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रोचक है 'उत्तरापथ' से जीटी रोड बनने तक का सफर, आज भी मौजूद हैं सबसे पुराने राजमार्ग नंबर-1 पर एतिहासिक धरोहरें

ग्रैंड ट्रंक रोड का नाम तो आपने सुना ही होगा। इसका इतिहास भी बड़ा रोचक है। कालांतर में इसे उत्तरापथ के नाम से जाना जाता था। इस मार्ग का पुनर्निर्माण शेहशाह सूरी ने कराया। अंग्रेजों ने इस मार्ग का नाम ग्रैड ट्रंक रोड दिया जो अब राजमार्ग नं-1 है।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Sun, 24 Jul 2022 08:44 PM (IST)
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जीटी रोड पर आज भी मौजूद हैं एतिहासिक धरोहरें। सांकेतिक फोटो
आनलाइन डेस्क, चंडीगढ़। ग्रैंड ट्रंक रोड (Grand Trunk Road) का नाम आपने सुना ही होगा। यह एशिया के सबसे पुराने और लंबे राजमार्गों में से एक है। इसे राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर-1 भी कहते हैं। इस मार्ग की शुरुआत ईसा से तीन सदी पूर्व हुआ था। तब इसे उत्तरापथ के नाम से जाना जाता था। शासक बदले तो मार्ग का नाम भी बदलता चला गया। 

16वीं सदी में शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए इसका पुनर्निर्माण करवाया। तब इसे शेरशाह सूरी मार्ग के नाम से जाना गया। इसके बाद मुगल काल में इस मार्ग का विस्तार हुआ। मुगल काल में इसका विस्तार बांगलादेश के चटगांव से अफगानिस्तान के काबुल तक हुआ। तब इस मार्ग को सड़क-ए-आजम का खिताब मिला।

भारत में अंग्रेजों का राज हुआ तो इस मार्ग का नाम ग्रैैंड ट्रंक रोड या जीटी रोड हो गया। इसे देश का राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर एक बनाया गया। वर्तमान पंजाब में यह मार्ग राजपुरा से शुरू होकर लुधियाना, फिल्लौर से जालंधर होता हुआ अमृतसर के अटारी से पाकिस्तान की ओर जाता है। इस मार्ग पर अनेक सराय व कोस मीनारें बनी। यह धरोहरें आज भी जीवंत हैं। इनकी देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग करता है।

जीटी रोड पर ये हैं प्रमुख धरोहरें

  • शहंंशाह अकबर द्वारा सुल्तानपुर लोधी में ऐतिहासिक किला सराय का निर्माण करवाया। अब इस स्थान पर करीब सात दशक से पंजाब पुलिस का कार्यालय है। इतिहासकारों की मानें तो तब इस इमारत के निर्माण पर एक लाख रुपये खर्च हुए थे। 400 गज चौड़े और 450 गज लंबे क्षेत्र में बने इस किले के बीचोंबीच मुगल सुल्तान के अधिकारियों के निवास स्थान बने हुए थे।
  • अटारी सीमा से दिल्ली आते वक्त करीब 17 किलोमीटर पर है सराय अमानत खां है। मुगल बादशाह शहाजहां ने 17वीं सदी में जब दिल्ली से लाहौर के बीच शेरशाह सूरी मार्ग का आगे निर्माण करवाया था, तब अब्दुल-हक शिराजी नामक कारीगर को अमानत खां का नाम देकर उससे यह बनवाई थी।
  • जालंधर के निकट स्थित नूरमहल में मुगल काल में निर्मित ऐतिहासिक सराय है। इसे नूर जहां के आदेश पर जकारिया खान ने 1618 ई. में छोटी नानकशाही ईंटों के इस्तेमाल से बनवाया था। नूरमहल को बादशाह जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के हुसन से प्रभावित होकर बसाया था। बादशाह जहांगीर अपनी बेगम नूरजहां को प्रेम से ‘नूर महल’ पुकारता था, जिससे नगर का नाम नूरमहल पड़ गया।
  • आज फिल्लौर के जिस किले में पुलिस अकादमी चल रही है वहां मुगल काल में सेना के ठहरने की सराय थी। इतिहासकारों के मुताबिक शाहजहां ने फिल्लौर में शाही सराय का निर्माण करवाया था। 
  • खन्ना के निकट मुगल काल की निशानी सराय लश्करी खान है। इसे 1667 में लश्करी खान और अश्करी खान ने बनाया था। यह सराय शेरशाह सूरी ने अपने सैनिकों तथा खुद के आराम के लिए विशेष तौर पर बनवाई थी।
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