पंचायतों को भंग करने के मामले में अदालत ढीली पड़ी लड़ाई, पंजाब के आला अधिकारी भी एजी से नाराज
पंचायतों को भंग करने के मामले में केस को अंतिम लड़ाई तक लड़ने में नाकाम रहने पर ग्रामीण विकास सहित पंजाब के आला अधिकारी भी एजी से नाराज हैं। एक सीनियर अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सरकार को लड़ते हुए दिखना चाहिए ज्यादा से ज्यादा अदालत का फैसला हमारे खिलाफ आ जाता लेकिन अदालत में लड़ाई लड़ने से ही पीछे हटा गया है।
चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो। Panchayat Dissolve in Punjab: पंचायतों को भंग करने के मामले में केस को अंतिम लड़ाई तक लड़ने में नाकाम रहने पर ग्रामीण विकास सहित पंजाब के आला अधिकारी भी एजी से नाराज हैं। बताया जाता है कि यह नाराजगी उन्होंने मुख्य सचिव अनुराग वर्मा के सामने भी व्यक्त की है।
AG से नाराज हुए आला अधिकारी
एक सीनियर अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सरकार को लड़ते हुए दिखना चाहिए, ज्यादा से ज्यादा अदालत का फैसला हमारे खिलाफ आ जाता, लेकिन जिस प्रकार से अदालत में लड़ाई लड़ने से ही पीछे हटा गया है यह सही तरीका नहीं है। काबिले गौर है कि इस केस में पूर्व एडवोकेट जनरल अशोक अग्रवाल भी पहले दिन पेश किए हुए थे।
एजी के दफ्तर में 140 वकील कर रहे काम
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के ही पूर्व जज और संयुक्त अकाली दल के नेता निर्मल सिंह ने इस पर सवाल भी उठाया है। उन्होंने कहा कि जब सरकार के पास अपने एडवोकेट की इतनी बड़ी फौज है तो एक प्राइवेट वकील को पेश करवाकर दस लाख रुपए फीस देने का क्या मतलब है। एक जूनियर वकील को भी अढ़ाई लाख रुपए की अदायगी की गई। क्या सरकार को अपने वकीलों की काबलियत पर भरोसा नहीं है। उन्होंने बताया कि एडवोकेट जनरल दफ्तर में 140 वकील काम कर रहे हैं।
एजी कार्यालय पर उठ रहे सवाल
उन्होंने कहा कि जब एजी दफ्तर में रखे गए वकीलों में कोई भी अनुसूचित जाति से न रखने का मामला आया तो कहा गया कि एजी ऑफिस में काबिलियत के आधार पर वकीलों को रखा जाता है। जस्टिस निर्मल सिंह ने पूछा कि अब उनकी काबलियत कहां गई? कांग्रेस के नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी कहा कि अब एक अतिरिक्त वकील पर खर्च किया गया पैसा क्या मुख्यमंत्री अपनी जेब से देंगे।
उन्होंने कहा कि मुख्तार अंसारी वाले मामले में भी हमारी सरकार के मुख्यमंत्री और मुझे जिम्मेवार ठहराया जा रहा था तो क्या अब मुख्यमंत्री भगवंत मान इस मामले में अपनी जिम्मेवारी लेंगे या अफसरों को बलि का बकरा बनाकर अपनी जिम्मेवारी से पीछे हट जाएंगे।