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Chandigarh News: दुष्कर्म के आरोपित की सजा को रद कर हाई कोर्ट ने किया रिहा, कहा- 'धोखा देने का इरादा जरूरी'

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दुष्कर्म मामले में एक बड़ा फैसला लेते हुए दुष्कर्म के आरोपित एक व्यक्ति को कथित पीड़िता से शादी करने का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने के आरोप में बरी कर दिया है। जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि गवाही या पीड़िता के बयान में कोई आरोप नहीं है कि जब अपीलकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था।

By Dayanand Sharma Edited By: Deepak Saxena Updated: Sat, 01 Jun 2024 03:55 PM (IST)
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दुष्कर्म के आरोपित की सजा को रद कर हाई कोर्ट ने किया रिहा।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपित एक व्यक्ति को कथित पीड़िता से शादी करने का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने के आरोप में बरी कर दिया। साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी की ओर से अपने वादे को पूरा करने में विफलता का मतलब यह नहीं लगाया जा सकता कि वादा ही झूठा था।

जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि गवाही या पीड़िता के बयान में कोई आरोप नहीं है कि जब अपीलकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था। इसके अतिरिक्त, पीड़िता की गवाही के अनुसार, वह अपीलकर्ता से केवल एक बार पहले मिली थी। उसी दिन उसने उसके साथ भागने का फैसला किया था।

अदालत ने कहा कि इस तरह के मामले में इस अदालत को यह बेहद असंभव लगता है कि अपीलकर्ता ने पीड़िता से दूसरी बार मिलने के बाद ही उससे शादी करने का झूठा वादा किया होगा। कोर्ट ने कहा अगर यह मान भी लिया जाए कि ऐसा वादा किया गया था तो भी अपीलकर्ता अपने वादे को पूरा करने में विफल रहने का यह मतलब नहीं लगाया जा सकता कि वादा ही झूठा था।

हाईकोर्ट में हुई सुनवाई

हाई कोर्ट अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश यमुना नगर द्वारा पारित सजा के फैसले और सजा के आदेश के खिलाफ एक व्यकित्व द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपीलकर्ता को धारा 376 आईपीसी के तहत सात साल के सश्रम कारावास, धारा 363 आईपीसी के तहत दो साल और धारा 366 के तहत पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

एफआईआर के मुताबिक, कथित पीड़िता अपनी मर्जी से आरोपित के साथ अपना घर छोड़कर गई थी। वह उसे एक ट्यूबवेल में ले गया जहां उसने शादी का झांसा देकर उसके साथ दुष्कर्म किया। कथित पीड़िता की मेडिको-लीगल जांच की गई और एफआईआर में दुष्कर्म के आरोप जोड़े गए। अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि महिला बालिग है और स्वेच्छा से और अपनी मर्जी से उसके साथ भाग गई थी।

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आरोपित के साथ पूरे समय पीड़िता के विरोध का सबूत नहीं- शिकायतकर्ता

शिकायतकर्ता अपीलकर्ता के साथ तीन दिनों तक रही और उसके साथ मोटर साइकिल पर काफी लंबी दूरी तय की। उसकी ओर से किसी भी प्रकार का कोई विरोध नहीं हुआ। सभी परिस्थितियां साबित करती हैं कि शिकायतकर्ता सहमति से पक्ष में थी इसलिए अपीलकर्ता द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है। दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि कथित पीड़िता 18 साल से ऊपर की है और कोई सबूत नहीं है कि आरोपित के साथ अपने पूरे समय में पीड़िता ने कोई विरोध किया।

कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गवाही से पता चलता है कि आरोपित ने उसकी मर्जी के खिलाफ उसका अपहरण नहीं किया था। वह बाइक पर उसके पीछे बैठी जब उसे अपीलकर्ता द्वारा काला अम्ब के पास ले जाया गया और वे कई दिनों तक वहां रहे। कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या आरोपी की ओर से पीड़िता से शादी करने का झूठा वादा किया गया था।

कोर्ट ने कही ये बात

जस्टिस बराड़ ने कहा कि महिला की ओर से सहमति न होना दुष्कर्म के अपराध को साबित करने के लिए अनिवार्य है। वर्तमान मामले में, कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान में कोई आरोप नहीं है कि जब अपीलकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था। नतीजतन, कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सजा को रद्द कर अपीलकर्ता को आरोपों से बरी कर दिया।

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