंडीगढ़ प्रशासन, दो महीने में निर्माण शुरू करने का आया था आदेश

पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट की ने 30 मई को हाउसिंग इंप्लाइज स्कीम (Employee Housing Scheme) को लेकर फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन और चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए 2008 की सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम को लेकर दो महीने के अंदर निर्माण करने का आदेश दिया था। वहीं यूटी प्रशासन हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने की तैयार में है।

By Jagran News Edited By: Jagran News NetworkUpdated: Wed, 24 Jul 2024 12:04 PM (IST)
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हाउसिंग इंप्लाइज स्कीम पर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा यूटी प्रशासन (जागरण फाइल फोटो)

राजेश ढल्ल, चंडीगढ़। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से हाउसिंग इंप्लाइज स्कीम के हक में आए फैसले को जहां यूटी प्रशासन सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है वहीं इससे पहले कर्मचारियों की हाउसिंग इंप्लाइज सोसाइटी ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी है ताकि याचिका पर प्रथम सुनवाई के समय ही कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का मौका मिल सके।

30 मई को आए पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को दो माह होने वाले है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन और चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए 2008 की सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम को सिरे चढ़ाने के निर्देश दिए थे।

इसके साथ ही हाई कोर्ट डबल बैंच ने मामले में आदेश जारी होने के दो महीने के भीतर सेल्फ फाइनेंसिंग हाउसिंग स्कीम की कंस्ट्रक्शन शुरू करने और एक वर्ष के भीतर 3930 फ्लैट तैयार करने के निर्देश दिए थे। दो माह का समय 31 जुलाई को पूरा हो रहा है।

16 साल से कर रहे हैं संघर्ष

हाउसिंग इंप्लाइज सोसाइटी के पदाधिकारियों के अनुसार प्रशासन ने स्कीम को सिरे चढ़ाने के लिए प्रक्रिया शुरू न करके हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना की है। इसलिए उन्होंने पहले ही सुपीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी है। सुप्रीम कोर्ट में जाने की संभावना के कारण यूटी प्रशासन की ओर से अभी तक स्कीम को लेकर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की है।

मालूम हो कि पिछले 16 साल से 3930 कर्मचारी और उनका परिवार अपने फ्लैट के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कर्मचारियों ने प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर यह गुहार भी लगाई है कि हाईकोर्ट के आदेश को माना जाए और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा न खटखटाया जाए। असल में यूटी प्रशासन इसलिए स्कीम को सिरे नहीं चढ़ाना चाहता क्योंकि वह स्कीम के लिए पुराने रेट पर जमीन देने के लिए तैयार नहीं है। प्रशासन का मानना है कि इस स्कीम को सिरे चढ़ाने पर 4400 करोड़ रुपये की लागत आ रही है। जिसमें जमीन की कीमत भी शामिल है।

कर्मचारियों का यह है तर्क

कर्मचारियों का तर्क है कि इस स्कीम के लिए सेक्टर-52,53 और 56 में पहले से जमीन तय है। यह जमीन भी प्रशासन ने पुराने रेट पर ही अधिग्रहित की है। जब प्रशासन ने यहां पर जमीन भी सस्ते और पुराने रेट पर अधिग्रहित की है तो फिर प्रशासन बढ़े हुए रेट क्यों इस जमीन के लिए लेना चाहता है और दूसरा वह निर्माण की जो कीमत 16 साल में बढ़ी है उसका पूरा भुगतान करने के लिए तैयार है। ऐसे में प्रशासन को इस स्कीम को सिरे से चढ़ाने पर कोई नुकसान नहीं है उनके सरकारी खजाने पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

मालूम हो कि यह स्कीम हाउसिंग बोर्ड द्वारा बनाई जाएगी। साल 2008 में जब इस स्कीम को लांच किया गया था तो उस समय करीब आठ हजार कर्मचारियों ने अग्रिम राशि (अर्नेस्ट मनी) के तौर पर 53 करोड़ रुपये की राशि जमा करवाई थी।

ए कैटगरी के फ्लैट के लिए 1.75 लाख, बी कैटगरी के लिए 1.22 लाख, सी कैटगरी के लिए 70 हजार और डी कैटगरी के फ्लैट के लिए कर्मचारी ने 30 हजार रुपये की राशि जमा करवाई थी। ड्रा के बाद असफल रहने वाले चार हजार कर्मचारियों ने अपनी अर्नेस्ट मनी प्रशासन से वापस ले ली। सफल कर्मचारियों का 26 करोड़ रुपये हाउसिंग बोर्ड के पास जमा रहा जिसकी बोर्ड ने एफडी करवा दी। अब 16 साल बाद यह राशि 100 करोड़ रुपये बन गई है।

इस कारण अटका है मामला

केंद्र सरकार ने बनने वाले फ्लैट के निर्माण के लिए जमीन का टाइटल तो क्लीयर कर दिया था। लेकिन पुराने रेट पर सरकार जमीन देने के लिए तैयार नहीं हुए है। इसलिए कर्मचारियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। साल 2012 को केंद्र सरकार द्वारा एक पत्र जारी किया गया था जिसमे कहा गया था कि किसी भी योजना के लिए बाजार मुल्य से कम पर जमीन नही दी जाएं। यह हाउसिंग स्कीम सेक्टर-52,53 और 56 में करीब 45.5 एकड़ में तैयार होनी थी।

हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्कीम में सफल कर्मचारियों को ब्रोशर रेट 7920 पर जमीन का भुगतान करना होगा, जबकि कंस्ट्रक्शन खर्च मौजूदा रेट के हिसाब से देय होगा। हाउसिंग स्कीम के इंतजार में 100 से अधिक कर्मचारियों की मौत हो चुकी है, जबकि 900 रिटायर भी हो चुके हैं।

हाउसिंग इंप्लाइज सोसाइटी ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी है। 31 जुलाई को पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला आए हुए दो माह का समय हो जाएगा। यूटी प्रशासन को वैसे सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहिए और कर्मचारियों के हक में स्कीम पर निर्माण कार्य शुरू कर देना चाहिए। कर्मचारियों ने पहले से काफी लंबी लड़ाई लड़ी है। जिन कर्मचारियों को फ्लैट मिलने है वह शहर की सेवा ही कर रहे हैं। जहां पर फ्लैट निर्माण होने है उसके लिए पहले से जमीन तय है। प्रशासन को कोई वित्तीय नुकसान नहीं है।

नरेश कोहली, उपाध्यक्ष, हाउसिंग इंप्लाइज सोसाइटी