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Sri Guru Tegh Bahadur Jayanti: 'हिंद की चादर' के जीवन से सीखिए धैर्य, मानवता की सेवा व सर्वधर्म सदभाव

Sri Guru Tegh Bahadur Jayanti श्री गुरु तेग बहादुर जी की आज जयंती है। उन्होंने मानव जीवन को सेवा धैर्य पराक्रम और सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया। उन्हें तिलक और जनेऊ का रक्षक भी कहा जाता है ।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Sat, 01 May 2021 10:38 AM (IST)
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श्री गुरु तेग बहादुर जी की जयंती पर विशेष।
चंडीगढ़ [इंद्रप्रीत सिंह]। Sri Guru Tegh Bahadur Jayanti:  'हिंद की चादर' श्री गुरु तेग बहादुर जी का आज 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। यह प्रकाश पर्व उस समय आया है जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी के दौर से गुजर रही है और हर किसी को एक दूसरे की मदद की जरूरत है। श्री गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व का इस दौर से क्या संबंध हो सकता है, इस बात पर विचार करना होगा।

सिख स्कालर राजिंदर सिंह कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर जी ने गुरु गद्दी, गुरु हरिकृष्ण साहिब से ली जो उस समय दिल्ली में हैजा जैसी बीमारी के बीच जान गंवा रहे लोगों की सेवा करते हुए ज्योति जोत समा गए। अब एक बार फिर वैसे ही हालात हैं। जो संस्थाएं श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाशोत्सव मना रही हैं उनके कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि वह मानवता की सेवा करके गुरु के संदेश को दुनिया तक पहुंचाएं।

सर्व धर्म सदभाव : तिलक जंजू दे राखे

उन्हें तिलक - जंजू दे राखे (तिलक और जनेऊ के रक्षक) भी कहा जाता है। उन दिनों मुगल शासक औरंगजेब पूरे भारत में इस्लाम की स्थापना करना चाहता था। उसके जुल्म से परेशान कश्मीर से कुछ ब्राह्मण आनंदपुर साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के पास फरियाद लेकर पहुंचे। इसके बाद गुरु साहिब दिल्ली पहुंचे और औरंगजेब से कहा, 'यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम कबूल करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो, क्योंकि इस्लाम यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए।' गुस्से में आए औरंगजेब ने गुरु जी का सिर कलम करवा दिया।

धैर्य और शांति ही धरोहर

गुरु तेग बहादुर जी का जो सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व प्रभाव है वह है धैर्य और शांति। यह उनके जीवन की धरोहर रही है जिसकी वजह से उन्होंने 26 साल लगातार भक्ति की। जब गुरुत्व मिला और दुश्मनों ने भी वार किया तब भी उन्होंने शांति रखने के लिए आनंदपुर नगरी बसा दी। उसके बाद उन्होंने धर्म की खातिर बलिदान दिया। उन्होंने मौत के बारे में जो लिखा है उसका शायद ही कहीं वर्णन मिलता है। मौत को उन्होंने पानी के बुलबले की तरह बताया है। आज के दौर में जब कोरोना का खौफ है तो गुरु तेग बहादुर जी की वाणी पढ़ना जीवन जीने की राह जानना हो सकता है।

मानवता की सेवा

श्री गुरु तेग बहादुर जी ने अपना जीवन में मजलूम लोगों की अत्याचारियों से रक्षा करते हुए गुजारा। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने लगातार 20 वर्ष तक बाबा बकाला में तपस्या की। गुरु गद्दी मिलने के बाद वह श्री आनंदपुर साहिब आ गए। सिखी के प्रचार के लिए वह रूपनगर, सैफाबाद होते हुए बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए। यहां उन्होंने अध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए, रूढि़यों व अंधविश्वासों की आलोचना कर नए आदर्श स्थापित किए।

वीरता मानव कल्याण के लिए

गुरु हरगोबिंद जी के पांचवें पुत्र गुरु तेगबहादुर जी का जन्म अमृतसर में हुआ। उनके बचपन का नाम त्यागमल था और उन्होंने 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ हुए युद्ध में वीरता का परिचय दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता गुरु हरगोबिंद ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया। उनकी माता का नाम माता नानकी था। उनकी वीरता मानव जाति के कल्याण के लिए थी।

गुरु से जुड़े स्थल

  • जन्म गुरुद्वारा श्री गुरु के महल, अमृतसरअमृतसर में नौवें गुरू श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म एक मई, 1621 में हुआ था। गुरुद्वारा साहिब के अंदर स्थित भोरा साहिब वही जगह है जहां गुरु जी का जन्म हुआ था।
  • विवाह गुरुद्वारा ब्याह और निवास स्थान, करतारपुर (जालंधर)करतारपुर में श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी जी का विवाह हुआ था। जिस जगह उनका विवाह हुआ अब वहां पर गुरुद्वारा ब्याह और निवास स्थान स्थित है। गुरु हरगोबिंद साहिब जी की हजूरी में वर्ष 1632 में श्री गुरु तेग बहादुर जी का विवाह हुआ था।
  • तपस्या गुरुद्वारा बाबा बकाला साहिब (अमृतसर) बाबा बकाला में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने 26 साल, 9 महीने 13 दिन तपस्या की और इस पवित्र नगरी को बसाया। गुरु जी को यहीं पर गुरता गद्दी मिली और जहां पर उन्होंने तपस्या की वहां पर अब गुरुद्वारा बाबा बकाला साहिब स्थित है।
  • शहादत गुरुद्वारा शीशगंज साहिब, नई दिल्ली11 नवंबर 1675 को चांदनी चौक में श्री गुरु तेग बहादुर जी ने अद्वितीय बलिदान दिया था। उनकी शहादत वाली जगह पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब स्थित है। औरंगजेब ने गुरु जी को इस्लाम धर्म अपनाने को कहा था लेकिन गुरु जी नहीं माने तो औरंगजेब ने उनका सिर कलम करने का आदेश दिया था।
  • अंतिम संस्कार (1) गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब, नई दिल्लीइस पवित्र स्थान पर हिंद दी चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी के पाíथव शरीर (धड़) का अंतिम संस्कार किया गया था। औरंगजेब ने गुरु जी के अंतिम संस्कार पर भी रोक लगा दी थी। गुरु जी का एक शिष्य लखी शाह बंजारा अंधेरे में गुरु जी के शरीर को अपने घर लेकर पहुंचा और अंतिम संस्कार करने के लिए घर को जला दिया। वर्ष 1783 में बाबा बघेल सिंह के दिल्ली फतेह करने के बाद इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण करवाया था।
  • (2) गुरुद्वारा अकाल बूंगा साहिब, श्री आनंदपुर साहिबनई दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु जी के बलिदान के बाद भाई जैता जी गुरु साहिब का शीश नीम के पत्तों में छुपाकर श्री आनंदपुर साहिब पहुंचे थे। यहां पर गुरु जी के शीश का अंतिम संस्कार हुआ था। अब यहां गुरुद्वारा अकाल बूंगा साहिब स्थित है।
यह भी जानें

  • उनके द्वारा रचित 59 पदे और 57 श्लोक श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं।
  • उनके पिता छठे गुरु श्री हरगोबिंद थे और माता नानकी थीं
  • उनकी पत्नी का नाम माता गुजरी था।
  • दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह उनके पुत्र थे।
  • श्री आनंदपुर साहिब और पटियाला की स्थापना उन्होंने ही की थी।
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