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Farmers Protest: क्या है MSP, किसान क्यों चाहते हैं कानूनी गारंटी; आखिर क्यों गर्माया है मुद्दा? यहां पढ़िए सबकुछ

पंजाब-हरियाणा के किसान (Kisan Andolan) अपनी मांगों को लेकर एक बार फिर सड़कों पर हैं। इस किसानों की सभी मांगों में सबसे बड़ी मांग या ये कह लें कि सबसे बड़ा मुद्दा एमएसपी की कानूनी गारंटी है। बता दें एमएसपी एक न्यूनतम दर है जिस पर सरकारी खरीद एजेंसियां किसानों से फसलें खरीदती है। हालांकि MSP के पक्ष और विपक्ष में भी काफी तर्क हैं।

By Jagran News Edited By: Monu Kumar JhaUpdated: Mon, 19 Feb 2024 09:38 AM (IST)
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Farmers Protest: MSP को लेकर किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं।

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। किसान अपनी मांगों को लेकर एक बार फिर सड़कों पर उतर (Farmers Protest) आए हैं। वे किसान कानून बना कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने की मांग कर रहे हैं। आइये जानते हैं कि एमएसपी क्या है और पंजाब के किसान ही एमएसपी की गारंटी पर ज्यादा जोर क्यों दे रहे हैं?

एमएसपी क्यों बना है बड़ा मुद्दा?

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) प्रमुख खरीद एजेंसी है। एफसीआइ ज्यादातर खरीद बान और गेहूं की ही करती है। इसके बाद एफसीआइ इस अनाज को रियायती दरों पर लोगों को मुहैया कराती है। इस प्रक्रिया में एकसीआइ को जो नुकसान होता है, उसकी भरपाई केंद्र सरकार करती है।

क्या है एमएसपी?

एमएसपी न्यूनतम दर है, जिस पर सरकारी खरीद एजेंसियां किसानों से फसले खरीदती है। एमएसपी किसानों को बाजार के उतार चढ़ाव से बचाते के साथ आरा की सुरक्षा देती है। किसानों को उनकी फसलों की उचित कीमत मिले, यह सुनिश्चित करने में एमएसपी की अहम भूमिका है। एनएसपी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा तय की जाती है।

सीएसीपी उत्पादन लागत, बाजार के रुझान और मांग- आपूर्ति के परिदृश्य पर विचार करके एमएसपी तय करती है। एमएसपी की शुरुआत 1967 में हुई थी। उस समय देश में खाद्यान्न की कमी थी और जरूरत आयात के जरिए पूरी की जाती थी।

एमएसपी के पक्ष और विपक्ष में तर्क

एमएसपी का पक्ष

पारंपरिक तौर पर सरकार धान और गेहूं की खरीद सबसे ज्यादा करती रही है क्योकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए इनका वितरण होता है। इन अनाजो के लिए सरकार के पास भंडारण क्षमता भी है। लेकिन पंजाब (Punjab News) और हरियाणा (Haryana News) के किसानों को डर है कि कानूनी गारंटी के बिना बाजार में इन जिससे की कीमते एमएसपी से नीचे जाने पर उचित कीमत नही मिलेगी।

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एमएसपी का विपक्ष

वही सरकार और बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि एमएसपी की कानून गारंटी देना टिकाऊ नही है और इसमें कई तरह की बाधाएं है। जैसे खरीद की सीमित ढांचागत सुविधाएं, अनाज का संभावित नुकसान, फसलों का पैटर्न खराब होना और प्रभावी बाजार पहुंच का अभाव।

इसके अलावा सरकारी अधिकारियो का मानना है कि इसे लागू करना वित्तीय रूप से भयावह होगा। उनका कहना है कि पित वर्ष 2019-20 में देश में कुल उपज की कीमत 40 लाख करोड़ पहुंच गई थी। वही एनएसपी तंत्र के तहत आने वाली फसलो की अनुमानित बाजार कीमत 10 लाख करोड़ रुपये है।

किसान एमएसपी की गारंटी पर क्यों दे रहे हैं जोर?

पंजाब और हरियाणा के किसान कानून बना कर एमएसपी की गारंटी ( MSP Guarantee) देने की बात पर ज्यादा जोर इसलिए दे रहे है क्योंकि एफसीआइ के खरीद तंत्र का सबसे अधिक फायदा इन दोनों राज्यों के किसान उठाते है।

क्या है सी2+ 50 प्रतिशत फार्मूला?

यह एमएसपी तय करने का फार्मूला है, जिस पर सरकारी एजेंसियां किसानों की उपज खरीदती हैं। इसमें किसान की जमीन का किराया सहित खेती पर आने वाली सभी तरह की लागत शामिल है।

एमएसपी का फार्मूला

सरकार एमएसपी तय करने के लिए ए2+एफएल फार्मूले का इस्तेमाल कर रही है। इसमें किसान खेती के लिए जिस पूंजी का भुगतान करता है और परिवार के श्रम का मूल्य शामिल है।

किसान मेहनती और सीधे-साधे होते हैं। देश की खाद्य सुरक्षा में भी किसानों की अहम भूमिका है लेकिन भारत में किसानों को राजनीतिक हथियार भी बनाया जाता रहा है। ताजा मामला फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग का है।

अगर सरकार एमएसपी पर फसलों की खरीद की गारंटी ले लेती है तो एक अनुमान के अनुसार इस पर 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। वहीं 2024-25 के अंतरिम बजट में सरकार ने पूंजीगत निवेश के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है। ऐसे में सरकार अगर सारी फसलें एमएसपी पर खरीदती है तो कर्मचारियों को वेतन और पेंशन कहां से देगी।

विकास कार्यों के लिए संसाधन कहां से आएंगे। अगर ऐसा होता है तो पूरा सरकारी तंत्र और व्यवस्था ही चरमरा जाएगी। वहीं विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा है कि वह सत्ता में आने पर एमएसपी की गारंटी देगी। हालांकि केंद्र में सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई।

ऐसे में कांग्रेस की जिम्मेदारी बनती है कि वह देश को बताए कि वह 10 लाख करोड़ रुपये का इंतजाम कैसे करेगी। ऐसे में यह पड़ताल अहम मुद्दा है कि एमएसपी की गारंटी की मांग कितनी व्यावहारिक है और क्या किसान आंदोलन के जरिए राजनीतिक मंशा पूरी करने का प्रयास हो रहा है?

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