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... और थम गई गाेल मशीन, खेल ही नहीं जिंदगी के चैंपियन थे बलबीर, स्‍वर्णिम युग का अंत

हॉेकी की गोल मशीन सोमवार को थम गई। अपने समय के विश्‍व हॉकी के बेताज बादशाह बलबीर सिंह सीनियर सांसों के साथ मैदान हार गए। वह खेल ही नहीं जिंदगी के भी चैंपियन थे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Tue, 26 May 2020 08:41 AM (IST)
... और थम गई गाेल मशीन, खेल ही नहीं जिंदगी के चैंपियन थे बलबीर, स्‍वर्णिम युग का अंत
चंडीगढ़, [विकास शर्मा]। भारतीय हॉकी की गोल मशीन सोमवार को थम गई। दुनियाभर में गोल मशीन के नाम से मशहूर पदमश्री बलबीर सिंह सीनियर के साथ ही भारतीय हॉकी के स्‍वर्णिम युग का अंत हो गया। वह सही मायने में खेल ही जिंदगी के चैंपयिन थे। उन्‍होंने जीवंत जीवन के प्रतीक थे। पद्मश्री बलबीर सिंह सीनियर भारत के इकलौते ऐसे हॉकी खिलाड़ी थे तीन बार ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता टीम के सदस्य रहे।

उनकी बेमिसाल उपलब्धियों के चलते उनको 1957 में पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया था। यह सम्मान हासिल करने वाले वह पहले खिलाड़ी थे। वे 1975 में इकलौता हॉकी वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम के मैनेजर थे। बलबीर सिंह सीनियर भारतीय हॉकी के गौरवशाली अतीत के गवाह थे। ऐसे गवाह जिसने भारतीय हाॅकी का विश्‍व भर मेें पताका लहराने में अहम भूमिका निभाई।

 

भारत ने हॉकी में ओलंपिक लंदन (1948), हेल्सिंकी (1952) और मेलबोर्न (1956) में गोल्ड मेडल जीता था। इन तीनों टीमों में बलबीर सिंह सीनियर शामिल थे और जबरदस्‍त प्रदर्शन कर भारतीय टीम की जीत साल 1948 के लंदन ओलंपिक में उन्‍होंने अजेंंटीना के खिलाफ अहम मैच में छह गोल दागे थे। इस मैच में भारत 9-1 से जीता था। इसी ओलंपिक के फाइनल में भारत ने इंग्लैंड को 4-0 से हराया था। इस मैच में उन्होंने पहले 15 मिनट में दो गोल कर थे।

 

हेल्सिंकी ओलंपिक के फाइनल मैच में उन्होंने हॉलैंड के खिलाफ फाइनल मैच पांच गोल दागे थे। यह रिकार्ड आज भी गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज है। साल 1954 में सिंगापुर टूर पर गई टीम इंडिया ने कुल 121 गोल किए थे। इसमें 84 गोल अकेले बलबीर सिंह सीनियर के थे। साल 1955 में भारतीय हाॅकी टीम न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया की टीेमों के खिलाफ खेली। इन मैचों में भारतीय हॉकी टीम ने दोनों प्रतिद्वंद्वी टीमों के खिलाफ कुल 203 गोल किए। इनमें 121 गोल अकेले बलबीर सिंह सीनियर के थे। इसके बाद उनको विश्‍व हाॅकी में गोल मशीन कहा जाने लगा।

जिद्द, जज्बे और जुनून से तमाम उम्र चैंपियन की तरह जिए सीनियर

बलबीर सिंह सीनियर तमाम उम्र चैंपियन की तरह जिए। उनके जिद्द, जज्‍बे और जुनून को उनके फेसबुक पर एक पोस्‍ट से समझा जा सकता है। उन्‍होंने लिखा था-

मंजिलें भी जिद्दी हैं, रास्ते भी जिद्दी हैं,

पर क्या करूं मैं, हौसले भी तो मेरे जिद्दी हैं...।

टूटे हाथ से ओलंपिक 1956 में टीम इंडिया को जितवा दिया था गोल्ड

इसी जिद्द से उन्‍होंने1956 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम को गोल्ड मेडल दिलाया था। बलबीर सिंह सीनियर बेहद शांत स्वभाव के थे लेकिन उनके इरादे बेहद मजबूत थे। साल 1956 ओलंपिक के दौरान पहले मैच में ही उनका हाथ टूट गया था। बलबीर सिंह सीनियर बताते थे कि विरोधी टीमों को भारतीय टीम की इस कमजोरी का पता न चले, इसलिए उन्होंने पूरा ओलंपिक टूटे हाथ से खेला था और टीम ने गोल्ड मेडल जीता था।  दरअसल उस जमाने में बलबीर सिंह सीनियर का विरोधी टीमों में इतना डर होता था कि विरोधी टीमों के चार से पांच खिलाड़ी पूरे मैच के दौरान उन्हें रोके रखने के लिए उनके इर्द गिर्द रहते थे और इसकी का फायदा टीम के अन्‍य खिलाड़ी उठाते थे।

उनकी जिद्द का दूसरा उदाहरण तब देखने को मिला था, जब वह साल 1975 में भारतीय हॉकी टीम के कोच और मुख्य प्रबंधक थे। इस दौरान जैसे ही टीम को मैच खेलने के लिए विदेश रवाना होना था, उनके पिता की मौत

हो गई थी। इतना ही नहीं पिता की मौत के सदमे की वजह से पत्‍नी को ब्रैनहेमरेज हो गया। वह पत्‍नी को अस्पताल दाखिल करवाकर सीनियर टीम के साथ विदेश रवाना हो गए। वर्ल्ड कप जीतकर वापस लौटे और पत्‍नी का अस्पताल जाकर हाल जाना।

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