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Farmers Protest: आपसी मतभेद के बाद भी साथ आए किसान संगठन, यूनियनों में क्रेडिट वॉर की लालसा या कैडर टूटने का सता रहा डर?

Farmers Protest संयुक्त किसान मोर्चा के बाद अब सभी किसान संगठन सक्रिय हो गए हैं। आपसी मतभेदों के बावजूद किसान यूनियनों ने किसान आंदोलन को अपना समर्थन देने का एलान किया है उससे लगता है कि उन्हें भी अपने कैडर के टूटने का डर सता रहा है। उनका अपनी लीडरशिप पर दबाव है कि वे भी आंदोलन को समर्थन दें या फिर उन्हें आंदोलन में जाने दें।

By Inderpreet Singh Edited By: Himani Sharma Updated: Sat, 17 Feb 2024 09:07 PM (IST)
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SKM के बाद अब दूसरे किसान संगठन भी हुए सक्रिय (फाइल फोटो)

इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के डल्लेवाल गुट के दिल्ली कूच के आह्वान से अब तक दूरी बनाए हुए दूसरे संगठन भी अब सक्रिय होने लगे हैं। इसी के चलते भारतीय किसान यूनियन उगराहां के प्रधान जोगिंदर सिंह उगराहां जो दो दिन पहले तक डल्लेवाल गुट की आलोचना कर रहे थे।

अब उन्‍होंने शुक्रवार को न केवल आंदोलन का समर्थन कर दिया बल्कि 17 व 18 फरवरी को राज्य के सभी टोल फ्री करवाने के अलावा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के घर का घेराव भी कर दिया।

सयुक्‍त किसान मोर्चा भी हुआ सक्रिय

उधर, दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा (राजनीतिक) भी सक्रिय हो गया है। 16 फरवरी को भारत बंद का आह्वान करने के बाद इससे उपजी स्थिति का आकलन करने और अगली रणनीति तय करने के लिए उन्होंने अपने सभी संगठनों की 18 फरवरी को लुधियाना में बैठक बुला ली है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने दावा किया था कि पंजाब में बंद पूरी तरह से सफल रहा था।

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किसानों की मांगों को आगे बढ़ाने के लिए अब क्या रणनीति बनाई जाए इसके लिए नेशनल कन्फेडरेशन की बैठक जल्द होगी जिसमें इसकी रूपरेखा तैयार की जाएगी। हालांकि उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक की ओर से चलाए जा रहे आंदोलन को समर्थन देने संबंधी अभी कोई फैसला नहीं किया है। उन्होंने कहा कि 18 फरवरी को होने वाली बैठक में किसानी मांगों को लेकर विचार किया जाएगा।

लगातार बढ़ा बैठकों का सिलसिला

काबिले गौर है कि जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने किसानों की मांगों का हल करने के लिए लगातार बैठकों का सिलसिला बढ़ाया हुआ है। उससे आंदोलन से बाहर रह रहीं यूनियनों को लग रहा है कि अगर केंद्र सरकार ने उनकी मांगें मान लीं तो इसका सारा क्रेडिट संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) को मिल जाएगा।

यही नहीं, चूंकि पिछले पांच दिनों से शंभू बैरियर पर जिस प्रकार से किसानों पर आंसू गैस के गोले चलाए जा रहे हैं या प्लास्टिक के बुलेट्स से उनको नुकसान पहुंचाया जा रहा है उससे किसान नाराज हैं। वे चाहे किसी भी यूनियन से संबंधित हों, उनकी यूनियन की किसान आंदोलन को समर्थन देने की कॉल हो या न हो, साधारण कार्यकर्ता अपनी लीडरशिप के आदेशों की अवहेलना करके किसान आंदोलन में शामिल हो रहे हैं।

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संभवत: इसीलिए आंदोलन में उम्मीद से ज्यादा लोग पहुंच गए हैं। शंभू बैरियर पर भाकियू लक्खोवाल के एक नेता ने बताया कि सरकार हमारे भाइयों पर अत्याचार करे और हम घरों में बैठे रहें, यह नहीं हो सकता। लीडरशिप कुछ कहे या न कहे , मैं तो अपने साथियों सहित यहां पर आ गया हूं।

कैडर टूटने का डर

जिस प्रकार से आपसी मतभेदों के बावजूद किसान यूनियनों ने किसान आंदोलन को अपना समर्थन देने का एलान किया है उससे लगता है कि उन्हें भी अपने कैडर के टूटने का डर सता रहा है। उनका अपनी लीडरशिप पर दबाव है कि वे भी आंदोलन को समर्थन दें या फिर उन्हें आंदोलन में जाने दें। इसलिए 18 फरवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से बुलाई गई मीटिंग जहां अहम होगी वहीं, केंद्र सरकार के साथ बातचीत अब किस दिशा में बढ़ेगी रविवार को होने वाली बैठक भी इस पर अन्य किसान यूनियनों का रुख तय करेगी।

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