न जमीन की जरूरत और न बजट की, लाइट रेल ट्राईसिटी के लिए बेस्ट पब्लिक ट्रांसपोर्ट
बलवान करिवाल, चंडीगढ़ : रैपिड मास ट्रांजिट सिस्टम (आरएमटीएस) या लाइट रेल ट्राईसिटी के लिए
बलवान करिवाल, चंडीगढ़ : रैपिड मास ट्रांजिट सिस्टम (आरएमटीएस) या लाइट रेल ट्राईसिटी के लिए सबसे बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का विकल्प हो सकता है। जमीन अधिग्रहण और मोटे बजट की वजह से मेट्रो प्रोजेक्ट दम तोड़ चुका है। आरएमटीएस ऐसा सिस्टम है, जिसमें न तो जमीन अधिग्रहण करने की जरूरत है और न ही मेट्रो की तरह 15 हजार करोड़ रुपये खर्च करना पड़ेगा। इस पर मेट्रो की बजाए आधा खर्च आएगा।
साथ ही, मेट्रो से एक तिहाई समय कंस्ट्रक्शन वर्क में लगता है। सबसे अहम बात यह है कि यह यात्रियों को भी महंगी नहीं पड़ेगी। प्रति किलोमीटर 2 रुपये टिकट लेकर इसमें सफर किया जा सकता है। बुधवार को प्रशासक वीपी सिंह बदनौर के सामने नॉमिनेटिड काउंसलर डॉ. एपी सांवरिया ने लाइट रेल का प्रस्ताव रखा। उन्होंने बताया कि यह शहर के लिए कितनी किफायती और भविष्य के लिए कितनी जरूरी हो सकती है। सांवरिया ने बताया कि कंपनी अपने खर्च पर इसे चलाने के लिए तैयार है, प्रशासन को पहले कोई पैसा नहीं देना होगा। कंपनी टिकट के जरिए अपना पैसा वसूल करेगी। 20 से 22 साल बाद प्रशासन को हैंडओवर कर देगी। यह प्रस्ताव सुनने के बाद प्रशासक वीपी सिंह बदनौर ने अधिकारियों को इस पर संभावनाएं तलाशने के आदेश दे दिए हैं। डॉ. सांवरिया ने बताया कि सिंगापुर और रूस जैसे देशों में यह बड़ी सफल रही है। वहां लोग इसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं और ट्रैफिक की दिक्कत खत्म हो गई है। डॉ. सांवरिया ने बताया कि आने वाले कुछ सालों के बाद शहर में पार्किंग को लेकर लड़ाई होने वाली है। अभी भी रोजाना इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। सड़कों पर बढ़ते ट्रैफिक को देखते हुए किसी बेहतर विकल्प को चुनना बेहद जरूरी है। डॉ. सांवरिया ने बताया कि उन्होंने एक आम आदमी के तौर पर आरएमटीएस कंपनी के सामने चंडीगढ़ का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने प्रोजेक्ट से जुड़ी बहुत सी जानकारी दी। यह ऐसा मॉडल है, जिसमें न तो जमीन की जरूरत है और न ही भारी भरकम बजट की। प्रशासन को कोई भी पैसा नहीं लगाना होगा।
सिर्फ डेढ फिट के पिलर पर चलेगी रेल
लाइट रेल के लिए किसी तरह के जमीन अधिग्रहण की जरूरत नहीं है। यह सड़कों के डिवाइडिंग रोड पर हर 35 मीटर की दूरी पर डेढ़ फीट का पिल्लर लगाकर चलाई जाएगी। सिंगापुर और रशिया में यह ऐसे ही चल रही है। सबसे खास बात तो यह है कि यह प्वाइंट टू प्वाइंट सर्विस दे सकती है। यानी यह शहर के मुख्य मार्गो पर तो चल ही सकती है साथ ही तंग सड़कों पर भी ऊपर चलाई जा सकती है। यानी यह हर सेक्टर से जुड़ सकती है। इसको नीचे कहीं भी जगह की जरूरत नहीं है।
एक बार चार्ज होने पर 300 किलोमीटर चलेगी
लाइट रेल को किसी तरह के फ्यूल की जरूरत नहीं है। यह डिपो में चार्ज होकर 300 किमी. तक चलेगी। इसके अंदर लगे डायनामाइंस सिस्टम टायर से भी एनर्जी उत्पन्न करते हैं। जिससे यह दिन में भी चार्ज होती रहती है। सिर्फ डिपो में ही बिजली की जरूरत रहती है। एक घंटे में 20 हजार पैसेंजर को सर्विस दे सकती है। ऐसे में यह चंडीगढ़ की ट्रैफिक को कम कर सकती है। शहर में 150 किमी. प्रति घंटा तो शहर से बाहर 250 किमी. प्रति घंटा की स्पीड से चल सकती है।
हमें मौका दें 2 किमी. बनाकर चलाकर दिखाएंगे
रशिया बेस्ड टेक्नोलॉजी पर लाइट रेल चला रही कंपनी नोआम ट्रस लि. के चीफ ऑपरेशन ऑफिसर करण जज ने विशेष बातचीत में बताया कि यह मेट्रो और मोनो रेल से भी कहीं बेहतर विकल्प है। अगर यूटी प्रशासन मौका दे तो वह 2 किलोमीटर का कोई पैसा चंडीगढ़ से नहीं लेंगे। पहले चलाकर दिखाएंगे अगर अच्छी लगी तो आगे पीपीपी मॉडल से आगे बढ़ाई जा सकती है। इस मॉडल के तहत प्रशासन को कोई पैसा पूरे प्रोजेक्ट पर नहीं लगाना होगा। 20 से 22 साल तक कंपनी टिकट चार्ज करेगी। अपनी कीमत पूरी करने के बाद प्रशासन को सौंप देंगे। मेट्रो से आधी कीमत के साथ कंस्ट्रक्शन में भी एक तिहाई कम समय लेती है। किसी तरह के जमीन अधिग्रहण की जरूरत नहीं रहती। सिर्फ कुछ दूरी पर पिल्लर लगाने के लिए डेढ़ से दो मीटर जगह चाहिए। सबसे खास बात यह है कि यह प्वाइंट टू प्वाइंट सर्विस देती है। तंग गलियों में भी इसे चलाया जा सकता है। भारत में आंध्र प्रदेश में वह इसे चलाने जा रहे हैं। यह लगभग फाइनल स्टेज पर है। सबसे खास बात यह है कि वह चंडीगढ़ से ही हैं यहां के स्कूलों में पढ़े हैं इसलिए शहर को ग्राउंड लेवल से अच्छे से जानते हैं।
पिछले सप्ताह हुई मोनो रेल प्रजेंटेशन
पिछले सप्ताह एक स्विस कंपनी ने मोनो रेल प्रोजेक्ट पर अपनी प्रजंटेशन प्रशासन को दी थी। हालांकि कंपनी ने पहले स्टडी करने के लिए प्रशासन से बजट मांगा। इसके बाद प्रशासन ने इसके लिए इनकार कर दिया। साथ ही कीमत काफी ज्यादा होने के कारण भी इस पर कोई बात नहीं बन पाई।